तरक़्क़ी के शहर, अकेलेपन के घर 

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(सुविधाओं की उपलब्धता ने जीवन आसान बनाया, पर सामुदायिक विश्वास, आत्मीयता और सामाजिक बंधन टूटने लगे हैं।) 

सबसे बड़ी चुनौती है सामुदायिक बंधनों का क्षरण। गाँवों में जहाँ पड़ोसियों और रिश्तेदारों के बीच गहरे संबंध होते हैं, वहीं शहरों में रहने वाले लोग अक्सर अनजानेपन और दूरी का अनुभव करते हैं। गेटेड सोसाइटी और उच्च-आय वर्गीय कॉलोनियों ने  सामाजिक जीवन को खंडित कर दिया है। लोग अपने छोटे-से घेरे में सिमट जाते हैं और “अन्य” के प्रति अविश्वास पनपने लगता है। यह प्रवृत्ति समाज में सामूहिक विश्वास और सहयोग की भावना को कमजोर करती है। शहरी जीवन का दूसरा बड़ा संकट है अकेलापन। भीड़भाड़ और व्यस्तता के बावजूद लोग व्यक्तिगत रूप से अलग-थलग पड़ जाते हैं।


-प्रियंका सौरभ 

 महानगरों में लाखों लोग रहते हैं, परंतु अधिकांश अपने पड़ोसियों को भी नहीं पहचानते। एक सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 40 प्रतिशत शहरी भारतीयों ने स्वीकार किया कि वे खुद को अकेला महसूस करते हैं। यह आँकड़ा दिखाता है कि आधुनिक शहरी जीवन ने भले ही हमें भौतिक सुविधाएँ दी हों, परंतु भावनात्मक और सामाजिक रूप से हमें कमजोर किया है। तकनीक ने भी इस अकेलेपन को बढ़ाया है। स्मार्टफोन और सोशल मीडिया पर निर्भरता ने वास्तविक मानवीय बातचीत को सीमित कर दिया है। मेट्रो या बस में सफर करते हुए अक्सर लोग एक-दूसरे से संवाद नहीं करते, बल्कि मोबाइल स्क्रीन में डूबे रहते हैं। 

शहरीकरण ने भारत के सामाजिक जीवन और मानवीय संबंधों को गहराई से प्रभावित किया है। यह केवल आर्थिक प्रगति का साधन नहीं बल्कि एक ऐसा सामाजिक परिवर्तन भी है जिसने हमारे पारंपरिक रिश्तों, विश्वास और आपसी सहयोग की प्रकृति को बदल दिया है। शहरी जीवन की रफ्तार, अवसरों की विविधता और सेवाओं तक आसान पहुँच ने निश्चित ही नागरिकों को नए विकल्प दिए हैं, परंतु इसके साथ ही यह प्रक्रिया मानवीय संवेदनाओं और सामुदायिक रिश्तों को भी चुनौती देती रही है।

शहरों के विस्तार ने लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार जैसे अवसरों के करीब लाया। पहले जहाँ ग्रामीण भारत में इन सुविधाओं तक पहुँच कठिन थी, वहीं शहरी क्षेत्रों ने इन्हें आसान बनाया। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और कोलकाता जैसे महानगरों में विश्वस्तरीय अस्पताल, विश्वविद्यालय और सांस्कृतिक केंद्र मौजूद हैं। यह स्थान केवल सेवाएँ ही उपलब्ध नहीं कराते, बल्कि ज्ञान और विचारों के आदान-प्रदान के मंच भी बनते हैं। इसी वजह से शहरी जीवन को आधुनिक भारत का इंजन कहा जाता है। यहाँ के निवासी विभिन्न भाषाई, धार्मिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से आते हैं, जिससे विविधता का अनुभव होता है और सहिष्णुता की भावना विकसित होती है।

साथ ही, शहरी जीवन में सांस्कृतिक समृद्धि और नागरिक चेतना भी प्रबल होती है। कला दीर्घाएँ, पुस्तकालय, रंगमंच, साहित्यिक सभाएँ और जनआंदोलन जैसी गतिविधियाँ शहरों की पहचान रही हैं। चाहे वह कोलकाता की अकादमी ऑफ फाइन आर्ट्स हो या दिल्ली का इंडिया हैबिटेट सेंटर—ये स्थान सामूहिक संवाद और रचनात्मकता को बढ़ावा देते हैं। इसके अतिरिक्त, बेंगलुरु जैसे शहरों में आईटी उद्योग और स्टार्टअप संस्कृति ने पेशेवर सहयोग और नेटवर्किंग की नई संभावनाएँ खोली हैं। नागरिक स्वयं भी संगठित होकर अपने अधिकारों और सुविधाओं के लिए आवाज़ उठाते हैं। गुरुग्राम की आवासीय कल्याण समितियों द्वारा कचरा प्रबंधन और जलभराव के खिलाफ अभियान इसका उदाहरण हैं।

लेकिन इन सब सकारात्मक पहलुओं के बीच शहरीकरण का एक दूसरा चेहरा भी है, जो कहीं अधिक गहन सामाजिक संकट की ओर इशारा करता है। सबसे बड़ी चुनौती है सामुदायिक बंधनों का क्षरण। गाँवों में जहाँ पड़ोसियों और रिश्तेदारों के बीच गहरे संबंध होते हैं, वहीं शहरों में रहने वाले लोग अक्सर अनजानेपन और दूरी का अनुभव करते हैं। गेटेड सोसाइटी और उच्च-आय वर्गीय कॉलोनियों ने सामाजिक जीवन को खंडित कर दिया है। लोग अपने छोटे-से घेरे में सिमट जाते हैं और “अन्य” के प्रति अविश्वास पनपने लगता है। यह प्रवृत्ति समाज में सामूहिक विश्वास और सहयोग की भावना को कमजोर करती है।

शहरी जीवन का दूसरा बड़ा संकट है अकेलापन। भीड़भाड़ और व्यस्तता के बावजूद लोग व्यक्तिगत रूप से अलग-थलग पड़ जाते हैं। महानगरों में लाखों लोग रहते हैं, परंतु अधिकांश अपने पड़ोसियों को भी नहीं पहचानते। एक सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 40 प्रतिशत शहरी भारतीयों ने स्वीकार किया कि वे खुद को अकेला महसूस करते हैं। यह आँकड़ा दिखाता है कि आधुनिक शहरी जीवन ने भले ही हमें भौतिक सुविधाएँ दी हों, परंतु भावनात्मक और सामाजिक रूप से हमें कमजोर किया है।

तकनीक ने भी इस अकेलेपन को बढ़ाया है। स्मार्टफोन और सोशल मीडिया पर निर्भरता ने वास्तविक मानवीय बातचीत को सीमित कर दिया है। मेट्रो या बस में सफर करते हुए अक्सर लोग एक-दूसरे से संवाद नहीं करते, बल्कि मोबाइल स्क्रीन में डूबे रहते हैं। यह प्रवृत्ति समाजशास्त्री जॉर्ज सिमेल की उस धारणा को सही साबित करती है जिसमें उन्होंने आधुनिक शहरों को “भीड़ में अकेलेपन” का प्रतीक कहा था।

साथ ही, शहरी जीवन की भीड़-भाड़ और संसाधनों की कमी ने तनाव और संघर्ष को भी जन्म दिया है। पानी, बिजली, यातायात और पार्किंग जैसे मुद्दों पर झगड़े आम हो गए हैं। दिल्ली जैसे शहरों में पार्किंग विवाद कई बार हिंसा तक पहुँच जाते हैं। वाहन प्रदूषण और सड़क दुर्घटनाएँ भी नागरिक जीवन की असुरक्षा को बढ़ाती हैं। पैदल चलने वालों के लिए सुरक्षित स्थान कम होते जा रहे हैं, जिससे साझा सार्वजनिक जीवन घटता जा रहा है। यह कमी सामाजिक पूँजी पर सीधा आघात करती है, क्योंकि खुले और सुरक्षित सार्वजनिक स्थल ही लोगों के बीच संवाद और सहयोग को जन्म देते हैं।

इस प्रकार, शहरीकरण ने भारत के सामाजिक पूँजी पर दोतरफा असर डाला है। एक ओर इसने शिक्षा, स्वास्थ्य, विविधता और सांस्कृतिक उन्नति के अवसर दिए, तो दूसरी ओर इसने रिश्तों को सतही, अस्थिर और अविश्वासी बना दिया। आर्थिक विकास की गति में हमने भावनात्मक और सामुदायिक जीवन को पीछे छोड़ दिया।

आवश्यक है कि शहरी नियोजन केवल भौतिक ढाँचे तक सीमित न रहे, बल्कि उसमें मानवीय संबंधों की गरिमा और सामुदायिक जीवन की बहाली को भी स्थान मिले। हमें ऐसे सार्वजनिक स्थल चाहिए जहाँ लोग सहजता से मिल सकें और संवाद कर सकें। आवासीय कल्याण समितियों को केवल प्रशासनिक इकाई न मानकर सामाजिक मेलजोल और सामुदायिक उत्सवों का मंच बनाया जाए। शहरों में त्योहारों, मेलों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाए, ताकि लोग एक-दूसरे के करीब आ सकें। साथ ही, सस्ते और समावेशी आवास की नीतियाँ तैयार हों, जिससे वर्ग आधारित विभाजन कम हो सके।

भारत का भविष्य निस्संदेह शहरी होगा, परंतु यह भविष्य तभी स्थायी और समृद्ध हो सकता है जब शहरीकरण केवल आर्थिक नहीं बल्कि सामाजिक पूँजी का भी संवाहक बने। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि विकास की दौड़ में रिश्तों का ताना-बाना न टूटे। शहर तभी सच्चे अर्थों में प्रगतिशील बनेंगे जब वे न केवल समृद्धि और अवसर देंगे, बल्कि विश्वास, सहयोग और सामूहिक कल्याण की भावना को भी जीवित रखेंगे।


-प्रियंका सौरभ 

दस लाख की इनामी नक्सली कमांडर मारा गया

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झारखंड के गोइलकेरा थाना क्षेत्र आराहासा पंचायत के रेला गांव स्थित बुरजूवा पहाड़ी के पास रविवार के अहले सुबह पुलिस से मुठभेड़ में में दस लाख का इनामी नक्सली जोनल कमांडर अमित हांसदा उर्फ अपटन मारा गया। एसपी ने मुठभेड़ की पुष्टि की है। मुठभेड़ आज सुबह हुई। सूत्रों के अनुसार सुरक्षा बल और क्सलियों के बीच मुठभेड़ जारी है।

चाईबासा पुलिस को गुप्त सूचना मिली थी कि गोइलकेरा थाना क्षेत्र में रेला पराल क्षेत्र में नक्सली संगठन के सक्रिय सदस्य मौजूद हैं। जइसके बाद पुलिस व सीआरपीएफ टीम ने इलाके में सर्च ऑपरेशन चलाया।पुलिस की सर्च के दौरान नक्सलियों ने उन पर फायरिंग शुरू कर दी। इसके बाद दोनों ओर से गोलीबारी शुरू हो गई।सुरक्षाबलों ने पूरे पहाड़ी क्षेत्र को घेर कर नक्सलियों के भागने के रास्ते बंद करने की कोशिश की जा रही है। चाईबासा एसपी लगातार स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं । क्षेत्र में अतिरिक्त पुलिस बल को भी इलाके में भेजा गया है।

उ.प्र. परिवहन बेड़े के सभी चालकों की हर तीन माह में अनिवार्य मैडिकल जांच

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सड़क सुरक्षा को सबसे बड़ी चुनौती मानते हुए आदेश दिए कि परिवहन विभाग को अब सभी बस चालकों का हर तीन महीने में अनिवार्य मेडिकल और फिटनेस टेस्ट कराना होगा। खासतौर पर आंखों की नियमित जांच जरूरी होगी, ताकि दृष्टि दोष के कारण यात्रियों की जान जोखिम में न पड़े।

शनिवार को इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान लखनऊ में परिवहन विभाग की विभिन्न सेवाओं के शुभारंभ, डिजिटल लोकार्पण और शिलान्यास कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने कहा कि यात्री की जान बचाना विभाग की सकारात्मक छवि बनाता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में लापरवाही से गाड़ी चलाने की छूट किसी को नहीं दी जा सकती।लापरवाही से होने वाली मौतें न केवल बदनामी लाती हैं बल्कि आर्थिक नुकसान भी कराती हैं।

उन्होने सड़क सुरक्षा पर जोर दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि इसके लिए बड़े स्तर पर जन-जागरूकता अभियान चलाना होगा। इसमें आइआइटी खड़गपुर जैसी तकनीकी संस्थाओं की मदद, पुलिस और अन्य विभागों का सहयोग, तथा स्कूलों में ट्रैफिक नियमों पर शिक्षा को शामिल करना होगा। हेलमेट, सीट बेल्ट, नशे में ड्राइविंग और ओवर स्पीडिंग जैसी स्थितियों पर कड़े नियम लागू होंगे और मीडिया के जरिए इनका व्यापक प्रचार किया जाएगा।मुख्यमंत्री ने कहा कि कानून कभी-कभी कठोर लगता है लेकिन यही नागरिकों की सुरक्षा और जीवन की गारंटी है। कार्यक्रम में बताया कि पुलिस द्वारा विकसित एप से दुर्घटना संभावित क्षेत्रों की पहचान की गई, जिससे कई जगह हादसों की संख्या महीने में 18 से घटकर सिर्फ तीन रह गई है।

परिवहन और नगर विकास विभाग अगर गांव-गांव बेहतर पब्लिक ट्रांसपोर्ट और कनेक्टिविटी दें तो न केवल प्रदूषण घटेगा, बल्कि करीब तीन लाख रोजगार भी पैदा होंगे। उन्होंने इलेक्ट्रिक बसों को पर्यावरण संरक्षण और बेहतर यात्रा अनुभव का साधन बताते हुए कहा कि चार्जिंग स्टेशनों के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी जरूरी है।

साथ ही, पुराने वाहनों की स्क्रैपिंग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि प्रदूषण और हादसों का खतरा कम हो। ड्राइविंग ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट को मजबूत बनाने और विभाग को जवाबदेही के साथ काम करने की नसीहत दी। परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह ने कहा कि आने वाले समय में इलेक्ट्रिक बसें गांव-गांव तक पहुंचेंगी।कार्यक्रम में महापौर सुषमा खर्कवाल, प्रमुख सचिव अमित गुप्ता, परिवहन आयुक्त ब्रजेश नारायण सिंह सहित कई जनप्रतिनिधि और अधिकारी मौजूद रहे।

भारत की चिप क्रांति : सपनों से साकार होती हकीकत

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भारत आज उस ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है जहाँ तकनीकी आत्मनिर्भरता केवल आर्थिक प्रगति का साधन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गर्व और वैश्विक नेतृत्व की दिशा भी बन गई है। दशकों तक चिप और सेमीकंडक्टर क्षेत्र में केवल उपभोक्ता के रूप में पहचाने जाने वाला भारत अब निर्माता और आपूर्तिकर्ता बनने की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। यह परिवर्तन केवल तकनीकी नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और आत्मगौरव का भी प्रतीक है। सेमीकंडक्टर मिशन, वैश्विक सहयोग, और शिक्षा व अनुसंधान में निवेश ने भारत की चिप क्रांति को साकार रूप दिया है।

— डॉ सत्यवान सौरभ

भारत ने सेमीकंडक्टर निर्माण के क्षेत्र में ऐतिहासिक कदम उठाते हुए विश्व स्तर पर अपनी तकनीकी पहचान बनाई है। गुजरात और कर्नाटक में चिप पार्क, विदेशी निवेश और शिक्षा संस्थानों की सक्रिय भागीदारी ने इस अभियान को गति दी है। शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन 2025 में भारत ने सुरक्षा, संपर्क और अवसर के तीन स्तंभों पर बल देकर तकनीक को साझा भविष्य का आधार बताया। यह चिप क्रांति न केवल आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त कर रही है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, नवाचार और आत्मगौरव की नई उड़ान भी भर रही है।

भारत आज उस ऐतिहासिक दौर से गुजर रहा है जहाँ सपने केवल सपने नहीं रह गए हैं, बल्कि नये यथार्थ का रूप ले चुके हैं। दशकों तक जिस देश को तकनीक के क्षेत्र में उपभोक्ता भर समझा जाता था, वही देश आज निर्माता, आपूर्तिकर्ता और नवप्रवर्तक बनने की राह पर तेज़ी से बढ़ रहा है। सेमीकंडक्टर और चिप निर्माण की दिशा में भारत के प्रयास इसी परिवर्तन की सबसे सशक्त गवाही देते हैं। यह केवल तकनीकी विकास का संकेत नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय आत्मगौरव, आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास की उड़ान भी है।

चिप अथवा सेमीकंडक्टर आज के युग की सबसे अनिवार्य धुरी है। बीसवीं शताब्दी में तेल ने जैसे विश्व राजनीति और अर्थव्यवस्था को संचालित किया था, उसी प्रकार इक्कीसवीं शताब्दी में चिप वैश्विक शक्ति संतुलन का आधार बन चुकी है। आधुनिक जीवन का कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं है। मोबाइल फ़ोन, कंप्यूटर, स्मार्ट यंत्र, वाहन, रेल, हवाई जहाज़, रक्षा उपकरण, उपग्रह, स्वास्थ्य सेवाओं के उन्नत यंत्र, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और रोबोट तक—हर क्षेत्र में चिप की अनिवार्यता स्पष्ट दिखाई देती है। इसीलिए जो राष्ट्र इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर और सशक्त है, वही आने वाले समय में विश्व की राजनीति और अर्थव्यवस्था में निर्णायक भूमिका निभाएगा।

