मध्य यूरोप के देश यूनान (Greece) में इन दिनों किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो रहा है। इस प्रदर्शन में हजारों किसान सड़क पर निकल आए हैं और उन्होंने कृषि नीतियों, सब्सिडी में कटौती, बढ़ती लागतों, तथा सरकार की उन नीतियों के खिलाफ आवाज़ बुलंद की है जिन्हें वे अपने भले के खिलाफ मानते हैं। किसानों की मांग है कि सरकार उनकी आय, उत्पादन लागतों, उर्वरक और बीजों की कीमतों में स्थिरता लाए, बिजली और ईंधन की बढ़ती दरों को नियंत्रित करे और कृषि उपज के दामों को बढ़ाए ताकि उनकी आमदनी सुनिश्चित हो सके।
प्रदर्शन का मुख्य केंद्र देश की राजधानी एथेंस रहा, जहाँ किसान ट्रैक्टर और ट्रॉली लेकर सड़कों पर उतरे। प्रदर्शनकारियों ने नारेबाजी की, प्लैकार्ड उठाए और सरकार के खिलाफ “हमारी खेती हमारी ज़िन्दगी” जैसे स्लोगन लगाए। कई किसान अपने खेतों की तस्वीरों और उपज के नमूनों को साथ लाए थे, यह दिखाने के लिए कि वे कितनी मेहनत करते हैं और किस मुश्किल के बीच अपना गुज़ारा कर रहे हैं।
किसानों ने बताया कि पिछले कुछ सालों में उर्वरकों, बीजों, किराये, मजदूरी और ईंधन की कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई है। इस बीच, कृषि उत्पादों के दाम स्थिर हैं या कभी कभी गिरते भी रहे हैं, जिससे उनकी आमदनी पर जोरदार असर पड़ा है। इस असंतुलन ने उन्हें बेहद असुरक्षित और कर्ज में धकेल दिया है। किसान वर्ग का यह कहना है कि सरकार की मौजूदा नीतियाँ आम किसानों के जीवन और कृषि की स्थिरता के पक्ष में नहीं है।
प्रदर्शन शांतिपूर्ण शुरुआत हुआ, लेकिन जैसे-जैसे संख्या बढ़ी, राजधानी की मुख्य सड़कों पर ट्रैक्टर और अन्य बड़े वाहन खड़े होने लगे। इससे यातायात ठप हो गया और कई इलाकों में आम लोगों को दिक्कतें होने लगीं। कई व्यापारी और स्थानीय लोग भी किसानों के समर्थन में आ गए और प्रदर्शन को सामाजिक संकट की बजाय किसानों की न्यायपूर्ण मांग का पक्ष माना।
सरकार की ओर से अभी तक कोई ठोस जवाब नहीं आया है। हालांकि कुछ प्रतिनिधि नेताओं ने किसानों से बात करने की कोशिश की है, मगर किसानों का कहना है कि बातें नहीं — ठोस कार्रवाई चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर उनकी माँगें नहीं मानी गईं, तो प्रदर्शन और अधिक व्यापक स्तर पर बढ़ाये जाएंगे, और देश भर में कृषि कार्य ठप होने की संभावना है।
विश्लेषकों के अनुसार, यह आन्दोलन सिर्फ आर्थिक मांगों तक सीमित नहीं, बल्कि यह संदेश दे रहा है कि यूरोप में भी कृषि संकट है। ऊँची लागत, अस्थिर मौसम, ऊर्जा संकट, और वैश्विक बाज़ार की चुनौतियों ने छोटे और मध्यम किसानों को बेहद असुरक्षित बना दिया है। यदि सरकार समय रहते राहत नहीं प्रदान करती, तो कृषि क्षेत्र में गिरावट और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ज़्यादा दबाव की संभावना है।
प्रदर्शन की शुरुआत के दूसरे दिन, किसान नेताओं ने एक घोषणा की — वे अगले हफ्ते पूरे देश भर में एक दिन का “कृषक बंद” (farmers’ strike) करेंगे, जिसमें वे अपनी फसलें मंडियों में नहीं बेचेंगे। उनका उद्देश्य सरकार को यह दिखाना है कि कृषि देश की रीढ़ है — बिना किसानों के देश आगे नहीं बढ़ सकता।
इस प्रकार, यूनान में किसानों का यह आंदोलन अब सिर्फ एक स्थानीय समस्या नहीं रह गया, बल्कि यह पूरे यूरोपीय कृषि समुदाय के लिए एक चेतावनी है। अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो आने वाले महीनों में यूरोप भर में कृषि महंगाई, खाद्य संकट और ग्रामीण अस्थिरता जैसी परिस्थितियाँ और गहरा सकती हैं।


