राव तुला राम (9 दिसम्बर 1825 – 23 सितम्बर 1863) 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख और साहसी नायक थे। हरियाणा के रेवाड़ी जिले के अहीरवाल क्षेत्र के इस राजा ने अंग्रेजों के खिलाफ़ ज़ोरदार विद्रोह का नेतृत्व किया, और उन्हें हरियाणा के एक ‘राज नायक’ के रूप में जाना जाता है। उनका संघर्ष न केवल वीरतापूर्ण था बल्कि उन्होंने स्वतंत्रता की लौ को जलाए रखने के लिए विदेशों से भी मदद लेने का असाधारण प्रयास किया।
प्रारंभिक जीवन और रेवाड़ी का शासन
राव तुला राम का जन्म 9 दिसंबर 1825 को रेवाड़ी के रामपुरा उपनगर में एक प्रतिष्ठित राव परिवार में हुआ था। उनके पिता राव पूरन सिंह थे। प्रारंभिक शिक्षा के बाद, उन्होंने फ़ारसी, उर्दू, हिंदी और थोड़ी अंग्रेजी भी सीखी। युवावस्था में ही, 1839 में अपने पिता के निधन के बाद, उन्होंने रेवाड़ी की जागीर का कार्यभार संभाला। राव तुला राम ने अपनी प्रशासनिक क्षमता का परिचय देते हुए राजस्व विभाग को सुव्यवस्थित किया और रामपुरा को अपना मुख्यालय बनाया। उनका चचेरा भाई राव गोपाल देव उनका प्रमुख सेनापति और विश्वासपात्र था।
🇮🇳 1857 के विद्रोह में भूमिका
मेरठ और अन्य स्थानों पर विद्रोह की खबर सुनते ही, राव तुला राम ने ब्रिटिश विरोधी भावनाओं के साथ तुरंत कार्रवाई की।
- सत्ता पर कब्ज़ा: 17 मई 1857 को, राव तुला राम ने अपने लगभग 400 से 500 अनुयायियों और राव गोपाल देव के साथ रेवाड़ी की तहसील (सरकारी मुख्यालय) पर धावा बोल दिया और सभी सरकारी इमारतों पर कब्ज़ा कर लिया। उन्होंने ब्रिटिश शासन को हटाकर, स्वयं को रेवाड़ी का राजा घोषित कर दिया।
- सेना का गठन और संसाधन: राजा बनने के बाद, उन्होंने रेवाड़ी के महाजनों से दान और कर्ज लेकर लगभग 5,000 सैनिकों की एक विशाल सेना तैयार की। इतना ही नहीं, उन्होंने अपनी सेना को मजबूत बनाने के लिए रामपुरा के किले में बंदूकें, हथियार और गोला-बारूद बनाने के लिए एक कार्यशाला भी स्थापित की। यह कदम उनकी दूरदर्शिता और संगठनात्मक कौशल को दर्शाता है।
- दिल्ली को सहयोग: विद्रोह के दौरान, उन्होंने दिल्ली में अंग्रेजों से लड़ रहे विद्रोही सिपाहियों और अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फ़र को सैन्य बल, धन (लगभग 45,000 रुपये) और युद्ध सामग्री, जिसमें दो हज़ार बोरे गेहूँ भी शामिल थे, भेजकर महत्वपूर्ण सहयोग दिया।
💥 नसीबपुर का भीषण युद्ध
20 सितंबर 1857 को दिल्ली के पतन के बाद, अंग्रेजों ने राव तुला राम के नियंत्रण वाले क्षेत्र को खत्म करने का फैसला किया।
- रणनीतिक पीछे हटना: ब्रिगेडियर जनरल शोवर्स के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना को राव तुला राम को कुचलने के लिए भेजा गया। राव तुला राम ने यह भांपते हुए कि रामपुरा के मिट्टी के किले में ब्रिटिश तोपखाने का सामना करना मुश्किल होगा, एक रणनीतिक पीछे हटने का फैसला किया और अपनी सेना तथा हथियारों के साथ रामपुरा छोड़ दिया।
- नारनौल का युद्ध (16 नवंबर 1857): शोवर्स ने आत्मसमर्पण का प्रस्ताव भेजा, जिसे राव तुला राम ने आज़ादी की शर्त के साथ ठुकरा दिया। इसके बाद, कर्नल जेरार्ड के नेतृत्व में एक बड़ी ब्रिटिश सेना भेजी गई। 16 नवंबर 1857 को, नारनौल के पास नसीबपुर के मैदान में, राव तुला राम की सेना और अंग्रेजों के बीच एक भीषण और निर्णायक युद्ध हुआ।
- वीरता और पराजय: राव तुला राम की सेना ने अतुलनीय वीरता दिखाई और शुरुआती हमले में ब्रिटिश सेना को तितर-बितर कर दिया। इस युद्ध में अंग्रेजी सेनापति कर्नल जेरार्ड मारे गए। हालांकि, अंग्रेजों के पास भारी तोपखाना था। भारतीय सैनिकों ने बहादुरी से मुकाबला किया, लेकिन बेहतर हथियारों और तोपों के सामने उनकी हार हुई। राव तुला राम इस भीषण युद्ध से निकलने में सफल रहे, लेकिन उनके कई श्रेष्ठ सेनापति और सैनिक शहीद हो गए।
🌍 निर्वासित जीवन और अंतिम प्रयास
नसीबपुर की हार के बाद, राव तुला राम निराश नहीं हुए। वह राजस्थान चले गए और लगभग एक साल तक तात्या टोपे की सेना में शामिल होकर अंग्रेजों से लड़ते रहे।
जब 1857 का विद्रोह लगभग कुचला जा चुका था, तो राव तुला राम ने एक असाधारण और साहसी कदम उठाया—उन्होंने भारत को आज़ाद कराने के लिए विदेशी सहायता लेने का निश्चय किया।
- विदेशी मिशन: वह एक संत या हकीम के भेष में भारत छोड़कर ईरान और अफगानिस्तान पहुँचे। उन्होंने ईरान के शाह और अफगानिस्तान के शासक दोस्त मोहम्मद खान से मुलाकात की। उनकी योजना रूस के ज़ार (ज़ार अलेक्जेंडर द्वितीय) के साथ भी संपर्क स्थापित करने की थी, ताकि भारत से ब्रिटिश औपनिवेशिक साम्राज्य को उखाड़ फेंका जा सके।
- काबुल में निधन: एक बड़े मिशन की तैयारी के बीच ही, 23 सितंबर 1863 को मात्र 37 वर्ष की आयु में काबुल, अफगानिस्तान में पेचिश (Dysentery) की बीमारी से उनका निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार शाही सम्मान के साथ किया गया।
✨ विरासत
राव तुला राम का जीवन और संघर्ष भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। उन्होंने न केवल अपने क्षेत्र को अंग्रेजों से मुक्त कराया बल्कि देश के लिए अंतिम साँस तक बहादुरी से लड़े।
- राज्य नायक: हरियाणा राज्य में उन्हें एक ‘राज नायक’ का दर्जा प्राप्त है।
- सम्मान: उनकी स्मृति में, भारत सरकार ने 23 सितंबर 2001 को एक डाक टिकट जारी किया। दिल्ली में एक प्रमुख सड़क मार्ग (राव तुला राम मार्ग) और कई शैक्षणिक व स्वास्थ्य संस्थान उनके नाम पर हैं।
- शहीदी दिवस: 23 सितंबर को राव तुला राम का शहीदी दिवस हरियाणा में बड़े सम्मान के साथ मनाया जाता है।
राव तुला राम ने अपने साहस, नेतृत्व और देशप्रेम से यह साबित किया कि स्वतंत्रता की इच्छा किसी भी शक्ति से बड़ी होती है। उनका बलिदान आज भी हमें प्रेरणा देता है। (जैमिनी)