⚔️ आज़ाद हिंद फ़ौज की स्थापना
सबसे पहले इस विचार को मूर्त रूप दिया कप्तान मोहन सिंह ने। उन्होंने जापान की सहायता से 1942 में मलाया (अब मलेशिया) में भारतीय युद्धबंदियों से मिलकर “इंडियन नेशनल आर्मी (INA)” का गठन किया।
हालाँकि शुरुआती प्रयास में संगठनात्मक समस्याओं के कारण यह सेना बहुत सक्रिय नहीं हो सकी।
1943 में सुभाषचंद्र बोस जापान पहुँचे। वहाँ उन्होंने भारतीयों से आह्वान किया —
“तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा!”
उनके नेतृत्व में आज़ाद हिंद फ़ौज को नई दिशा, ऊर्जा और संगठन मिला। उन्होंकी — और उसी दिन को आज हम आज़ाद हिंद फ़ौज स्थापना दिवस के रूप में मनाते हैं।
🇮🇳 सुभाषचंद्र बोस का नेतृत्व
सुभाषचंद्र बोस ने “नेताजी” के रूप में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक सैन्य स्वरूप दिया। उन्होंने अपने भाषणों और कर्मों से यह विश्वास जगाया कि भारत केवल अहिंसा से नहीं, बल्कि सशस्त्र संघर्ष से भी स्वतंत्र हो सकता है।
उनकी प्रेरक पंक्ति —
“जय हिंद”,
“दिल्ली चलो”,
“आजाद हिंद फौज ज़िंदाबाद”
देशभक्ति के अमर नारे बन गए।
सुभाषचंद्र बोस ने आज़ाद हिंद फ़ौज को तीन मुख्य उद्देश्यों के साथ पुनर्गठित किया —
- भारत को अंग्रेज़ी शासन से मुक्त कराना।
- भारतीयों में आत्मसम्मान और एकता की भावना जगाना।
- विदेशी भूमि पर भारतीय स्वतंत्र सरकार की स्थापना कर भारत की स्वतंत्रता की घोषणा करना।
🪖 आज़ाद हिंद फ़ौज की संरचना
आज़ाद हिंद फ़ौज में लगभग 45,000 से अधिक सैनिक थे। इनमें बड़ी संख्या में भारतीय युद्धबंदी और दक्षिण-पूर्व एशिया में रहने वाले भारतीय शामिल थे।
सेना का संगठन इस प्रकार था:
ब्रिगेड “गांधी”, “नेहरू”, “अजीत” और “सुभाष” के नाम से बनाए गए।
“रानी झाँसी रेजिमेंट” नाम से महिलाओं की एक स्वतंत्र यूनिट गठित की गई, जिसका नेतृत्व कैप्टन लक्ष्मी सहगल ने किया — यह भारतीय इतिहास में महिलाओं की पहली युद्ध इकाई थी।
सेना का मुख्यालय सिंगापुर और बाद में रंगून (बर्मा) में स्थापित किया गया।
⚡ युद्ध में भागीदारी
1944 में आज़ाद हिंद फ़ौज ने जापान के साथ मिलकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ इंफाल और कोहिमा (मणिपुर) की दिशा में अभियान शुरू किया।
यद्यपि यह अभियान सैन्य दृष्टि से सफल नहीं हो सका, पर इसने ब्रिटिश शासन की जड़ों को हिला दिया।
इस युद्ध के दौरान सैनिकों ने असाधारण साहस दिखाया। वे जानते थे कि उनके पास सीमित संसाधन हैं, फिर भी उन्होंने मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए जान की बाज़ी लगा दी।
🕊️ आज़ाद हिंद सरकार की घोषणा
21 अक्टूबर 1943 को नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आज़ाद हिंद सरकार की घोषणा की और स्वयं उसका प्रधानमंत्री तथा सेना प्रमुख बने।
सरकार का ध्येय वाक्य था —
“Ittehad, Itmad aur Qurbani” (एकता, विश्वास और बलिदान)।
इस सरकार को जापान, जर्मनी, इटली, बर्मा, फिलीपींस और कई अन्य देशों ने मान्यता दी।
आज़ाद हिंद फ़ौज ने स्वतंत्र भारत के लिए राष्ट्रीय ध्वज, मुद्रा, और न्याय व्यवस्था की भी स्थापना की — यह स्वतंत्र भारत का पूर्वाभास था।
⚖️ आज़ाद हिंद फ़ौज के मुकदमे और प्रभाव
द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटिश सरकार ने आज़ाद हिंद फ़ौज के सैनिकों को गिरफ्तार कर दिल्ली के लाल किले में मुकदमे चलाए।
इन मुकदमों ने पूरे देश में जनजागरण की लहर पैदा कर दी।
हिंदू, मुस्लिम और सिख सैनिकों पर एक साथ मुकदमा चलाया गया, जिससे देशभर में राष्ट्रीय एकता की भावना प्रबल हुई।
कांग्रेस, मुस्लिम लीग और अन्य दलों ने भी इन सैनिकों के समर्थन में प्रदर्शन किए। यह वह समय था जब ब्रिटिश सरकार समझ चुकी थी कि भारत अब अधिक समय तक दास नहीं रह सकता।
🇮🇳 आज़ाद हिंद फ़ौज की विरासत
आज़ाद हिंद फ़ौज का योगदान केवल सैन्य नहीं, बल्कि मानसिक और राष्ट्रीय चेतना का भी था। इसने भारतीयों को यह सिखाया कि वे अपनी आज़ादी स्वयं छीन सकते हैं।
इस फौज ने यह दिखाया कि देशभक्ति, एकता और त्याग के बिना स्वतंत्रता संभव नहीं।
भारत की स्वतंत्रता के बाद भी नेताजी और आज़ाद हिंद फ़ौज की स्मृति राष्ट्र के प्रेरणा स्रोत बनी रही। भारतीय सशस्त्र बलों में आज भी “जय हिंद” का नारा उसी विरासत का प्रतीक है।
🏵️ निष्कर्ष
आज़ाद हिंद फ़ौज का स्थापना दिवस केवल एक ऐतिहासिक तिथि नहीं, बल्कि देशभक्ति, त्याग और आत्मसम्मान का पर्व है।
यह दिन हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता किसी उपहार से नहीं, बल्कि बलिदान से प्राप्त होती है।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस और उनके साथियों ने जो सपना देखा था — वह भारत आज एक स्वतंत्र, सशक्त और एकजुट राष्ट्र के रूप में जी रहा है।
उनका आदर्श हमें प्रेरित करता है कि हम हमेशा अपने देश, अपनी आज़ादी और अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहें।
“जय हिंद! आज़ाद हिंद फ़ौज अमर रहे!”