−भूपेन्द्र शर्मा सोनू
भारत बड़ा देश है। इतना बड़ा कि यहां जो देखो वही अलग है। कहीं पर अलग धर्म है, कहीं पर अलग जाति है, कहीं पर अलग पहनावा है, कहीं पर अलग खाना है और सबसे बड़ी बात कि हर जगह अपनी-अपनी भाषा है। यही सब हमारी पहचान भी है और यही हमारी ताकत भी है, लेकिन मजे की बात यह है कि जो भाषा हमें जोड़ने का काम करती है, वही कभी-कभी लड़ाई-झगड़े का कारण भी बन जाती है। हमने कई बार देखा है कि महाराष्ट्र जैसे राज्य में अगर कोई आदमी मराठी नहीं बोलता और अगर वह हिन्दी बोलता है तो उसके खिलाफ लोग खड़े हो जाते हैं। उसे ऐसा लगता है जैसे उसने कोई गुनाह कर दिया हो। यह बात सिर्फ महाराष्ट्र तक ही सीमित नहीं है। देश के और हिस्सों में भी लोग अपनी भाषा के नाम पर दूसरों को नीचा दिखाते हैं। कोई कहता है कि तुम्हें हमारी भाषा सीखनी चाहिए। कोई कहता है कि हमारी भाषा सबसे ऊपर है। सवाल यह है कि जब हम सबको बराबरी से देखना चाहिए तो फिर हिन्दी ही क्यों विरोध का शिकार बनती है?
अब यह समझना जरूरी है कि हिन्दी हमारे देश की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। जितना लोग हिन्दी बोलते और समझते हैं उतना कोई दूसरी भाषा नहीं। यह केवल उत्तर भारत की भाषा नहीं है, बल्कि पूरे देश की भाषा है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक, पूरब से लेकर पश्चिम तक, हर जगह लोग हिन्दी बोल लेते हैं या कम से कम समझ लेते हैं। अगर कोई आदमी कहीं बाहर जाता है और उसे स्थानीय भाषा नहीं आती तो हिन्दी ही काम आती है यानि हिन्दी एक सेतु है, जो सबको जोड़ती है। अब सोचिए, किसी भी आदमी के लिए अपनी मातृभाषा प्रिय होना बहुत स्वाभाविक बात है। हर कोई अपनी बोली को सबसे प्यारी मानता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम दूसरों की भाषा का मजाक उड़ाएं या उसे छोटा बताएं। अगर कोई मराठी बोले, बंगाली बोले, पंजाबी बोले, तमिल बोले या कोई और भाषा बोले तो हमें उसका सम्मान करना चाहिए, लेकिन जब बारी हिन्दी की आती है तो बहुत लोग इसे आसान भाषा कहकर छोटा बना देते हैं। यह ठीक नहीं है। हर साल 14 सितम्बर को हम हिन्दी दिवस मनाते हैं। इसका कारण यह है कि 1949 में इसी दिन संविधान सभा ने हिन्दी को भारत की राजभाषा बनाया था यानि हिन्दी को आधिकारिक तौर पर मान्यता दी गई। इस दिन का असली मकसद यही है कि हम हिन्दी को बढ़ावा दें और इस पर गर्व करें, लेकिन कई बार लोग समझ लेते हैं कि हिन्दी दिवस का मतलब है दूसरी भाषाओं को दबाना। जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। हिन्दी दिवस का मतलब केवल हिन्दी को याद करना और उसे आगे बढ़ाना है न कि किसी और भाषा का अपमान करना।अब भारत की सबसे बड़ी खूबसूरती यही है कि यहां अलग-अलग भाषाएँ बोली जाती हैं। मराठी, तमिल, बंगाली, पंजाबी, गुजराती, उर्दू, कन्नड़, मलयालम आदि ये सब भाषाएँ हमारे देश की जान हैं। अगर कोई कहे कि सिर्फ हिन्दी ही चलेगी और बाकी भाषाओं की कोई अहमियत नहीं तो यह भी गलत है और अगर कोई कहे कि हिन्दी की कोई अहमियत नहीं, तो यह भी गलत है। हमें सबको बराबर मानना चाहिए। अब सोचिए अगर कोई बिहार से आदमी मुंबई में नौकरी करने जाता है और उसे मराठी नहीं आती तो क्या उसे नौकरी से निकाल देना चाहिए या क्या उसे गाली देना चाहिए? बिल्कुल नहीं। इसी तरह अगर कोई मराठी आदमी दिल्ली आता है और उसे हिन्दी बोलने में दिक्कत होती है तो क्या हम उसे परेशान करें, यह भी गलत है। भाषा तो जोड़ने का काम करती है तो फिर हम उसे झगड़े का कारण क्यों बना दें? हिन्दी दिवस हमें यही सिखाता है कि हम किसी भी भाषा का विरोध न करें। बल्कि सभी भाषाओं का सम्मान करें। अगर हम हिन्दी का विरोध करेंगे तो दरअसल हम भारत की आत्मा का विरोध करेंगे, क्योंकि भारत की आत्मा यही है कि यहां विविधता में भी एकता है। आजकल एक बड़ी समस्या यह भी है कि लोग अंग्रेजी को ज्यादा अहमियत देने लगे हैं। स्कूल-कॉलेज में बच्चे हिन्दी बोलते हैं तो उन्हें ताने मिलते हैं। नौकरियों में भी अंग्रेजी को ज्यादा महत्व दिया जाता है। जबकि सच्चाई यह है कि हिन्दी हमारी अपनी भाषा है और हमें इसे गर्व से बोलना चाहिए। अगर हम खुद ही अपनी भाषा को छोटा मानेंगे तो दूसरे लोग भी इसे छोटा मानेंगे। हमें यह समझना चाहिए कि हिन्दी केवल भाषा नहीं है, बल्कि हमारी संस्कृति, हमारी सभ्यता और हमारी पहचान है। अगर हिन्दी को कमजोर किया गया तो हमारी जड़ें कमजोर होंगी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि दूसरी भाषाओं को भुला दिया जाए। भारत में हर भाषा की अपनी खूबसूरती है, अपनी मिठास है। मराठी की अपनी मिठास है, पंजाबी की अपनी रौनक है, बंगाली का अपना स्वाद है, तमिल का अपना अंदाज है और हिन्दी की अपनी सहजता है। सब मिलकर ही भारत को भारत बनाते हैं। हमें यह ठान लेना चाहिए कि न तो हम हिन्दी का मजाक उड़ने देंगे न किसी दूसरी भाषा का। अगर हम सब एक-दूसरे की भाषा का सम्मान करेंगे तो आपस में भाईचारा बढ़ेगा। हिन्दी दिवस का यह संदेश है कि हिन्दी सिर्फ एक भाषा नहीं, बल्कि एकता और भाईचारे की डोर है। अगर हम सब हिन्दी के साथ-साथ हर भाषा को सम्मान देंगे तभी असली भारत जिंदा रहेगा।
−भूपेन्द्र शर्मा सोनू
(स्वतंत्र पत्रकार) धामपुर