रूस–यूक्रेन युद्ध, अब क्या हो रहा है ? पश्चिम की थकान और भारत के लिए सीख

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जैसा कि हम सब देख रहें हैं कि रूस–यूक्रेन युद्ध अब केवल एक सैन्य संघर्ष नहीं, बल्कि एक वैश्विक शक्ति-परीक्षा बन गया है।अब कहा जा रहा है कि “वह युद्ध ऐसा है जिसे पश्चिम जीत नहीं सकता, खत्म नहीं कर सकता और झेल नहीं सकता।”अमेरिका चाहता है कि रूस धीरे-धीरे कमजोर हो और रूस के सहयोगी भारत और चीन भी कमजोर हों , युरोप हथियारों का बिल भरें और अमेरिका शस्त्र निर्माण करे और बेचे ।

युद्ध का विश्लेषण

बाहर से यह दिख रहा है कि एक सैन्य ठहराव आ गया है । कुछ लोगों को यह पश्चिमी दुर्बलता दिख रही होगी ।यह मान लिया गया कि यदि युद्ध में द्रुत प्रगति नहीं हो रही, तो रूस ही लाभ में है। पश्चिमी देश , आर्थिक रूप से रूस को थका कर हराना चाह रहे हैं।रूस और पश्चिमी शक्तियां दोनों तकनीकी श्रेष्ठता के लिये लगातार प्रयास कर रही हैं ।पर वास्तव में हो क्या रहा है ? जो दिख नहीं रहा है । औद्योगिक असमानता पर पश्चिम चर्चा कर रहा है पर लग यही रहा है कि रूस ने अपने रक्षा उत्पादन को युद्धकालीन मोड में तेजी से ढाला है।रूस को आर्थिक रूप से थकाया तो जा रहा है पर वित्तीय रूप से पश्चिम भी थक रहा है । और इसीलिये अब रूस की सीमा पर ही नहीं बल्कि रूस के अन्दर लंबी दूरी कै मिसाइल्स से आक्रमण की बात हो रही है ।

भारत के लिए सीख: संतुलन और आत्मनिर्भरता का महत्व

रूस–यूक्रेन युद्ध से सबसे बड़ा संदेश यही है कि आर्थिक आत्मनिर्भरता ही रणनीतिक स्थिरता की नींव है।जो देश अपनी ऊर्जा, खाद्य, और रक्षा आपूर्ति में आत्मनिर्भर होता है, वही लंबे भू-राजनीतिक संकटों में टिक सकता है।भारत की दिशा, 2014 के पूर्व दयनीय थी । आज जिस प्रकार से रूस को घेर लिया गया है और भारत जिस प्रकार से रक्षा क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय आयात पर निर्भर था , यदि भारत ने मेक इंडिया कार्यक्रम न चलाया होता तो हम कहीं के भी न रहते । लोग टिप्पणी करेंगे कि नेहरू जी ने आई आई टी बनवाया .. तो मित्रों बोफोर्स क्यों स्वीडेन से खरीद रहे थे ? सत्तर वर्षों में भारत का रक्षातंत्र क्यों नहीं शक्तिशाली किया गया ?

भारत का रक्षामंत्री मुलायम सिंह यादव, रक्षामंत्री रहते हुये , वायुसेना के विमानों का उपयोग करके मैनपुरी में मुजरा देखने जाते रहे !पर, इस बात पर आज सभी सहमत होंगे कि भारत ने पिछले दशक में इस दिशा में ठोस कदम बढ़ाए हैं

मेक इन इंडिया और ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियानों ने रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऊर्जा और विनिर्माण में नई धार दी है।

डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर, सेमीकंडक्टर नीति, और हरित ऊर्जा निवेश जैसे कदम भारत को दीर्घकालिक आर्थिक सुरक्षा प्रदान करते हैं।

भारत की संतुलित विदेश नीति , रूस और पश्चिम दोनों से संबंध बनाए रखना भी रणनीतिक परिपक्वता का संकेत है।

मेक इन इंडिया का व्यापक अर्थ

‘मेक इन इंडिया’ केवल उत्पादन का नारा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आत्मविश्वास और रणनीतिक स्वतंत्रता का प्रतीक है।इसका उद्देश्य यह है कि भारत निर्माण, नवाचार और तकनीकी स्वावलंबन के माध्यम से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में केंद्रस्थ भूमिका निभाए।डिजिटल इंडिया, अंतरिक्ष तकनीक, और रक्षा विनिर्माण की प्रगति बताती है कि भारत अब “खरीदने वाला नहीं, बनाने वाला देश” बन रहा है। आज भारत स्वयम् के बल पर एक लम्बा युद्ध भी झेल सकता है ।आज 50% का टैरिफ़ भी भारत पर असर तो डालेगा पर भारत की कमर नहीं टूटेगी

निष्कर्ष

रूस–यूक्रेन युद्ध ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आर्थिक धैर्य और औद्योगिक शक्ति ही किसी देश की वास्तविक शक्ति है।

जहाँ पश्चिम इस समय रणनीतिक उलझन में फंसा हुआ दिखाई देता है, भारत को अपने संतुलित दृष्टिकोण, आत्मनिर्भरता और दीर्घदृष्टि को बनाए रखना चाहिए।

भविष्य का युद्ध केवल हथियारों से नहीं, बल्कि उद्योग, तकनीक और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था से जीता जाएगा । और भारत उसी दिशा में दृढ़ता से आगे बढ़ रहा है।

राज शेखर तिवारी

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