भारत की स्थिति लंबे समय तक इस क्षेत्र में कमजोर रही। भारी पूंजी निवेश, लगातार ऊर्जा और जल संसाधनों की आवश्यकता, प्रशिक्षित मानव संसाधन की कमी और अनुसंधान की उपेक्षा जैसे कारणों से भारत पिछड़ता रहा। चीन, ताइवान, अमेरिका और कोरिया जैसे देशों ने इस स्थिति का लाभ उठाकर वैश्विक बाज़ार पर प्रभुत्व कायम किया और भारत को केवल एक विशाल उपभोक्ता बाज़ार के रूप में देखा जाने लगा। किन्तु राष्ट्रों के जीवन में भी ऐसे क्षण आते हैं जब परिस्थितियाँ बदली हुई राह पर चलने को बाध्य करती हैं। भारत के लिए भी यही अवसर बीते कुछ वर्षों में आया और उसने चुनौती को अवसर में बदलने का संकल्प लिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में प्रारम्भ हुए ‘डिजिटल इंडिया’, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्टार्टअप इंडिया’ जैसे अभियानों ने तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में नया उत्साह जगाया। इन अभियानों ने यह संदेश दिया कि भारत अब केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि निर्माता भी बनेगा। वर्ष 2021 में घोषित भारत सेमीकंडक्टर मिशन ने इस संकल्प को ठोस आधार प्रदान किया। इसके अंतर्गत गुजरात और कर्नाटक में चिप निर्माण पार्क स्थापित करने की दिशा में कार्य प्रारम्भ हुआ। ताइवान, जापान और अमेरिका की कंपनियों ने भारत में निवेश और सहयोग की इच्छा प्रकट की। अरबों डॉलर के निवेश प्रस्ताव आए और अनुसंधान संस्थानों को सीधे इस अभियान से जोड़ा गया।

कोविड महामारी ने वैश्विक आपूर्ति शृंखला की कमजोरियों को उजागर कर दिया। जब चीन और ताइवान के कारखाने ठप पड़े तो पूरी दुनिया में मोबाइल, वाहन और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का संकट खड़ा हो गया। कीमतें बढ़ीं, उत्पादन ठप हुआ और उपभोक्ताओं को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उस कठिन दौर में भारत ने महसूस किया कि तकनीकी आत्मनिर्भरता केवल सुविधा का विषय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता का भी प्रश्न है। तभी भारत ने यह अवसर पहचाना और अपने को आपूर्ति शृंखला का विश्वसनीय केंद्र बनाने की दिशा में कदम बढ़ाए।

वर्ष 2025 में चीन के तियानजिन नगर में सम्पन्न शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन इस संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। भारत ने यहाँ अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए सुरक्षा, संपर्क और अवसर के तीन स्तंभ प्रस्तुत किए। भारत ने कहा कि तकनीक केवल व्यापार और उद्योग का विषय नहीं, बल्कि साझा सुरक्षा, स्थायी संपर्क और सामूहिक अवसर का आधार है। सेमीकंडक्टर विकास और डिजिटल नवाचार को सामूहिक प्राथमिकता बनाने का भारत का आह्वान इस सम्मेलन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि रहा। तियानजिन घोषणा पत्र में भारत की यह दृष्टि परिलक्षित हुई, जिससे यह प्रमाणित हो गया कि विश्व समुदाय भारत के बढ़ते तकनीकी महत्व को स्वीकार कर रहा है।

भारत ने इस प्रयास को केवल उद्योग तक सीमित नहीं रखा है। शिक्षा संस्थानों, अनुसंधान केन्द्रों और स्टार्टअप्स को भी इस अभियान से जोड़ा जा रहा है। आईआईटी, एनआईटी और अन्य विश्वविद्यालयों में चिप डिजाइनिंग, नैनोटेक्नोलॉजी और एंबेडेड सिस्टम से जुड़े पाठ्यक्रम आरम्भ किए गए हैं। युवाओं को अनुसंधान और नवाचार की दिशा में प्रेरित किया जा रहा है। इस प्रकार आने वाली पीढ़ी को तकनीकी नेतृत्व सौंपने की ठोस तैयारी की जा रही है।

सेमीकंडक्टर क्षेत्र में भारत का यह अभियान रोज़गार सृजन और औद्योगिक विकास का भी आधार बनेगा। अनुमान है कि आने वाले दस वर्षों में इस क्षेत्र से दस लाख से अधिक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार के अवसर पैदा होंगे। निर्माण, डिजाइनिंग, परीक्षण और वितरण के स्तर पर नये उद्योग और स्टार्टअप्स उभरेंगे। यह केवल तकनीकी विकास नहीं, बल्कि आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में भी ऐतिहासिक कदम होगा।

इस अभियान का एक महत्वपूर्ण पहलू राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ा है। रक्षा उपकरणों और उपग्रह तकनीक में आत्मनिर्भरता बढ़ने से भारत की रणनीतिक स्थिति सुदृढ़ होगी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और साइबर सुरक्षा में भी भारत का प्रभाव बढ़ेगा। स्पष्ट है कि चिप निर्माण केवल उद्योग की आवश्यकता नहीं, बल्कि राष्ट्र की सुरक्षा और संप्रभुता से भी गहरे रूप से जुड़ा है।

हालाँकि, चुनौतियाँ अभी भी शेष हैं। बिजली और जल की सतत आपूर्ति, अनुसंधान में निरंतर निवेश, वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धा और पर्यावरणीय संतुलन जैसी बाधाएँ इस यात्रा को कठिन बना सकती हैं। किंतु सरकार, उद्योग और समाज के संयुक्त प्रयास से इन चुनौतियों का समाधान अवश्य होगा। भारत ने जिस आत्मविश्वास और संकल्प के साथ इस यात्रा का आरम्भ किया है, उससे यह स्पष्ट है कि वह पीछे मुड़कर देखने वाला नहीं।

आज भारत की चिप क्रांति केवल तकनीकी आत्मनिर्भरता की कहानी नहीं, बल्कि यह आत्मगौरव, आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की महागाथा भी है। उम्मीदों की चिप सचमुच हौसलों को पंख दे चुकी है। बीसवीं शताब्दी में तेल ने जैसे विश्व व्यवस्था को बदला, उसी प्रकार इक्कीसवीं शताब्दी में चिप और तकनीक वैश्विक नेतृत्व का निर्धारण करेगी। भारत ने इस क्षेत्र में अपने कदम दृढ़तापूर्वक बढ़ा दिए हैं और अब उसका सपना धीरे-धीरे साकार होता दिख रहा है।

