रेवंद चीनी एक पहाड़ी बूंटी

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, रेवंद चीनी -क्या हैं रेवंद चीनी के औषधिय गुण? रेवंदचीनी को रेवतिका भी कहते हैं

। यह एक जड़ी-बूटी है। आप रेवंद चीनी से लाभ लेकर अनेक रोगों से रोग मुक्त होसकते है यह आर्टिकल आयुर्वेद एवं आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के शोध पर आधारित है।

आयुर्वेद ग्रंथ भाव प्रकाश के अनुसार. रेवतिका (रेवंदचीनी) तेज सिर दर्द (Blister), रक्त विकार, दस्त (Diarrhoea), डायबिटीज (Diabetes) कैंसर आदि में लाभ पहुंचाता है। भूख न लगना, पाचन धीमा होना, पेशाब में जलन, गांठ, घाव, इत्यादि रोग में भी रेवतिका (रेवंदचीनी) से लाभ ले सकते हैं।

रेवातिका (rhubarb) स्वाद में कडवी और तीखी होती है। इसकी तासीर ठंडी होती है। रेवंद चीनी एक पहाड़ी वनस्पति है, जिसकी जड़ चिकित्सा के लिए प्रयोग में लाई जाती है। रेवंदचीनी की जड़ सख्त लकड़ी जैसी और मोटी होती है। इसकी जड़ भूरे पीले रंग की होती है। जड़ का कोई निश्चित आकार नहीं होता है। रेवंदचीनी (indian rhubarb) हिमालयी वनों में पायी जाने वाली औषधि है यह जम्मू-कश्मीर हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड सिक्किम आसाम में उच्च हिमालय क्षेत्र 3350मीटर से3650मीटर की उंचाई तक पैदा होती है। हम आपके लिए बहुत ही आसान भाषा मैं रेवंदचीनी के फायदे और नुक्सान बता रहे हैं।

अन्य भाषाओं में रेवंदचीनी के नाम (Rhubarb Called in Different Languages)
रेवंदचीनी पॉलिगोनेसी (Polygonaceae) कुल का पौधा है। इसका वानस्पतिक (वैज्ञानिक) नाम रिअम् ऍस्ट्रेल (Rheum australe D.Don) है। वैज्ञानिक इसे Syn-Rheum emodi Wall. ex Meissn भी कहते हैं। रेवंदचीनी को अंग्रेजी में Rhubarb कहते है यह एक अति उपयोगी आयुर्वेदिक औषधि है इस लिए इसके सभी भाषाओं में नाम क्या हैं यह जानना ज़रुरी है क्या कहते हैं अलग-अलग भाषा में इस औषधि को।

English –हिमालयन रुहबर्व (Himalayan rhubarb) तथा इण्डियन रुहबर्व (Indian rhubarb)
Arabic – रेचीनी (Revandchini), रेवन्दहिन्दी (Revandhindi)
Persian – तुर्सक (Tursak), रावन्दे हिन्दी (Ravande hindi), बिखरेवस (Bikhrewas)
Sanskrit – पीतमूला, अम्लपर्णी, गंधिनी, रेवंदचीनी, रेवंदचीनी
Hindi (rhubarb meaning in hindi) – रेवंदचीनी, डोलू, अर्चा
Urdu – रेवन्दचीनी (Revandchini);
Kannada (rhubarb in kannada) – नट-रेवाचिनी (Nat revachini), रेवल चीनी (Reval chini);
Gujarati – गामिनी रेवनचीनी (Gamini revanchini), लड़कीरेवन्दचीनी (Ladki Revand-chini);
Telugu (rhubarb meaning in telugu) – नट्टू (Nattu), अरिवेल चीनी (Areval chini)
Bengali – रेवन्दचीनी (Revandchini), बंगला रेवनचीनी (Bangla revanchini)
Nepali – अकसे चूक (Akse chuk), पदमचल (Padamchal)
Marathi (rhubarb in marathi) – मूलक (Mulak), चरवल चीनी (Charval chini), रेवन्द चीनी (Revand chini)
Punjabi – चूटियाल (Chutiyal)

रेवंदचीनी के फायदे और उपयोग
अनेक लोगों को दांतों से जुड़ी कई तरह की परेशानियां होती है। दांतों में दर्द, मुंह से बदबू आना दांतों के रोगों में आम है। ऐसे में रेवंदचीनी का प्रयोग करना लाभ दिलाता है। दांतों के दर्द से जल्द राहत पाने के लिए रेवंदचीनी की जड़ को कूटकर चूर्ण (revand chini powder) बना लें। इस चूर्ण को दांतों पर मंजन की तरह मलने से दर्द दूर होता है। इससे दांत-मुंह के अन्य रोग, दुर्गन्ध आदि से भी मुक्ति मिलती है।

