व्यंग्य

“हुजूर दीपक जल गया..! ‘
कैसे जल गया? कितना जला?
थानेदार: तूने क्यों आग लगाई?
“सर, पूरी दुनिया लगा रही थी। मैने भी लगा दी।”
थानेदार: उसकी फोटो दे?
“किसकी हुजूर?”
थानेदार: दीपक की। फोन नंबर बता।
“सर। वो तो मर गया। उसके तो बहुत साथी मरे हैं। “
थानेदार: होश फाख्ता। थाना क्षेत्र में इतना बड़ा कांड हो गया। पता भी नहीं लगा।
तभी मोबाइल की घंटी बजी।
“तुम्हारे इलाके में कोई दीपक मरा है?”
जी बॉस। अभी रपट लिख रहा हूं। सर, वो बता रहा है, उसके और भी साथी मरे हैं।
फोन कट।
देखते ही देखते, थाने में सायरन बजने लगे। एक दो तीन चार। अफसरों की फौज आ गई। कैसे हो गया? क्यों हो गया? दीपक ने क्यों आग लगाई? खुद आग लगाई तो औरों ने क्यों लगाई? कोई प्रेम प्रसंग का तो मामला नहीं? कहीं अवैध संबंध तो नहीं? आग लगा ली। मगर दिवाली पर क्यों लगाई। त्यौहार खराब कर दिया।
तफ्तीश शुरू हुई। जांच टीमें आ गई। सूंघ कर बताने वाले भी आ गए। सबको जले हुए की बू आ रही थी। यानी कन्फर्म था। कोई जला है। पीड़ित हिरासत में था। उकड़ू बैठा था। घुटनों पर सिर लगाए। उसको पता था..थोड़ी देर में उसके नाम की पट्टी आगे लगनी है।
“तभी एक आवाज आई। उसको लाओ।”
“तुमने क्या देखा..?”
जी। वो जल रहा था।
“तुमने बचाया क्यों नहीं?”
बचाता कैसे? वो बुझ गया।
“उसके ऊपर कम्बल डाल देते?”
वो कहां से लाता। गर्मी है अभी।
“उसके साथ कितने जले होंगे? कोई आइडिया?”
कह नहीं सकता हुजूर। बहुत जले होंगे।
“वाई द वे। यह आग लगी या लगाई गई?”
“सर। लगाई गई। लोग सज धज कर आए। और जला गए। दीपक मर गया। ( ऑ उं उं)”
यह तय हो गया। बड़ी घटना हुई है। मामला खुदकुशी का ही ठीक है। जलाने से हत्या की धारा लग लाएगी। बदनामी होगी। लोग नपेंगे। तभी एक्स चीखने लगा। ब्रेकिंग। दीपक जल कर मर गया। पुलिस सोती रही। दिवाली पर दिल दहला देने वाली घटना। टीवी चैनल पर कल्चर से एग्रीकल्चर पर बोलने वाले एक्सपर्ट आ गए…” निःसंदेह। इसमें कोई बड़ी साजिश है। सरकार को बदनाम करने की कोशिश हो सकती है। “
द्वितीय एक्सपर्ट -” हमको पहले ही लगता था। इस चैनल के माध्यम से मैने कहा भी था। यही नीतियां रहीं तो कभी भी कुछ भी हो सकता है। यह असंतोष है। “
थोड़ी देर में खबर फ्लैश हुई। मास्टरमाइंड पकड़ा गया। उकड़ू बैठे “दीपक” के आगे तख्ती लगी थी। खबरें चीख रही थीं..घटना के 24 घंटे के अंदर कातिल गिरफ्तार। लापरवाही पर इंस्पेक्टर सहित चार सस्पेंड।
सीन दो
पोस्टमार्टम होना था। चार्जशीट लगनी थी। कातिल पकड़ा गया। मगर आला कत्ल? वो अभी नहीं था। हम रख भी देते। लेकिन बॉडी रिकवर तो होनी चाहिए? पुलिस मौके पर पहुंची। कुछ नहीं था वहां। दीपक जल चुका था। उसका जला शव ठिकाने लग चुका था। लोग दिवाली मना रहे थे। किसी ने नहीं कहा- रोशनी देकर चला गया। सवाल कायम था। दीपक जला। मगर कौन सा? शायद यह जांच आयोग पता लगाए! मिट्टी तो दोनों दीपक को होना है। क्या फर्क पड़ता है, कौन सा जला?
सूर्यकांत