डॉ सत्यवान सौरभ

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान बीमार, अस्पताल में भर्ती

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पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती करवाया गया है। सीएम मान को रात में दाखिल करवाया गया है। इससे पहले उनकी तबीयत ठीक नहीं होने की वजह से शुक्रवार शाम को होने वाली कैबिनेट की बैठक को स्थगित कर दिया गया था। इस कैबिनेट की बैठक में प्रदेश में बाढ़ के हालातों के चलते ही राहत कार्यों में तेजी लाने के संबंध में चर्चा की जानी थी।

फोर्टिस अस्पताल के बाहर पुलिस की तरफ से सुरक्षा व्यवस्था भी कड़ी कर दी गई है। अस्पताल के बाहर व मुख्य गेट पर पुलिस बल को तैनात किया गया है। एक दिन पहले सीएम मान की तबीयत उस समय खराब हुई थी, जब वह पंजाब में बाढ़ प्रभावित लोगों से मिलने के लिए पहुंचे थे। 

उत्तर प्रदेश में शिक्षकों को कैश लेस चिकित्सा का तोहफा

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शिक्षक दिवस पर सीएम योगी ने लखनऊ में प्रदेश के 81 अध्यापकों को  सम्मानित किया।। सम्मानित होने वाले सभी शिक्षकों को पुरस्कृत भी किया गया। इस मौके पर मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के सभी शिक्षकों को कैशलेश उपचार की सुविधा देने की घोषणा की। कैशलेश उपचार की सुविधा पाने वालों में बेसिक, माध्यमिक के राजकीय, एडेड, सेल्फ फाइनेंस के सभी शिक्षक शामिल होंगे। इससे करीब नौ लाख शिक्षक लाभान्वित होंगे।कैशलेस योजना में शिक्षामित्रों, अनुदेशक, रसोइया को भी जोड़ा जाएगा। यानी इन सभी को भी चिकित्सा का लाभ मिलेगा। शिक्षामित्र, अनुदेशक का मानदेय भी जल्द बढ़ेगा। इसके लिए कमेटी बन गई है। सीएम ने कहा कि कमेटी की रिपोर्ट आने वाली है। उसके आधार पर सकारात्मक निर्णय लेंगे।
राजधानी लखनऊ में शिक्षक दिवस के अवसर पर लोकभवन में आयोजित कार्यक्रम में इस मौके पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने परिषदीय विद्यालयों के 66 व माध्यमिक शिक्षा विभाग के 15 शिक्षकों को राज्य अध्यापक पुरस्कार देकर सम्मानित किया। मुख्यमंत्री राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व मॉनिटरिंग के लिए टैबलेट, विद्यालयों में स्मार्ट क्लास के लिए प्रधानाचार्यों को टैबलेट व प्रमाण पत्र भी वितरित किए।इ उन्होंने कहा कि बेसिक शिक्षा ने बाल वाटिका का एक नया रूप लाया है। इस सत्र में पांच हजार से अधिक बाल वाटिकाएं शुरू हो चुकी हैं। यहां पढ़ने वाले बच्चों को मुख्यमंत्री पोषण योजना से से जोड़ा जा रहा हैं। सीएम ने कहा कि एससीईआरटी से कहना चाहूंगा कि पुस्तकों में भारतीय पात्रों का चयन करें। हमारे यहां रामायण और महाभारत से अच्छे पात्र कहीं नहीं मिलेंगे। जब हमारे घरों में दादी-नानी कहानी सुनाती हैं तो देश के महापुरुषों और नायकों की कहानियां सुनाती हैं। ताकि बच्चे उनके जैसा बनने के बारे में सोचें। बच्चों को खेल −खेल में सिखाइए। किताबें पतली रखें, बहुत मोटी न हों, उसे देखकर बच्चे भागें नहीं, बल्कि पढ़ने के लिए रुचि पैदा हो। 

इस मौके पर बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संदीप सिंह ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि आज का दिन काफी प्रेरणादायी है। आज हम लोग डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती मना रहे हैं। उनके योगदान को याद कर रहे हैं। शिक्षकों को सिर्फ सम्मानित ही नहीं, उनकी निष्ठा और योगदान को प्रणाम करने के लिए यह कार्यक्रम है।

मंत्री ने आगे कहा कि एनसीआरटीसी की किताबों को बेसिक में भी लागू करने जा रहे हैं। कक्षा चार तक अगले साल लागू करेंगे। इसे आठ तक ले जाएंगे। केजीबीवी 13वीं तक अपग्रेड हो रहे हैं। हर जिले में दो-दो सीएम मॉडल कंपोजिट विद्यालय बनेंगे।माध्यमिक शिक्षा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) गुलाब देवी ने कहा कि विभाग के 15 शिक्षक सम्मानित किए जा रहे हैं। कई सुधार हो रहे हैं। शिक्षकों की तैनाती ऑनलाइन की जा रही है।

उन्होंने कहा कि व्यावसायिक शिक्षा को भी लागू कर रहे हैं। संस्कृत विद्यालयों का भी विकास हो रहा है। इसमें जनप्रतिनिधि का भी सहयोग ले सकते हैं। आईसीटी लैब की स्थापना हो रही है। प्रधानाचार्य को टैबलेट दिया जा रहा है। 2017 से नकल पर नकेल लगी है। नकल माफिया पराजित हो गए हैं। कोई पकड़ा गया तो एक करोड़ का जुर्माना, आजीवन कारावास होगा। मार्कशीट इतनी मजबूत बनाई जा रही है कि इसे कोई फाड़ भी नहीं सकता है।


सुरक्षा बलों और नक्सलियों में मुठभेड़,छह नक्सली मरे

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छत्तीसगढ़ में दंतेवाड़ा और नारायणपुर जिले की सीमा पर सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई है। छह नक्सलियों के मारे जाने की सूचना है। मुठभेड़ अभी भी जारी है। मारे गए नक्सलियों की संख्या में इजाफा हो सकता है।

