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“महिलाओं पर डबल बोझ: शिक्षा विभाग में कपल केस अंक हटाना”

“नौकरीपेशा महिलाओं के घर और ऑफिस के दबाव में बढ़ता संघर्ष और सरकारी नीतियों का असंतुलित प्रभाव”

हरियाणा में शिक्षा विभाग की ट्रांसफर पॉलिसी में कपल केस अंक हटाने का निर्णय नौकरीपेशा महिलाओं के लिए गंभीर चुनौती है। समाज में महिलाओं से अपेक्षित “आदर्श पत्नी” और “आदर्श बहू” की भूमिका उन्हें घर और ऑफिस दोनों में बराबरी का बोझ उठाने पर मजबूर करती है। पुरुष कर्मचारी अक्सर केवल अपनी नौकरी पर ध्यान देते हैं, जबकि महिलाएं घर का खाना बनाना, बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल और ऑफिस—सभी जिम्मेदारियां निभाती हैं। यह नीतिगत बदलाव महिलाओं पर अतिरिक्त दबाव डालता है और सशक्तिकरण के दावे को कमजोर करता है।

– डॉ. सत्यवान सौरभ

समाज में महिलाओं की स्थिति और उनके सशक्तिकरण को लेकर आज भी अनेक चुनौतियाँ हैं। विशेषकर नौकरीपेशा महिलाओं के लिए यह चुनौती और भी गहरी है क्योंकि उन्हें घर और कार्यस्थल—दोनों स्थानों पर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना पड़ता है। हरियाणा में हाल ही में शिक्षक स्थानांतरण नीति में किए गए बदलाव—जिनमें “कपल केस” के अंक हटाने की सिफारिश शामिल है—ने इस मुद्दे को फिर से उजागर कर दिया है। यह बदलाव केवल प्रशासनिक नहीं है, बल्कि महिलाओं के जीवन और उनके पारिवारिक संतुलन पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है।

हरियाणा के शिक्षा विभाग की स्थानांतरण नीति २०१६ से विकसित होती रही है। इस नीति के तहत यदि एक ही परिवार में पति और पत्नी दोनों शिक्षक हों, तो उन्हें कपल केस अंक (प्राथमिकता अंक) दिए जाते थे। इसका उद्देश्य था कि दोनों पति-पत्नी एक ही जिले या नज़दीकी स्थान पर पदस्थापित हो सकें, ताकि पारिवारिक संतुलन बना रहे और महिलाओं को नौकरी के साथ परिवार संभालने में सुविधा मिले। इस प्रकार की प्राथमिकता न केवल महिलाओं के लिए लाभकारी थी, बल्कि यह पूरे परिवार के जीवन, बच्चों की पढ़ाई, पारिवारिक जिम्मेदारियों और मानसिक संतुलन के लिए भी महत्वपूर्ण थी।

२०१६ के बाद इस नीति में कुछ मामूली बदलाव हुए, लेकिन कपल केस अंक बने रहे। २०२३ के ड्राफ्ट स्थानांतरण नीति में अब इन अंक को हटाने की सिफारिश की गई है। इसका अर्थ है कि पति-पत्नी दोनों शिक्षक होने पर अब उन्हें पहले जैसी प्राथमिकता नहीं मिलेगी। इस बदलाव का प्रभाव सीधे महिला शिक्षिकाओं पर पड़ता है। उन्हें अब परिवार और नौकरी के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। पारिवारिक जीवन प्रभावित हो सकता है, क्योंकि पति-पत्नी अलग-अलग स्थानों पर नियुक्त हो सकते हैं। शिक्षक समुदाय में असंतोष और विरोध बढ़ सकता है। शिक्षक संघों और सामाजिक संगठनों ने इसे पारिवारिक और लैंगिक दृष्टिकोण से आलोचना की है। उनका कहना है कि यह निर्णय “महिलाओं के हितों के विरुद्ध” और “परिवार विरोधी” कदम है।

“डबल बर्डन” एक सामाजिक अवधारणा है, जिसका अर्थ है कि महिला को घर और नौकरी—दोनों जगह अपने कर्तव्यों का पालन करना पड़ता है, जबकि पुरुष केवल अपनी नौकरी पर ध्यान देते हैं। यह असमानता आज भी भारतीय समाज में गहराई से मौजूद है।

एक उदाहरण देखें। एक नौकरीपेशा पुरुष के लिए घर से भोजन ले जाना सामान्य बात है, और उसके घर के अन्य कामों का बोझ कम होता है। वहीं नौकरीपेशा महिला को घर का खाना बनाना, बच्चों की देखभाल, बुजुर्गों की सहायता, घर की सफाई—सभी जिम्मेदारियों के साथ-साथ अपनी नौकरी भी निभानी पड़ती है। इस असमानता के कारण महिला पर मानसिक, शारीरिक और सामाजिक दबाव बढ़ जाता है। जब स्थानांतरण नीति जैसी सरकारी नीतियाँ भी इस असमानता को नजरअंदाज करती हैं, तो यह सशक्तिकरण के दावों को कमजोर कर देती है।

