
−तनवीर जाफ़री
9 जून 2013 को गोवा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की चुनाव अभियान समिति की बैठक के दौरान जिस समय नरेंद्र मोदी को 2014 लोकसभा चुनावों के लिए अभियान समिति का अध्यक्ष मनोनीत किया गया । उस समय उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि “कांग्रेस मुक्त भारत हमारा सपना होना चाहिए।” इस आह्वान के फ़ौरन बाद उन्होंने ट्विटर पर भी इसकी पुष्टि करते हुये लिखा था कि “वरिष्ठ नेताओं ने मुझ में विश्वास जताया है। हम कांग्रेस मुक्त भारत का निर्माण करने में कोई कसर बाक़ी नहीं छोड़ेंगे।” उसके बाद से अब तक वे इसी बात को दूसरे शब्दों में अपनी चुनावी सभाओं या सार्वजनिक रैलियों आदि में कहते रहते हैं। जैसे कभी देश को “कांग्रेस संस्कृति से मुक्ति” दिलाने की बात कभी “पंजे से मुक्ति”,कभी तुष्टिकरण से मुक्ति तो कभी परिवारवाद व भ्रष्टाचार से मुक्ति के रूप में देश के सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस को कोसकर विपक्ष मुक्त लोकतंत्र की अपनी हसरत की अभिव्यक्ति करते रहे हैं। हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की 99 सीटें आने के बाद मोदी की इस हसरत पर विराम लग गया था। फिर भी कांग्रेस के दर्जनों नेताओं को भय लालच आदि के द्वारा अपने पाले में कर कांग्रेस को पूरी तरह कमज़ोर करने की कोशिश ज़रूर की गयी ।
अब बिहार चुनाव परिणामों से उत्साहित भाजपा दिल्ली से लेकर कर्नाटक तक एक बार फिर कांग्रेस व विपक्ष को कमज़ोर करने की कोशिश करने लगी है। इसी उद्देश्य से पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने सूरत में एक कार्यक्रम के दौरान फिर एक बयान दिया है। इस बार मोदी ने कांग्रेस व अन्य विपक्षी सांसदों की ‘पैरवी’ करते हुये उनके राजनीतिक कैरियर के प्रति चिंता ज़ाहिर की है। मोदी ने कहा कि कांग्रेस के युवा सांसदों को पार्टी नेतृत्व बोलने नहीं देता, जिससे उनका राजनीतिक कैरियर बर्बाद हो रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि “जब कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के सांसद मुझसे मिलते हैं, तो वे कहते हैं, ‘हम क्या कर सकते हैं? हमारा कैरियर ख़त्म हो रहा है। हमें संसद में बोलने का मौक़ा ही नहीं मिलता। हर बार यही कहा जाता है कि संसद को ताला लगा दो।” उन्होंने कांग्रेस पर और भी हमले किये।
मोदी द्वारा विपक्षी सांसदों की ‘फ़िक्र’ किये जाने के सन्दर्भ में यह सोचना ज़रूरी है कि अपनी ही पार्टी के शीर्ष नेताओं का बना बनाया कैरियर समाप्त करने या उन्हें अज्ञातवास अथवा राजनैतिक संन्यास पर भेजने के लिये मजबूर करने वाले प्रधानमंत्री मोदी को आख़िर विपक्षी सांसदों के कैरियर की चिंता कैसे सताने लगी ? गुजरात से लेकर दिल्ली तक कितने नेताओं को दरकिनार कर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुँचने वाले मोदी को विपक्षी सांसदों के कैरियर की चिंता सताने लगी ? लाल कृष्ण आडवाणी ने तो ख़ुद मोदी जी का कैरियर बचाने में उनकी मदद की थी। याद कीजिये 2002 के गुजरात दंगों के बाद तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री पद से हटाने की ठान ली थी। उस समय आडवाणी ने ही मोदी का साथ देकर इन की कुर्सी बचाई थी। बाद में मोदी ने आडवाणी जी को कहाँ पहुंचा दिया ? जिनके पैर छुआ करते थे उन्हें ऐसे मार्ग दर्शन मंडल में भेज दिया जहाँ से मार्ग दर्शन लेने की किसी को ज़रुरत ही नहीं होती ? मुरली मनोहर जोशी का वाराणसी से टिकट काट कर पहले ख़ुद चुनाव लड़ा बाद में उन्हें भी मार्ग दर्शन मंडल का रास्ता दिखा दिया ? मार्गदर्शन मंडल के बारे में बताया गया कि 75 की आयु पार करने वालों को इसमें स्थान मिलेगा। परन्तु स्वयं 1950 में जन्मे मोदी भी आज 75 वर्ष की आयु पार कर चुके हैं। तो क्या 75 के नाम पर अपने अनेक वरिष्ठ नेताओं का ‘कैरियर चौपट’ करने वाले मोदी जी को स्वयं अपनी आयु 75 होने पर ‘मार्गदर्शक मंडल’ का रास्ता नज़र नहीं आता ? केंद्र में 79 वर्षीय जीतन राम मांझी मंत्री बनाये जा सकते हैं। 