कब्ज से परेशान है तो रेवंदचीनी का इस्तेमाल कर सकते हैं। घृतकुमारी (एलोवेरा) का गूदा, सनाय के पत्ते तथा शुण्ठी के चूर्ण 12-12 ग्राम की मात्रा में लें। इसमें 6-6 ग्राम काला नमक और सेंधा नमक मिलाएं। इसमें 3-3 ग्राम की मात्रा में विडङ्ग तथा रेवंदचीनी का चूर्ण (revand chini powder) मिलाकर मिश्रण बनाएं। इस मिश्रण चूर्ण को 1-2 ग्राम लेकर उसमें मधु मिलाकर सेवन करने से पुराने से पुराने कब्ज की परेशानी खत्म होती है छोटे बच्चों को यदि स्टूल साफ नहोता हो दो-दो दिन बाद स्टूल जाते हो तो यह योग आयु अनुसार मात्र में सुबह साम गुन गुने पानी में या शहद में मिलाकर दें।

बवासीर के रोगी को यदि खून आता हो तो इसमें रेवंदचीनी तुरंत राहत दिलाती है। रेवंदचीनी की जड़ को पीसकर इसका लेप बवासीर के मस्सों पर लगाएं। इससे बवासीर का दर्द जलन कम होता है और खून आना बंद होता है।

रेवतिका का उपयोग योनि संबंधी कई बीमारियों में कर सकते हैं। योनि में खुजली होने पर रेवंदचीनी के चूर्ण (revand chini powder) को गेहूँ के आटा मिला लें। इस मिश्रण को जल में घोल कर हल्का गुनगुना कर लें। योनि में इसका लेप करने से खुजली की परेशानी ठीक होती है और योनि की शिथिलता तथा अन्य योनि के विकारों का भी नाश होता है।

जल्दी घाव सुख नहीं रहा है तो आप रेवतिका का इस्तेममाल कर सकते हैं। इसके लिए रेवातिका (revand chini benefits) की जड़ को पीसकर घाव पर लगाएं। ऐसा करने से घाव जल्दी भरता है।

रेवंदचीनी का केवल जड़ औषधि के रूप में प्रयोग के लायक होता है। इसके जड़ के प्रयोग के विभिन्न तरीके ऊपर बताये जा चुके हैं.

रेवंदचीनी (revandchini) एक अच्छी औषधि है , लेकिन इसका प्रयोग चिकित्सक के परामर्श के अनुसार ही करना चाहिए ।

रेवंदचीनी के प्रयोग से » 48 घंटे में ही कैंसर और Leukemia के सेल्स ख़त्म होने शुरू हो जाते हैं यह कहना है आयुर्वेद के आचार्यों का आज इसकी पुष्टि अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में होने वाले शोध से भी साबित हो गयी है।
कैंसर के मरीजों पर 25 वर्षों के शोध के बाद केलीफोर्निया यूनिवर्सिटी के मेडिकल फिजिक्स एवं साइकोलॉजी के सीनियर प्रोफेसर डॉ. हर्डिन बी जॉन्स का कहना है कि कैंसर के इलाज के तौर पर प्रयोग की जाने वाली कीमोथैरेपी cancer पीड़ित मरीज को दर्दनाक मौत की तरह ले जा सकती है। ऐसे में वर्तमान में देश और विदेश में कैंसर की प्राकृतिक चिकित्सा बहुत ही ज्यादा प्रचलन में है और ये बहुत ही ज्यादा सस्ती भी है और इसके नतीजे कई गुना अधिक हैं तो आइये जाने Cancer ka natural ilaj.

रूबर्ब पौधा जिसे रेवतचीनी और रेवन्दचीनी के नाम से भी जाना जाता है. यह पौधा आयुर्वेदिक दवाइयों में प्रयोग किया जाता है. इस पौधे की पत्तियां ज़हरीली होती हैं लेकिन इसके डंठल दवा के रूप में प्रयोग किये जाते है

हालिया हुए यूएस में एक शोध के अनुसार, रूबर्ब पौधे की डंठलों को कैंसर के इलाज के लिए प्रयोग में लाया जायेगा. इस शोध में हैरानी भरे परिणाम सामने आए हैं.

Anthraquinone Glycosides नामक केमिकल जो रेवन्दचीनी में पाए जाते हैं ये कैंसर रोधी गुणों से भरपूर हैं, ये व्यक्ति को कैंसर से बचाने और cancer को रोकने में काफी सहायक हैं. इसके अलावा इसमें Parietin नामक विशेष Pigment पाया जाता है. इस पौधे की डंठलों में पाए जाने वाले Parietin नामक एक ख़ास ऑरेंज पिगमेंट जो 6PGD नामक एंजाइम को रोक देता है ये एंजाइम कैंसर सेल की ग्रोथ के लिए जरुरी होता है जब इस एंजाइम की कमी कैंसर सेल में होना शुरू हो जाएगी तो कैंसर सेल्स अपने आप ख़तम होना शुरू हो जाएगी. ।

लेबोरेटरी में किये गये एक शोध में पता लगा है की Parietin पिगमेंट कैंसर के सेल्स को 48 घंटे के अन्दर ही खत्म करने की ताकत रखता है. शोध में इस डंठल का प्रयोग के जरिए दो ही दिनों में लयूकैमिया के आधे से ज्यादा सेल्स को यह पौधा नष्ट कर चुका था।

जॉर्जिया की विनशिप कैंसर इंस्टीट्यूट और एमोरी यूनिवर्सिटी द्वारा 2000 कॉम्पोनेन्ट के साथ इसका परिक्षण किया गया. जिसमें विज्ञानिकों ने पारीटिन पाया. जो एंटी-कैंसर ड्रग के रूप में जाना जाता है.

आयुर्वेद के अनुसार यह सभी कैंसर में रोगों में अति लाभकारी है परन्तु आधुनिक शोध मे11 दिनों पारीटिन का प्रयोग कर पाया की यह फेफड़ों के कैंसर में कारगर है. इसके साथ ही यह ब्रेन और गर्दन के ट्यूमर को भी ख़त्म कर सकता है

रेवंद चीनी आयुर्वेद की बहुत प्रसिद्ध औषिधि है, यह पहाड़ी इलाकों में उत्पन्न होती है, जैसे शिमला, कश्मीर, हरिद्वार इत्यादि. ये आपको बहुत आसानी से पंसारी से मिल जाएगी.

रेवंद चीनी की असली नकली पहचान.
कई बार कुछ लोग रेवंद चीनी के नाम पर कुछ और चीजें दे देते हैं, ऐसे में आप इसको बड़ी आसानी से पहचान से सकते हैं. इसका स्वाद तीखा और कड़वा होता है, इसमें विशेष गंध रहती है, इसमें Calcium Oxalate होता है जिसको चबाने से करकरापन महसूस होगा. इसको चबाने से मुंह की लार पीले रंग की हो जाती है.

आदरणीय श्री मान पं रामकुमार वैध का कैंसर नाशक योग रेवंद चीनी दो भाग शेष सभी एक एक भाग कच्ची हल्दी श्याम तुलसी, पपीते के पत्ते, गेंहू के जवारे, सबुने के फूल, पुनर्नवा,ताजे काकजी निम्बू का छिलका, अश्वगंधा, मुलैठी, काली जीरी, गुडुची, हरड़ , लेमन ग्रास इत्यादि चीजों को मिलाने से, जो की इसकी गुणवत्ता को कई गुणा बढाता है.

सबसे पहले तो ये व्यक्ति को कैंसर से बचाने और कैंसर को रोकने में बहुत ही सहायक हैं, जिस कारण से इसको कोई भी व्यक्ति सेवन कर सकता है।

इन सभी आयुर्वेदिक औषधियों में इस प्रकार के एंजाइम पाए जाते हैं जो कैंसर कोशिकाओं के ऊपर पाए जाने वाली उनके बचाव के लिए बनायीं गयी कोटिंग को नष्ट करती है, जिस से उस कैंसर सेल को ख़त्म करने में आसानी होती है, जिस से जो भी आपका ट्रीटमेंट चल रहा हो, वो चाहे किसी भी पद्धति से हो वो अधिक असर करेगा.
यह कैंसर की कोशिकाओं को ख़त्म करता है और स्वस्थ कोशिकाओं को बचाता है।
यह एक शक्तिशाली एंटी ऑक्सीडेंट का काम करता हैं
यह कैंसर सेल की ग्रोथ को रोकता है
यह कैंसर से बचाव के साथ साथ इससे होने वाली जटिलताओं जैसे उलटी, उबाक, कमजोरी इत्यादि को भी नष्ट करता है.
उपरोक्त सब गुणों के कारण इसका सेवन कैंसर के रोगी को तो तुरंत ही कर देना चाहिए. और कैंसर के रोगी को कुछ परहेज ज़रूर करने चाहिए, जैसे के मीठे का, अनाज का, चाय का. और रोगी को खाने में सिर्फ मौसमी फल और उबली हुई सब्जियां देनी चाहिए।

अगर कैंसर अधिक बढ़ गया हो या शरीर में दर्द होता हो रोगी को , रोगी को तुरंत शक्ति देगा, फ्री रेडिकल्स से बचाएगा, शरीर में खून को बढ़ाएगा और एनर्जी से भरपूर करेगा. रोगी को कैंसर से लड़ने की अद्भुत शक्ति देगा. इसका रिजल्ट रोगी को पहले दिन से ही दिखना शुरू होगा. तीन से चार दिन में रोगी को अभूतपूर्व परिवर्तन महसूस होग।

शोध में पारीटिन का प्रयोग कर पाया की यह फेफड़ों के कैंसर में कारगर है. इसके साथ ही यह ब्रेन और गर्दन के ट्यूमर को भी ख़त्म कर सकता है.

साधारण बिमारियों में रेवन्दचीनी को अल्प मात्रा में 60 से 250 मिलीग्राम दिया जाता है. और अधिक भयंकर बीमारी में इसकी मात्रा 1 से 2 ग्राम तक हो सकती है. रोगी की बीमारी देख कर खुद से इसकी मात्रा निर्धारण करें. इसके सेवन से 6 से 8 घंटे में दस्त हो सकता है. अगर दस्त ज्यादा हो तो फिर इसकी मात्रा कम कर दें. मगर इसमें ग्राही तत्व होने के कारण दस्त भी अपने आप बाद में रुक जाता है. अगर मरोड़ हो तो 2 ग्राम सौंठ या 1 चम्मच अदरक के रस के साथ में एक चम्मच सौंफ देने से मरोड़ रुक जाते हैं. इसके सेवन से पेशाब भी गहरे रंग का हो जाता है।

यह उन मरीजों के लिए बेहद फायदेमंद होगा जो के कैंसर का इलाज ले रहें हैं और इसको वो अपने चल रहे इलाज के साथ भी बड़ी आसानी के साथ ले सकते हैं. चाहे कैंसर प्रथम स्टेज का हो या लास्ट स्टेज का हो, मरीज को यह तुरंत देना शुरू करना चाहिए.

इसमें इस प्रकार के एंजाइम पाए जाते हैं जो कैंसर कोशिकाओं के ऊपर पाए जाने वाली उनके बचाव के लिए बनायीं गयी कोटिंग को नष्ट करती है, जिस से उस कैंसर सेल को ख़त्म करने में आसानी होती है,
यह कैंसर की कोशिकाओं को ख़त्म करता है और स्वस्थ कोशिकाओं को बचाएगा.
यह एक शक्तिशाली एंटी ऑक्सीडेंट का काम करता
हैं वो कैंसर सेल की ग्रोथ को रोकेगा.
यह कैंसर से बचाव के साथ साथ इससे होने वाली जटिलताओं जैसे उलटी, उबाक, कमजोरी इत्यादि को भी नष्ट करता है.।

(( रेवंद चीनी ब्लड कैंसर(Leukemmia)ki चिकित्सा के लिए होम्योपैथी दवाई lMITINEK MERCILET बनाई गरी है जो ब्लड कैंसर की प्रभावी औषधि समझी जाती है))

उपरोक्त सब गुणों के कारण इसका सेवन कैंसर के रोगी को तो तुरंत ही कर देना चाहिए. और कैंसर के रोगी को कुछ परहेज ज़रूर करने चाहिए, जैसे के मीठे का चीनी शक्कर गुड़ पूर्ण तया बंद कर दें गेहूं का आटा नहीं खायें चाय काफी या कैफ़ीन युक्त पदार्थ (दूध और दूध से बने आहार मांसाहार या ये कहना उचित होगा पसूओं से आने वाले आहार केवल ताजा दही लें सकते हैं वह भी देशी गाय या बकरी के दूध की मछली न खायेंऔर रोगी को खाने में सिर्फ मौसमी फल और उबली हुई सब्जियां देनी चाहिए।
यह पोस्ट आयुर्वेद पर आधारित सामान्य जानकारी उपलब्ध कराती है किसी भी चिकित्सा अथवा आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह अथवा चिकित्सा का विकल्प नहीं है।
यशपाल सिंह आयुर्वेद रत्न 9837342534

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