पुलिस को सूचना थी कि नक्सलियों की एक बड़ी टीम अबूझमाड़ के एक इलाके में जमा है और किसी बड़ी बैठक की तैयारी चल रही है। इसके बाद नारायणपुर, दंतेवाड़ा से डीआरजी के जवानों को ऑपरेशन पर रवाना किया गया था। सवेरे लगभग नौ बजे जवानों का नक्सलियों से सामना हुआ।   इसके बाद से लगातार दोनों तरफ से गोलीबारी चल रही है।

डॉ.पाल कौर प्रगतिशील लेखक संघ हरियाणा की अध्यक्ष, तनवीर जाफरी उपाध्यक्ष बने

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प्रगतिशील लेखक संघ हरियाणा बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों के पीड़ितजन की हर संभव सहायता करेे

डॉ. पाल कौर

तनवीर जाफरी


चंडीगढ़, ‘अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) हरियाणा राज्य कार्यकारिणी की ऑनलाईन आयोजित बैठक में राज्य अध्यक्ष डॉ. सुभाष मानसा के आकस्मिक निधन के कारण राज्य-कार्यकारिणी द्वारा सर्वसम्मति से वरिष्ठ उपाध्यक्ष एवं कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. पाल कौर को प्रलेस हरियाणा राज्य कार्यकारिणी के अध्यक्ष पद का कार्यभार निर्वहन करने की ज़िम्मेवारी सौंपी गई। इसके साथ ही वरिष्ठ उपाध्यक्ष के कार्यभार का दायित्व वरिष्ठ लेखक एवं विख्यात कालम-नवीस तनवीर जाफ़री को सौंपा गया। अपने अध्यक्षीय संबोधन में डॉ. पाल कौर ने कहा कि फ़िलहाल हमें अपनी साहित्यिक गतिविधियों को विराम देते हुए हरियाणा एवं आस-पास के बाढ़-ग्रस्त क्षेत्रों के पीड़ितजन के यथा-संभव सहयोग हेतु अपनी सक्रियता एवं प्रतिबद्धता व्यक्त करनी होगी। प्रलेस हरियाणा राज्य इकाई के महासचिव डॉ. हरविंदर सिंह सिरसा ने यह जानकारी देते हुए बताया कि इस बैठक की अध्यक्षता प्रलेस राष्ट्रीय अध्यक्षमंडल के सदस्य कॉ. स्वर्ण सिंह विर्क व राज्य कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. पाल कौर ने की।
बैठक में राज्य कार्यकारिणी के सदस्यों व समस्त जिला इकाईयों द्वारा सदस्यों से बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों के पीड़ितजन का हर संभव सहयोग करने का आग्रह करने के साथ सभी ज़िला इकाईयों द्वारा आमजन से इस विपदा का सामना करने हेतु यथा-संभव सहयोग करने की अपील जारी किए जाने का आह्वान किया गया। बैठक में फ़तेहाबाद, सिरसा, अम्बाला, करनाल/कैथल/पानीपत इकाईयों के पुनर्गठन पर हर्ष व्यक्त करते हुए अन्य ज़िला इकाइयों के शीघ्रताशीघ्र गठन/पुनर्गठन हेतु चर्चा की गई। इस संबंध में जानकारी देते हुए डॉ. अतुल यादव ने बताया कि कुरुक्षेत्र ज़िला इकाई के गठन हेतु सभी औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं और ज़िला कार्यकारिणी का गठन शीघ्र कर लिया जाएगा। बैठक में अधिक से अधिक लेखकों व सुहृदय पाठकों को प्रलेस के साथ जोड़ने हेतु सदस्यता अभियान को और सक्रियता प्रदान किए जाने हेतु व्यापक चर्चा की गई।बैठक में यह निर्णय भी लिया गया कि प्रलेस हरियाणा राज्य इकाई का आगामी राज्य प्रतिनिधि सम्मेलन अगले वर्ष अप्रैल माह के दौरान कुरुक्षेत्र में आयोजित किया जाएगा। बैठक के समापन अवसर पर अपने अध्यक्षीय संबोधन में नव-निर्वाचित राज्य अध्यक्ष डॉ. पाल कौर ने बैठक में सहभागिता दर्ज़ करवाने वाले सभी सदस्यों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि प्रलेस को और मज़बूती एवं सक्रियता प्रदान करते हुए साहित्यिक गतिविधियों के आयोजन में निरंतरता बनाए रखना उनकी प्राथमिकता रहेगी लेकिन आज के हालात के मद्देनज़र प्रलेस की प्राथमिक प्रतिबद्धता बाढ़-ग्रस्त क्षेत्रों के पीड़ितजन को हर संभव सहायता प्रदान करना है। बैठक में डॉ. रतन सिंह ढिल्लों, डॉ. अशोक भाटिया, कॉ. स्वर्ण सिंह विर्क, प्रो. हरभगवान चावला, डॉ. पाल कौर, डॉ. हरविंदर सिंह सिरसा, तनवीर जाफ़री, डॉ. अनिल ख़्याल अत्री, सुरजीत सिंह सिरड़ी, प्रो. गुरदेव सिंह देव, सुरजीत सिंह रेणू, डॉ. शेर चंद, डॉ. करनैल चंद, डॉ. अतुल यादव, अमनदीप सिंह एडवोकेट, डॉ. रामेश्वर दास, अनुपम शर्मा, जयपाल, यादविंदर सिंह इत्यादि ने अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज़ करवाई। बैठक की मेज़बानी सुरजीत सिंह सिरड़ी ने की और संचालन डॉ. हरविंदर सिंह सिरसा ने किया।
प्रलेस ,हरियाणा

बालम खीरा*

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(आयुर्वेद सरल चिकित्सा)

