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महाराजा सर भूपेंद्र सिंह (Sir Bhupinder Singh) (जन्म: 12 अक्टूबर 1891 – मृत्यु: 23 मार्च 1938) पटियाला रियासत के सातवें और संभवतः सबसे प्रसिद्ध महाराजा थे। उनका 38 वर्ष का शासनकाल (1900-1938) भारत के रियासती इतिहास में असाधारण वैभव, प्रगतिशील प्रशासन और कई विवादों के लिए जाना जाता है। वे ब्रिटिश राज के एक शक्तिशाली सहयोगी थे, जिन्होंने एक ओर आधुनिक प्रशासन और खेलों को बढ़ावा दिया, तो दूसरी ओर अपने विलासी और असाधारण जीवनशैली के लिए यूरोप तक चर्चा बटोरी।
प्रारंभिक जीवन और राज्यारोहण
भूपेंद्र सिंह का जन्म 12 अक्टूबर 1891 को पटियाला के मोती बाग पैलेस में हुआ था। वे जाट सिख फूलकियाँ राजवंश से संबंधित थे। उन्होंने लाहौर के ऐचिसन कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की। जब उनके पिता, महाराजा राजिंदर सिंह, का निधन हुआ, तब वे केवल नौ वर्ष के थे। इसलिए नवंबर 1900 में उनका राज्यारोहण हुआ, लेकिन राज्य का प्रशासन एक रीजेंसी काउंसिल (Regency Council) द्वारा संभाला गया। 1909 में, भारत के वायसराय, अर्ल ऑफ मिंटो ने 18 वर्ष की आयु में उन्हें राज्य के पूर्ण प्रशासनिक अधिकार सौंप दिए।
प्रशासनिक और राजनीतिक योगदान
महाराजा भूपेंद्र सिंह ने अपने शासनकाल में पटियाला रियासत को एक आधुनिक और प्रगतिशील राज्य बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए।
: उनके शासनकाल में, पटियाला में नहरों, रेलवे (जैसे पटियाला स्टेट मोनोरल ट्रेनवेज़), और डाकघरों का एक मजबूत नेटवर्क स्थापित हुआ।
शिक्षा और स्वास्थ्य: उन्होंने रियासत में 262 सार्वजनिक स्कूल, 40 राज्य अस्पताल और एक कॉलेज स्थापित किए। वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के संस्थापकों को भी उदारतापूर्वक दान देने के लिए जाने जाते हैं।
बैंकिंग: उन्होंने 1917 में स्टेट बैंक ऑफ पटियाला की स्थापना की।
ब्रिटिश राज से संबंध
भूपेंद्र सिंह ब्रिटिश राज के प्रति अत्यधिक वफादार थे और उन्हें एक प्रमुख सहयोगी माना जाता था।
प्रथम विश्व युद्ध: उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) में ब्रिटिश सरकार को ₹1.5 करोड़ की बड़ी राशि दान की और अपनी सेना भी भेजी। इस सेवा के लिए उन्हें 43 पदक और कई मानद सैन्य रैंक (जैसे लेफ्टिनेंट-जनरल) से सम्मानित किया गया।
अंतर्राष्ट्रीय मंच: उन्होंने 1918 में इम्पीरियल वॉर कैबिनेट और 1925 में लीग ऑफ नेशंस में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
नरेंद्र मंडल (Chamber of Princes): वे 1926 से 1938 तक चैंबर ऑफ प्रिंसेस के कुलाधिपति (Chancellor) रहे, जहाँ उन्होंने भारतीय रियासतों के हितों का प्रतिनिधित्व किया।
खेलों के महान संरक्षक
महाराजा भूपेंद्र सिंह एक उत्साही खिलाड़ी और खेलों के महान संरक्षक थे, खासकर क्रिकेट और पोलो के।
क्रिकेट में योगदान
भारतीय टीम के कप्तान: उन्होंने 1911 में इंग्लैंड का दौरा करने वाली पहली भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी की।
बीसीसीआई (BCCI) के सह-संस्थापक: वे भारत में क्रिकेट के राष्ट्रीय शासी निकाय, बोर्ड ऑफ कंट्रोल फॉर क्रिकेट इन इंडिया (BCCI) की स्थापना में सहायक थे।