महिला सशक्तिकरण केवल नौकरी या योजनाओं तक सीमित नहीं होना चाहिए। इसका असली अर्थ है कि महिलाओं को समान अवसर, समान वेतन, समान जिम्मेदारी और सुरक्षित वातावरण मिले।

हालांकि, जब कपल केस अंक हटाए जाते हैं, तो यह सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से महिलाओं के लिए असमानता को बढ़ाता है। भारतीय समाज में अक्सर महिलाओं से “आदर्श पत्नी” और “आदर्श बहू” बनने की अपेक्षा की जाती है। इसका अर्थ है कि घर और परिवार की जिम्मेदारी महिला पर ही डाली जाती है, जबकि पुरुषों को इस दबाव से अपेक्षाकृत कम गुजरना पड़ता है।

कपल केस अंक हटने का असर इस असमानता को और बढ़ा देता है। महिला शिक्षिका को नौकरी में सफलता पाने के लिए अपने परिवार के समय और जिम्मेदारियों का नुकसान उठाना पड़ सकता है। पारिवारिक संतुलन बिगड़ता है, और इससे महिला की मानसिक और भावनात्मक स्थिति प्रभावित होती है। यह बदलाव महिलाओं को केवल “कर्तव्यपूर्ण” भूमिका तक सीमित करने जैसा है, जबकि उन्हें समान अधिकार और अवसर मिलने चाहिए।

समाज में सुधार की दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता है। घर के काम को बराबरी से बाँटना चाहिए। पुरुषों को घरेलू कार्यों और बच्चों की देखभाल में बराबरी का योगदान देना चाहिए। सरकारी नीतियों में लैंगिक संवेदनशीलता लाना आवश्यक है। महिलाओं को केवल “त्याग और कर्तव्य” का बोझ न देना, बल्कि समान अधिकार और दर्जा देना चाहिए।

नीतियों में लैंगिक संवेदनशीलता लाना जरूरी है। स्थानांतरण नीतियों में कपल केस जैसी प्राथमिकताओं को बनाए रखना चाहिए और महिला शिक्षिकाओं के लिए पारिवारिक परिस्थितियों को ध्यान में रखना चाहिए। शिक्षक संघों और समाज की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। संघों के माध्यम से सरकारी निर्णयों पर विचार-विमर्श और विरोध किया जा सकता है। मीडिया और सामाजिक मंचों पर लैंगिक असमानता और डबल बर्डन के प्रभाव पर जागरूकता फैलाना आवश्यक है।

घर और नौकरी का संतुलन बनाए रखना भी जरूरी है। परिवार में जिम्मेदारियों का बराबर बंटवारा किया जाना चाहिए। पुरुषों को घरेलू कार्यों और बच्चों की देखभाल में बराबरी का योगदान देना चाहिए। आरटीआई और पारदर्शिता के माध्यम से शिक्षा विभाग से जानकारी लेना चाहिए कि कपल केस अंक हटाने का निर्णय क्यों और किस आधार पर लिया गया। इससे नीति बनाने में पारदर्शिता और न्यायसंगत निर्णय सुनिश्चित होंगे।

हरियाणा में शिक्षक स्थानांतरण नीति में कपल केस अंक हटाना केवल एक प्रशासनिक बदलाव नहीं है, बल्कि यह महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के लिए एक चुनौती भी है। यह बदलाव महिलाओं के ऊपर डबल बर्डन को और बढ़ा देता है। महिला सशक्तिकरण का असली अर्थ केवल नौकरी या योजनाओं तक सीमित नहीं, बल्कि समान जिम्मेदारी, पारिवारिक संतुलन और सुरक्षित वातावरण भी है।

यदि समाज और सरकार सच में महिलाओं को सशक्त बनाना चाहते हैं, तो उन्हें नीतियों में लैंगिक संवेदनशीलता, पारिवारिक जिम्मेदारी का बराबर बंटवारा, और महिला अधिकारों की रक्षा पर ध्यान देना होगा। समान अवसर, समान जिम्मेदारी और पारदर्शिता ही महिलाओं के लिए वास्तविक सशक्तिकरण का आधार है। बिना इसके, किसी भी नीतिगत या आर्थिक पहल का प्रभाव सीमित रहेगा और डबल बर्डन जैसी समस्याएं बनी रहेंगी।–

– डॉ. सत्यवान सौरभ

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