बालम खीरा  जिसे अंग्रेजी में "सॉसेज ट्री" या "ककंबर ट्री" भी कहते हैं, एक औषधीय वृक्ष है, जिसके फल, छाल, पत्तियां और जड़ें आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा में विभिन्न रोगों के इलाज के लिए उपयोग की जाती हैं। यह पश्चिम अफ्रीका का मूल निवासी है, लेकिन भारत में भी कई राज्यों में पाया जाता है। इसके फल बड़े, खीरे जैसे और 60 सेंटीमीटर तक लंबे हो सकते हैं, जो शाखाओं से लटकते हैं। हालांकि, इसका कच्चा फल जहरीला हो सकता है।

बालम खीरा के औषधीय उपयोग

पथरी (किडनी और मूत्राशय),
बालम खीरा पथरी को गलाने में प्रभावी माना जाता है। इसके सूखे फलों का चूर्ण बनाकर इसका उपयोग किडनी स्टोन के घरेलू उपचार में किया जाता है। यह पथरी को छोटे टुकड़ों में तोड़कर मूत्र मार्ग से निकालने में मदद करता है।

उपयोग विधि:
सूखे फलों को पीसकर चूर्ण बनाएं। इस चूर्ण को दिन में एक -दो बार आधी चम्मच की मात्रा में पानी के साथ लें। मात्रा और सेवन के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह लें।

पाचन समस्याएं (कब्ज और पेट दर्द)
इसके फल में फाइबर और पानी की मात्रा अधिक होती है, जो कब्ज से राहत दिलाने में मदद करता है। यह पेट की बीमारियों को ठीक करने में भी सहायक है।

उपयोग विधि:
बालम खीरा का जूस बनाकर इसमें थोड़ा नमक और नींबू का रस मिलाएं। इसे दिन में 1-2 बार सीमित मात्रा (आधी चम्मच) में पिएं।

त्वचा रोग और एंटी-एजिंग:
बालम खीरा में बायोएक्टिव यौगिक और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो मुंहासों, त्वचा की सूजन और उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करने में मदद करते हैं। इसके बीज त्वचा कैंसर के इलाज में भी उपयोग किए जाते हैं।

उपयोग विधि:
सूखे फलों या छाल का पाउडर बनाकर पेस्ट तैयार करें और प्रभावित त्वचा पर लगाएं। जूस का उपयोग त्वचा को शुद्ध करने के लिए किया जा सकता है।

मलेरिया और संक्रामक रोग:
बालम खीरा में एंटी-मलेरियल और एंटी-अमीबिक गुण होते हैं, जो मलेरिया और अमीबियासिस जैसे परजीवी संक्रमणों से लड़ने में मदद करते हैं। इसके तने में क्लोरोक्वीन यौगिक होता है, जो मलेरिया के उपचार में उपयोगी है।

उपयोग विधि:
इसके जूस को दिन में दो बार थोड़ी मात्रा में पिया जा सकता है, लेकिन केवल चिकित्सक की सलाह पर।

सूजन और घाव:
इसके छाल का पेस्ट सूजन, मच्छरों या सांप के काटने के बाद होने वाली समस्याओं में राहत देता है।

उपयोग विधि:
छाल को पीसकर पेस्ट बनाएं और प्रभावित क्षेत्र पर लगाएं।

कैंसर (पारंपरिक उपयोग):
कुछ दावों के अनुसार, बालम खीरा का उपयोग गले और त्वचा के कैंसर जैसे रोगों में राहत देने के लिए किया गया और परिणाम सुखद रहे , हालांकि वैज्ञानिक प्रमाण सीमित हैं।

उपयोग विधि:
इसके लिए विशेषज्ञ की देखरेख में चूर्ण या जूस का उपयोग किया जाता है।

सेवन की विधि

*जूस: बालम खीरा का जूस बनाकर इसमें नींबू का रस और थोड़ा नमक मिलाकर पिया जा सकता है। दिन में 1-2 बार आधी चम्मच से अधिक नहीं लेना चाहिए।

*चूर्ण: सूखे फलों को पीसकर चूर्ण बनाएं। इसे पानी या शहद के साथ 1-2 ग्राम की मात्रा में लें।

*पेस्ट: छाल या फल का पेस्ट बनाकर त्वचा पर लगाएं।

सावधानियां

कच्चा फल जहरीला: बालम खीरा का कच्चा फल विषाक्त हो सकता है, इसलिए इसका उपयोग केवल संसाधित रूप (जूस, चूर्ण, या पेस्ट) में करें।

सीमित मात्रा: दिन में दो बार से अधिक और आधी चम्मच से ज्यादा इसका सेवन न करें।

चिकित्सक की सलाह: गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं, या गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों को इसका सेवन करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक या डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।

साइड इफेक्ट्स: अधिक मात्रा में सेवन से सिरदर्द, उल्टी या अन्य समस्याएं हो सकती हैं।

बालम खीरा एक शक्तिशाली औषधीय फल है, जो पथरी, पाचन समस्याओं, त्वचा रोगों, मलेरिया और सूजन जैसी कई स्वास्थ्य समस्याओं में लाभकारी हो सकता है। हालांकि, इसके उपयोग से पहले आयुर्वेदिक विशेषज्ञ या चिकित्सक की सलाह अनिवार्य है, क्योंकि गलत मात्रा या कच्चे फल का सेवन नुकसानदायक हो सकता है। सही विधि और मात्रा में इसका उपयोग स्वास्थ्य के लिए रामबाण हो सकता है।
यशपाल सिंह आयुर्वेद रतन

चरित्र निर्माण की पाठशाला है परिवार

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बाल मुकुन्द ओझा
परिवार के सम्बन्ध में देशभर से मिल रही ख़बरे बेहद चिंताजनक है। परिवार को हमारे समाज में सामाजिक और सार्वभौमिक संस्था के रूप में स्वीकारा गया है। अनुशासन, आपसी स्नेह और भाईचारा तथा मर्यादा, परिवार को एक खुशहाल परिवार बना देता है। बुजुर्गों का कहना है जिस परिवार में एकता की भावना होती है, उसी घर में ही सुख-शांति और सम्पन्नता का निवास होता है। यही सामाजिक संस्था आज खंडित होने की स्थिति में है। परिवार और बिखरते रिश्ते आज समाज की एक जटिल सच्चाई बन गए हैं। परिवार की व्यवस्था आज की नहीं है, बल्कि ऋषि-मुनियों की देन है। लेकिन आज दरकते रिश्तों से परिवार व्यवस्था टूट रही है जो समाज के लिए ठीक नहीं है। आज भी देश और दुनियां, परिवार और संयुक्त परिवार की अहमियत को लेकर विवादों में उलझी है। भारत में संयुक्त परिवार प्रणाली बहुत प्राचीन समय से ही विद्यमान रही है। वह भी एक जमाना था जब भरा पूरा परिवार हँसता खेलता और चहकता था और एक दूसरे से जुड़ा रहता था। बच्चों की किलकारियों से मोहल्ला गूंजता था। पैसे कम होते थे पर उसमे भी बहुत बरकत होती थी। घर में कोई हंसी खुशी की बात होती थी तो बाहर वालों को बुलाने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। आज परिवार छोटे हो गए हैं और टूटते जा रहे हैं। हमारे रिश्ते बिखरते जा रहे हैं। संयुक्त परिवार की आज के समय में महती आवश्यकता है। संयुक्त परिवारों के अभाव में भाईचारा एवं पारिवारिक वातावरण खत्म होने लगा है। परिवार में रिश्तो की नीरसता और संवादहीनता को दूर करने परस्पर भाईचारे व तालमेल को बैठाने के लिए रिश्तो में सकारात्मक सोच को बढ़ाने की जरुरत है। परिवार के सभी छोटे हुए बड़े सदस्यों की भावनाओ का सम्मान करे तथा दिन भर घटित होने वाली छोटी-छोटी बातों और दुख-सुख को आपस में बांटे करे।
भारत में संयुक्त परिवार प्रणाली बहुत प्राचीन समय से ही विद्यमान रही है। साधारणतः संयुक्त परिवार वह है जिसमें पति-पत्नी, सन्तान, परिवार की वधुएँ, दादा-दादी, चाचा-चाची, अनके बच्चे आदि सम्मिलित रूप से रहते है। संयुक्त परिवार में माता-पिता, भाई-बहन के अतिरिक्त चाचा, ताऊ की विवाहित संतान, उनके विवाहित पुत्र, पौत्र आदि भी हो सकते हैं। संयुक्त परिवार से घर में खुशहाली होती है। साधारणत पिता के जीवन में उसका पुत्र परिवार से अलग होकर स्वतंत्र गृहस्थी नहीं बसाता है। यह अभेद्य परंपरा नहीं है, कभी-कभी अपवाद भी पाये जाते हैं। ऐसा भी समय आता है, जब रक्त संबंधों की निकटता के आधार पर एक संयुक्त परिवार दो या अनेक संयुक्त अथवा असंयुक्त परिवारों में विभक्त हो जाता है। असंयुक्त परिवार भी कालक्रम में संयुक्त परिवार का ही रूप ले लेता है और संयुक्त परिवार का क्रम बना रहता है। जिस फैमिली में दादा-दादी, माता-पिता, चाचा-चाची और खूब सारे भाई-बहन होते है उसे जॉइंट फैमिली (संयुक्त परिवार) कहां जाता है। ऐसी फैमिली की बुनियाद उनके बीच का प्यार है, जो सबको एस साथ जोड़ कर रखती है। इस में बूढ़ों से लेकर बच्चे कर अपना सुख-दुख एक साथ बाटते है। सास बहू का परस्पर रिश्ता परिवार का मूल आधार होता है। सच तो यह है आज यही रिश्ता दरक रहा है। बहुत से परिवार इसलिए टूट रहे हैं क्योंकि सास ने बहू को बेटी और बहू ने सास को मां मानने से इंकार कर दिया है। सास को बहू पराये घर से आई लगती है और बहू को ससुराल पराया लगता रहता है। इसी रिश्ते को प्रेम और स्नेह में बदलकर परिवार नामक संस्था को बचाया जा सकता है।
संयुक्त परिवार के सदस्यों के पास आपसी सामंजस्य की समझ होती है। एक बड़े संयुक्त परिवार में, बच्चों को एक अच्छा माहौल और हमेशा के लिये समान आयु वर्ग के मित्र मिलते हैं इस वजह से परिवार की नयी पीढ़ी बिना किसी रुकावट के पढ़ाई, खेल और अन्य दूसरी क्रियाओं में अच्छी सफलता प्राप्त करती हैं। संयुक्त परिवार में विकास कर रहे बच्चों में सोहार्द की भावना होती है अर्थात् मिलनसार तथा किसी भी भेदभाव से मुक्त होते हैं। परिवार के मुखिया की बात मानने के साथ ही संयुक्त परिवार के सदस्य जिम्मेदार और अनुशासित होते हैं। परिवार चाहे संयुक्त हो या एकल, इसकी खुशियां सदस्यों की सोच और व्यवहार पर ही निर्भर करती हैं। हर परिवार के सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष हैं। सुरक्षा की दृष्टि से संयुक्त परिवार की खूबियां है तो सुविधा की दृष्टि से एकल परिवार के भी अपने फायदे हैं। बदलते वक्त और जरूरत के हिसाब से परिवार संयुक्त और एकल परिवार का रूप लेते हैं।सुरक्षा, और सुविधा, दोनों ही दृष्टियों से संयुक्त परिवार के अपने फायदे हैं। संयुक्त परिवार में अगर कभी किसी को कोई दिक्कत होती हैं तो सभी सहायता के लिए पूरा परिवार ही जुट जाता है। बच्चों को छोड़कर ऑफिस या कहीं बाहर जाना है तो भी निश्चिंतता के साथ जा सकते हैं। यहां बच्चों की जिम्मेदारी सिर्फ माता-पिता की नहीं बल्कि पूरे परिवार की होती है। बच्चे परिवार के संस्कार भी सीखते हैं। संयुक्त परिवार का एक मुखिया होता है, जो परिवार के सभी सदस्यों के लिए नीतियाँ और निर्देश देता है। इन परिवारों में पुत्र विवाह के बाद अपने लिए अलग रहने की व्यवस्था नहीं करता ।


बाल मुकुन्द ओझा
वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार