भारी हंगामें के बीच लोकसभा में वीबी−जी− रामजी विधेयक पारित

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भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास में १८ दिसंबर, २०२५ का दिन एक अत्यंत महत्वपूर्ण और विवादास्पद अध्याय के रूप में दर्ज हो गया है। आज लोकसभा में भारी शोर-शराबे और विरोध प्रदर्शनों के बीच ‘विकसित भारत – गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)’ यानी ‘विबी-जी रामजी’ (VB-G RAM G) विधेयक २०२५ को पारित कर दिया गया। यह विधेयक दो दशक पुराने ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम’ (मनरेगा) का स्थान लेगा। सदन के भीतर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जो तीखी नोक-झोंक और वैचारिक संघर्ष देखने को मिला, उसने देश के संसदीय शिष्टाचार और नीतिगत बदलावों पर एक नई बहस छेड़ दी है।

​विधेयक के मुख्य प्रावधान और सरकार का तर्क

​केंद्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सदन में इस विधेयक का बचाव करते हुए इसे ‘विकसित भारत २०४७’ के लक्ष्य की ओर एक क्रांतिकारी कदम बताया। सरकार के अनुसार, इस नए कानून का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में केवल गड्ढे खोदना नहीं, बल्कि स्थायी संपत्ति का निर्माण करना है।

​रोजगार के दिनों में वृद्धि: नए विधेयक के तहत ग्रामीण परिवारों को अब वर्ष में १०० दिनों के बजाय १२५ दिनों के रोजगार की कानूनी गारंटी दी गई है।

​परिसंपत्ति निर्माण: इसमें जल सुरक्षा, ग्रामीण सड़कें, बाजार अवसंरचना और जलवायु अनुकूल कार्यों को प्राथमिकता दी गई है।

​तकनीकी निगरानी: भ्रष्टाचार रोकने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित जांच, जीपीएस निगरानी और आधार आधारित भुगतान को अनिवार्य बनाया गया है।

​खेती के समय विराम: बुवाई और कटाई के व्यस्त समय के दौरान सार्वजनिक कार्यों पर ६० दिनों के विराम का प्रावधान है, ताकि किसानों को श्रमिकों की कमी का सामना न करना पड़े।

​विपक्ष का कड़ा प्रहार और ‘नाम’ पर संग्राम

​जैसे ही विधेयक पर चर्चा शुरू हुई, समूचा विपक्ष एकजुट होकर विरोध में उतर आया। विपक्ष का सबसे बड़ा विरोध इस योजना से ‘महात्मा गांधी’ का नाम हटाए जाने को लेकर था। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने इसे राष्ट्रपिता का अपमान और ‘बदले की राजनीति’ करार दिया।
​विपक्षी सांसदों ने आरोप लगाया कि सरकार केवल नाम बदलने में विश्वास रखती है, जबकि इस नए विधेयक की बारीकियां ग्रामीण गरीबों के अधिकारों को छीनने वाली हैं। विपक्ष के अनुसार, पहले मनरेगा में अकुशल श्रम की मजदूरी का पूरा बोझ केंद्र सरकार उठाती थी, लेकिन नए ‘विबी-जी रामजी’ विधेयक में केंद्र और राज्यों के बीच व्यय का अनुपात ६०:४० कर दिया गया है। इससे राज्य सरकारों पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा और योजना के प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा आएगी।

​सदन में अभूतपूर्व हंगामा और गरमा-गरमी

​सदन की कार्यवाही के दौरान दृश्य काफी तनावपूर्ण थे। विपक्षी सांसद सदन के बीचों-बीच (वेल) में आ गए और सरकार विरोधी नारे लगाए। चर्चा के दौरान जब केंद्रीय मंत्री जवाब दे रहे थे, तब कुछ सदस्यों द्वारा विधेयक की प्रतियां फाड़ने और उन्हें अध्यक्ष की पीठ की ओर फेंकने की खबरें भी आईं। विपक्षी दलों ने इस विधेयक को ‘संसदीय स्थायी समिति’ के पास भेजने की मांग की थी, जिसे सरकार ने अस्वीकार कर दिया।
​सदन में ध्वनि मत से विधेयक पारित होने के बाद विपक्ष ने बहिर्गमन किया। प्रियंका गांधी वाड्रा और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने संसद परिसर में महात्मा गांधी की प्रतिमा के समक्ष प्रदर्शन किया और इसे ‘बापू के सपनों की हत्या’ बताया।

​अन्य प्रमुख मामले: प्रदूषण और परमाणु ऊर्जा

​विधेयक के अतिरिक्त, आज संसद में दिल्ली और उत्तर भारत में बढ़ते वायु प्रदूषण पर भी चर्चा हुई। पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने सदन को आश्वासन दिया कि सरकार वायु गुणवत्ता सुधारने के लिए युद्ध स्तर पर कार्य कर रही है। इसके अलावा, कल पारित हुए ‘शांति’ (SHANTI) विधेयक यानी परमाणु ऊर्जा संशोधन विधेयक पर भी चर्चा की गूंज सुनाई दी, जिसमें निजी क्षेत्र की भागीदारी को लेकर चिंताएं जताई गईं।

​निष्कर्ष और भविष्य की राह

​’विबी-जी रामजी’ विधेयक का पारित होना भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़े बदलाव का संकेत है। जहां सरकार इसे दक्षता और आधुनिकता का मेल बता रही है, वहीं राज्यों पर बढ़ता वित्तीय भार और गांधी जी का नाम हटाना आने वाले समय में एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना रहेगा। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि राज्य सरकारें इस ६०:४० के अनुपात को कैसे स्वीकार करती हैं और क्या यह योजना वास्तव में ग्रामीण भारत की तस्वीर बदल पाएगी।
​क्या आप चाहेंगे कि मैं इस विधेयक के वित्तीय प्रावधानों या राज्यों पर पड़ने वाले प्रभाव का विस्तृत विवरण तैयार करूँ?
​विबी-जी रामजी विधेयक पर संसद की बहस
यह वीडियो लोकसभा में आज हुई बहस और इस विधेयक के पारित होने के दौरान रही गहमागहमी की सीधी झलक दिखाता है।

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