83 वर्षीय आनंदीबेन पटेल व 81 वर्षीय आचार्य देवव्रत राज्यपाल बनाये जा सकते हैं परन्तु सुब्रमण्यम स्वामी, यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा, अरुण शौरी जैसे नेताओं के कैरियर की कोई फ़िक्र नहीं ? ऐसे और भी अनेक उदाहरण हैं जो यह दर्शाते हैं कि मोदी को अपने राजनैतिक कैरियर के सिवा किसी और के राजनैतिक कैरियर की कोई फ़िक्र नहीं होती।
लंबे समय तक भाजपा में रहने वाले शत्रुघ्न सिन्हा ने ख़ुद कहा था कि भाजपा में अब “लोकतंत्र” नहीं, “तानाशाही” है। पूर्व केंद्रीय मंत्री आर के सिंह को बिहार चुनाव परिणाम आते ही इसलिये पार्टी से निकाल दिया गया क्योंकि उन्होंने न केवल पार्टी के अपराधी नेताओं को पार्टी प्रत्याशी बनाने पर सवाल खड़ा किया था बल्कि अडानी पावर व नीतीश सरकार के बीच हुये कथित 62,000 करोड़ रुपये के बिजली घोटाले का भी ख़ुलासा किया था और इस घोटाले की जांच की मांग की थी। इसलिये कांग्रेस या विपक्षी सांसदों के कैरियर को लेकर चिंतित होना दरअसल उनके कैरियर की चिंता करना नहीं बल्कि अपनी इन कथित चिंताओं का प्रदर्शन कर कांग्रेस व विपक्ष को कमज़ोर करने की कोशिश मात्र है। कुछ ऐसी ही कोशिशें इन दिनों लालू यादव के परिवार में पड़ी पारिवारिक फूट को लेकर देखी जा रही हैं। यहाँ भी लालू -तेजस्वी का विरोध करने वाले परिवार के सदस्यों को हवा देने की ख़बरें आ रही हैं।
दरअसल मोदी इस दावे से यह भी जताना चाहते हैं कि विपक्ष के कोटे का पूरा समय राहुल गाँधी ही ले लेते हैं। तो देश यह भी देखता है कि विपक्षी सांसदों को संसद में कितना बोलने दिया जाता है और उनके बोलने पर सत्ता पक्ष कितना व्यवधान पैदा करता है। हाँ राहुल का बोलना इसलिये ज़रूर खटकता होगा क्योंकि इस समय देश के वही अकेले ऐसे नेता हैं जो साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार,अडानी- अंबानी ,नोटबंदी,जी एस टी,चुनाव धांधली, सरकारी संस्थानों पर सत्ता के शिकंजे,किसानों व जातीय जनगणना,एस आई आर जैसे ज्वलंत मुद्दों पर खुलकर बोलते हैं जो सत्ता से हज़म नहीं होता। और राहुल,कांग्रेस व सम्पूर्ण विपक्ष को कमज़ोर करने की ही ग़रज़ से अब एक और दांव चलते हुये देश के 272 पूर्व अधिकारियों जिनमें 16 पूर्व न्यायाधीश,133 पूर्व सैन्य अधिकारी व 14 पूर्व राजदूत सहित 123 पूर्व नौकरशाहों से विपक्ष के नेता राहुल गांधी के विरुद्ध एक खुला पत्र जारी कराया गया है जिसमें राहुल द्वारा चुनाव आयोग पर लगाए गए “वोट चोरी” के आरोपों और संवैधानिक संस्थाओं पर कथित तौर पर बिना सबूत के हमलों की आलोचना की गयी है। परन्तु कांग्रेस ने तो इन 272 “प्रतिष्ठित ” राहुल विरोधियों में से अनेक की सेवा कुंडली ही उधेड़ कर बता दिया कि इस सूची में कितने भ्रष्ट व अनैतिक आचरण के “प्रतिष्ठित ” अधिकारी शामिल हैं। लिहाज़ा विपक्षी सांसदों के कैरियर की चिंता व राहुल गाँधी पर हमले जैसे प्रयास दरअसल ‘विपक्ष मुक्त लोकतंत्र’ के दुष्प्रयास हैं जो भाजपा के 2013 से शुरू हुये ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ मिशन से लेकर अभी तक जारी हैं। सही मायने में लोकतंत्र के लिये सबसे बड़ा ख़तरा राहुल गाँधी नहीं बल्कि सत्ता के ‘विपक्ष मुक्त लोकतंत्र’ के दुष्प्रयास ही हैं।
− तनवीर जाफ़री
वरिष्ठ पत्रकार