रणजी ट्रॉफी: उन्होंने अपने मित्र महाराजा रणजीतसिंहजी (जाम साहिब ऑफ नवानगर) के सम्मान में रणजी ट्रॉफी के लिए दान दिया।
क्रिकेट ग्राउंड: उन्होंने हिमाचल प्रदेश के चायल में दुनिया के सबसे ऊंचे क्रिकेट ग्राउंड की स्थापना की, जिसे उन्होंने बाद में भारत सरकार को दान कर दिया।
पोलो और अन्य खेल
वे एक उत्कृष्ट पोलो खिलाड़ी थे और उनकी टीम ‘पटियाला टाइगर्स’ भारत की सर्वश्रेष्ठ टीमों में गिनी जाती थी।
उन्होंने पटियाला पोलो क्लब की स्थापना की।
वे 1928 से 1938 तक इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन (IOA) के अध्यक्ष रहे, जिससे भारत में ओलंपिक खेलों को बढ़ावा मिला।
उन्होंने पटियाला अखाड़ा भी स्थापित किया, जिसने गामा, इमाम बख्श जैसे महान पहलवानों को जन्म दिया।
असाधारण वैभव और विवादित जीवनशैली
भूपेंद्र सिंह को भारत के सबसे खर्चीले और विलासी राजाओं में से एक माना जाता है, जिनके ठाट-बाट की चर्चा विदेशों में भी होती थी।
पटियाला नेकलेस: उन्होंने 1928 में मशहूर ज्वेलरी कंपनी कार्टियर से दुनिया का सबसे प्रसिद्ध हार, पटियाला हार बनवाया था। इस हार में 2,900 से अधिक हीरे और कीमती रत्न जड़े थे, जिसमें विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा हीरा ‘डी बीयर्स’ (234 कैरेट) भी शामिल था।
कारों का संग्रह: वे कारों के शौकीन थे और उनके पास 20 रॉल्स रॉयस कारों का एक काफिला था। वह निजी हवाई जहाज रखने वाले पहले भारतीय भी थे।
विलासिता: कहा जाता है कि वे करोड़ों के डाइनिंग सेट में भोजन करते थे, उनके महल में 11 रसोइयां थीं, और उनके पास चाँदी का बाथ टब था।
हरम और पत्नियाँ: उनकी निजी जिंदगी काफी विवादित रही। उन्होंने 10 से अधिक शादियाँ कीं और उनके हरम में कथित तौर पर 350 से अधिक महिलाएँ थीं। विभिन्न पत्नियों और उपपत्नियों से उनके 88 बच्चे थे, जिनमें से 52 वयस्क हुए।
’लीला-भवन’: उनके दीवान जरमनी दास ने अपनी किताब ‘महाराजा’ में लिखा है कि भूपेंद्र सिंह ने पटियाला में ‘लीला-भवन’ (रंगरलियों का महल) बनवाया था, जहाँ बिना कपड़ों के लोगों को प्रवेश की अनुमति थी।
पटियाला पैग (Patiala Peg)
शराब के शौकीनों के बीच प्रसिद्ध ‘पटियाला पैग’ भी महाराजा भूपेंद्र सिंह की ही देन है। यह एक विशेष प्रकार का माप है, जिसमें सामान्य से दोगुनी मात्रा में शराब डाली जाती है। यह पेय उनकी असाधारण जीवनशैली का प्रतीक बन गया।
निधन और विरासत
महाराजा भूपेंद्र सिंह का निधन 23 मार्च 1938 को 46 वर्ष की आयु में हुआ।
अपनी असाधारण विलासिता और विवादों के बावजूद, महाराजा भूपेंद्र सिंह को एक दूरदर्शी प्रशासक और खेलों के महान संरक्षक के रूप में याद किया जाता है। उनके बेटे महाराजा यादविंदर सिंह उनके उत्तराधिकारी बने, जिन्होंने 1947 में पटियाला रियासत का विलय स्वतंत्र भारत में करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
महाराजा भूपेंद्र सिंह की विरासत आज भी पटियाला में महाराजा भूपेंद्र सिंह पंजाब स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी और उनके द्वारा स्थापित अन्य संस्थानों के रूप में जीवित है।











