विश्व शौचालय दिवस
बाल मुकुन्द ओझा
विश्व शौचालय दिवस हर साल 19 नवंबर को मनाया जाता है। यह महत्वपूर्ण दिवस केवल एक जन जाग्रति का अभियान या मिशन नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में स्वच्छता की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का एक वैश्विक प्रयास है। शौचालय मानव की पहली और बुनियादी जरुरत है। यह नागरिकों के मूलभूत अधिकारों से जुड़ी सर्वोच्च आवश्यकता है। मगर आज भी लाखों करोड़ों लोगों के पास यह सुविधा सुलभ नहीं होने से वे खुले में शौच को मज़बूर है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की 3.6 अरब से अधिक आबादी के पास अभी भी सुरक्षित स्वच्छता की सुविधा नहीं है। जबकि 673 मिलियन लोग खुले में शौच करते हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सिंगापुर द्वारा प्रस्ताव पेश करने के बाद साल 2013 में विश्व शौचालय दिवस को संयुक्त राष्ट्र दिवस घोषित किया था। इससे पहले 2001 में सिंगापुर की एनजीओ ‘वर्ल्ड टॉयलेट ऑर्गनाइजेशन’ द्वारा अनौपचारिक रूप से विश्व शौचालय दिवस की स्थापना की गई थी। इस दिवस को मनाने के पीछे यही उद्देश्य और संदेश है कि विश्व के तमाम लोगों को 2030 तक शौचालय की सुविधा मुहैया करा दी जाए। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र के 6 सतत विकास लक्ष्यों में से एक यह भी है। इस दिवस की 2024 की थीम स्वच्छता और जल प्रबंधन है, जो यह दर्शाती है कि स्वच्छ शौचालय जल सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं।
भारत की बात करें तो हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में सत्ता संभालते ही महिलाओं का दुःख दर्द समझा और बड़े पैमाने पर शौचालयों का निर्माण कर महिलाओं और लड़कियों की गरिमा की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया। मोदी ने 2014 में स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से उन महिलाओं की दुर्दशा के बारे में बात की थी, जिन्हें घर में शौचालय नहीं होने के कारण भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। शौचालय नहीं होने के कारण महिलाओं के साथ हिंसा और बलात्कार जैसी घटनाएं हुई क्योंकि वो खुले में शौच करने को मजबूर हैं। इससे एक महत्वपूर्ण बदलाव की शुरुआत हुई। इसका मुख्य उद्देश्य खुले में शौचमुक्त करना, गंदे शौचालयों को ठीक करना, हाथ से मैला ढोने प्रथा खत्म करना, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देना और स्वच्छता के संबंध में लोगों के व्यवहार परिवर्तन की दिशा में कार्रवाई करना।
भारत का स्वच्छता कवरेज 2014 में 39 प्रतिशत से बढ़कर 2019 में 100 प्रतिशत हो गया- जो अपने आप में एक उल्लेखनीय और ऐतिहासिक उपलब्धि है। इसलिए, स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण की सफलता को कई तरीकों से मापा जा सकता है। सरकार का उद्देश्य अब गांवों को ओडीएफ प्लस बनाने का है और इसके लिए ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली की भी जरूरत है। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दस साल पहले तक भारत की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी शौचालयों की कमी के कारण खुले में शौच करने के लिए मजबूर थी। वर्तमान में देश में 12 करोड़ से अधिक शौचालय बनाए गए और शौचालय कवरेज का दायरा पहले के 40 प्रतिशत से बढ़कर 100 प्रतिशत हो गया। यह भारत की ऐतिहासिक उपलब्धि है।
मोदी ने देशवासियों से स्वच्छ भारत अभियान में भाग लेने और मन की बात के माध्यम से स्वच्छ भारत मिशन को लागू करने में मदद करने के लिए कहा, तो देश के सभी हिस्सों के लोगों ने उनके आह्वान का जवाब दिया और बड़ी संख्या में भाग लिया। स्वच्छ भारत मिशन से हर साल 60 से 70 हजार बच्चों की जान बच रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2014 से 2019 के बीच 3 लाख लोगों की जान बचाई गई, जो डायरिया के कारण गवां दी जाती। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में बताया कि घर में शौचालय बनने से अब 90 प्रतिशत से अधिक महिलाएं सुरक्षित महसूस करती हैं और स्वच्छ भारत मिशन के कारण महिलाओं में संक्रमण से होने वाली बीमारियों में भी काफी कमी आई है। इसी भांति लाखों स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से शौचालय बनने से, स्कूल छोड़ने की दर में कमी आई है। यूनिसेफ के एक अन्य अध्ययन में बताया कि स्वच्छता के कारण गांवों में परिवारों को हर साल औसतन 50 हजार रुपये की बचत हो रही है, जो पहले बीमारियों के इलाज पर खर्च हो जाते थे।

– बाल मुकुन्द ओझा
वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार
D 32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर


