
नई दिल्ली: इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) ने दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले में यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा से संबंधित अंतरसरकारी समिति के 20वें सत्र के दौरान ‘नाट्यशास्त्र – सिद्धांत और व्यवहार का संश्लेषण’ शीर्षक से एक अकादमिक कार्यक्रम का आयोजन किया। विद्वानों ने एक जीवंत ज्ञान प्रणाली के रूप में ‘नाट्यशास्त्र’ के बारे में चर्चा की, जो भारत की प्रदर्शन कला परंपराओं में सिद्धांत और व्यवहार को एकीकृत करना जारी रखे हुए है। कार्यक्रम स्थल पर आईजीएनसीए मीडिया सेंटर द्वारा तैयार की गई यूनेस्को की मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में नाट्यशास्त्र के शिलालेख पर एक लघु फिल्म दिखाई गई, जिसे खूब सराहा गया।
नाट्यशास्त्र की प्रासंगिकता पर अध्यक्षीय भाषण पद्म विभूषण डॉ. सोनल मानसिंह ने दिया। उन्होंने विभिन्न काल एवं संस्कृतियों में इस ग्रंथ की निरंतर प्रासंगिकता और समकालीन कलात्मक अभ्यास, सौंदर्य चिंतन एवं सांस्कृतिक विमर्श को सूचित करने की इसकी निरंतर क्षमता पर प्रकाश डालते हुए इसकी स्थायी सार्वभौमिकता के बारे मे बताया।

डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने नाट्यशास्त्र पर एक बंद सिद्धांत के बजाय एक बौद्धिक निरंतरता के रूप में विचार किया और इसके संवाद वाले उस स्वरूप पर जोर दिया जो लगातार पुनर्व्याख्या व नवीनीकरण को आमंत्रित करता है। साथ ही, उन्होंने इसे एक ऐसे जीवंत ज्ञान प्रणाली के रूप में निरूपित किया जो सिद्धांत एवं व्यवहार को एकीकृत करती है और जिसकी वैचारिक कठोरता एवं प्रदर्शन तर्क बदलते ऐतिहासिक व सांस्कृतिक संदर्भों में कलात्मक रचना, प्रसारण एवं व्याख्या को समझने के लिए एक गतिशील ढांचा प्रदान करते हैं।

डॉ. संध्या पुरेचा ने नाट्यशास्त्र का एक व्यापक अवलोकन प्रस्तुत किया, जिसमें इसकी व्यवस्थित संरचना, दार्शनिक गहराई और व्यापक अखिल भारतीय प्रभाव पर ध्यान दिलाया गय। साथ ही, उन्होंने यह भी बताया कि कैसे इस ग्रंथ ने विभिन्न क्षेत्रों और पीढ़ियों में विविध कलात्मक परंपराओं और प्रदर्शन प्रथाओं को प्रभावित किया है। श्री चित्तरंजन त्रिपाठी ने ‘समकालीन रंगमंच और नाट्यशास्त्र’ के बारें में बात की। उन्होंने इस बात को समझाया कि कैसे इस ग्रंथ में निहित शास्त्रीय नाट्य के सिद्धांत आधुनिक रंगमंचीय अभिव्यक्तियों को आकार देना, प्रदर्शन के तरीकों को प्रभावित करना और समकालीन रंगमंच प्रशिक्षण एवं निर्माण में शैक्षणिक अभ्यासों को सूचित करना जारी रखे हुए हैं।
प्रोफेसर सुधीर लाल ने अपने भाषण में कहा कि नाट्यशास्त्र कलाओं का एक ऐसा व्यापक दृष्टिकोण पेश करता है, जो नाटक, नृत्य एवं संगीत के सिद्धांतों को संहिताबद्ध करता है और उन्हें एक ऐसे व्यापक आध्यात्मिक ढांचे में रखता है जो इंसानी अनुभव को दिखाता है और मोक्ष की ओर इशारा करता है।
डॉ. योगेश शर्मा ने ‘नाट्यांग: पाठ का वैचारिक ढांचा’ विषय पर एक ज्ञानवर्धक व्याख्यान दिया, जिसमें उन्होंने उन मूलभूत तत्वों को समझाया जो भारतीय कलाओं में प्रदर्शन सौंदर्यशास्त्र को आधार देते हैं और अर्थ निर्माण में मार्गदर्शन करते हैं। उन्होंने बताया कि कैसे इन घटकों का जटिल तालमेल नाटक, नृत्य और संगीत की सूक्ष्म अभिव्यक्ति, भावनात्मक गहराई एवं संरचनात्मक सामंजस्य को प्रभावित करता है, जिससे नाट्यशास्त्र की एक सैद्धांतिक मार्गदर्शक और कलात्मक रचना के लिए एक व्यावहारिक ढांचे के रूप में स्थायी प्रासंगिकता साबित होती है।

वक्ताओं ने बैठक में हुई चर्चाओं के संबंध में संक्षिप्त विचार रखे और शास्त्रीय ज्ञान प्रणालियों के साथ लगातार जुड़ाव के स्थायी महत्व पर जोर दिया। इस कार्यक्रम ने नाट्यशास्त्र को परंपरा और आधुनिकता को जोड़ने वाले एक मौलिक बौद्धिक एवं कलात्मक संसाधन के रूप में फिर से स्थापित किया और भारत की सांस्कृतिक विरासत पर सूचित एवं गहन चर्चा को बढ़ावा देने के प्रति आईजीएनसीए की अटूट प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। इस सत्र में संस्कृति प्रेमी, विद्वान और कलाकार शामिल हुए, जिससे एक ऐसा विविध समूह एक साथ आया जो भारत की शास्त्रीय प्रदर्शन कलाओं की निरंतर प्रासंगिकता का पता लगाने में गहराई से जुड़ा हुआ है।
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता पद्म विभूषण पुरस्कार विजेता, विद्वान, गुरु और राज्यसभा की पूर्व सदस्य डॉ. सोनल मानसिंह ने की। इस कार्यक्रम में जाने-माने विद्वान और संस्थानों के प्रमुख – आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी; संगीत नाटक अकादमी की अध्यक्षा डॉ. संध्या पुरेचा; राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक श्री चित्तरंजन त्रिपाठी; आईजीएनसीए के कलाकोश के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ.) सुधीर कुमार लाल और आईजीएनसीए के कलाकोश के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. योगेश शर्मा – शामिल हुए।


