भगत सिंह: “इंकलाब से आज तक”

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“क्रांति बंदूक की गोली से नहीं, बल्कि विचारों की ताकत से आती है।”

भगत सिंह का जीवन केवल एक क्रांतिकारी गाथा नहीं, बल्कि एक विचारधारा का प्रतीक है। उनकी शहादत से पहले उनके विचारों की ताकत थी, और उनकी शहादत के बाद भी उनका प्रभाव अमर है। आज जब हम आर्थिक असमानता, सांप्रदायिकता और भ्रष्टाचार से जूझ रहे हैं, तो भगत सिंह के विचार पहले से भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं। उनका सपना केवल ब्रिटिश शासन से मुक्ति तक सीमित नहीं था; वे एक ऐसे भारत की कल्पना कर रहे थे, जहाँ सबको समान अधिकार और अवसर मिले।

–डॉ. सत्यवान सौरभ

23 मार्च 1931—लाहौर की जेल में तीन नौजवानों के कदमों की आहट सुनाई देती है। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव मुस्कुराते हुए फांसीघर की ओर बढ़ रहे हैं। मौत का कोई खौफ नहीं, बल्कि आंखों में एक चमक है—क्रांति की, बदलाव की। वे जानते हैं कि उनके विचार कभी नहीं मरेंगे। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई। लेकिन क्या सच में एक क्रांतिकारी मर सकता है? उनके विचार, उनकी सोच और उनकी प्रेरणा आज भी जीवंत हैं। वे केवल ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ नहीं लड़े, बल्कि एक ऐसे भारत के लिए संघर्ष किया, जो समानता, न्याय और स्वतंत्रता पर आधारित हो।

एक विचारक का जन्म

28 सितंबर 1907 को पंजाब के बंगा गांव (अब पाकिस्तान) में जन्मे भगत सिंह का बचपन किताबों और क्रांतिकारी चर्चाओं के बीच बीता। उनके परिवार में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी थी। लेकिन 1919 का जलियांवाला बाग हत्याकांड उनके लिए किसी सदमे से कम नहीं था। उन्होंने महसूस किया कि आजादी केवल एक सपना नहीं, बल्कि संघर्ष की हकीकत बननी चाहिए। भगत सिंह बचपन से ही विद्रोही और जिज्ञासु थे। जलियांवाला बाग हत्याकांड (1919) ने उनके दिल को झकझोर दिया और यह तय कर दिया कि वे केवल दर्शक नहीं बने रह सकते।

क्रांति की राह पर पहला कदम

हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) से जुड़कर भगत सिंह ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अपनी लड़ाई को दिशा दी। सॉन्डर्स हत्याकांड (1928) – लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या की। यह एक क्रांतिकारी संदेश था कि अत्याचार का प्रतिरोध किया जाएगा। असेंबली बम कांड (1929) – भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिश संसद में बम फेंका, लेकिन यह किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं था। वे गिरफ्तार होने के लिए आए थे ताकि अपने विचारों को अदालत के मंच से पूरे देश तक पहुंचा सकें। नका मकसद केवल हिंसा नहीं था। उनका इरादा लोगों को जगाना था, उन्हें यह दिखाना था कि आजादी केवल राजनीतिक बदलाव नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव भी होनी चाहिए।

जेल में विचारों की क्रांति

भगत सिंह केवल बंदूक के क्रांतिकारी नहीं थे, वे विचारों की ताकत में विश्वास रखते थे। जेल में रहते हुए उन्होंने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की, जिससे ब्रिटिश सरकार को झुकने पर मजबूर होना पड़ा। उन्होंने कई लेख लिखे, जिनमें समाजवाद, धर्म और स्वतंत्रता पर उनके विचार साफ दिखाई देते हैं। उनका मानना था कि असली क्रांति तब होगी जब समाज में बदलाव की लहर आएगी। यह कहना गलत नहीं होगा कि भगत सिंह की असली ताकत उनकी कलम और उनकी सोच थी। जेल में रहते हुए उन्होंने कई लेख लिखे, जिनमें उन्होंने समाजवाद, धर्म, स्वतंत्रता और क्रांति के बारे में अपनी गहरी सोच व्यक्त की। उन्होंने कहा था – “अगर बहरों को सुनाना है, तो आवाज़ को बहुत ऊँचा करना होगा।”

शहादत और अमरता

23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई। लेकिन उनकी मौत केवल एक घटना नहीं थी, यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए ईंधन बन गई। उनकी विचारधारा, उनका साहस और उनकी क्रांतिकारी भावना आज भी जीवंत है। भगत सिंह की विचारधारा केवल ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ नहीं थी, बल्कि यह एक शोषणविहीन, न्यायसंगत और वैज्ञानिक सोच पर आधारित समाज की वकालत करती थी। उनकी विचारधारा आज भी हमें एक नई दिशा देने में सक्षम है।

आज के समय में भगत सिंह की विचारधारा की प्रासंगिकता

आज जब हम आर्थिक असमानता, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, सामाजिक भेदभाव और सांप्रदायिकता जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं, भगत सिंह की विचारधारा पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गई है। उन्होंने न केवल स्वतंत्रता संग्राम के लिए लड़ाई लड़ी, बल्कि शोषणमुक्त और समानता पर आधारित समाज की कल्पना भी की। भगत सिंह का मानना था कि असली आज़ादी तभी मिलेगी जब जनता शिक्षित और जागरूक होगी। आज भी, बेहतर शिक्षा व्यवस्था और तर्कशील सोच की जरूरत बनी हुई है। उन्होंने जाति, धर्म और वर्ग के भेदभाव से मुक्त समाज की वकालत की थी। आज भी हमें सामाजिक समरसता और समान अवसरों की दिशा में काम करने की जरूरत है। भगत सिंह ने युवाओं को बदलाव का वाहक माना था। आज, जब देश के युवा विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपनी आवाज उठा रहे हैं, भगत सिंह की विचारधारा उन्हें मार्गदर्शन दे सकती है। भगत सिंह ने एक ऐसी शासन व्यवस्था की कल्पना की थी जो जनता की सेवा करे, न कि अपने स्वार्थ के लिए सत्ता का दुरुपयोग करे। आज के समय में भी पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग बनी हुई है।

क्या हम उनके सपनों का भारत बना सके?

आज जब हम सामाजिक असमानता, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता से लड़ रहे हैं, भगत सिंह के विचार पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गए हैं। उन्होंने केवल राजनीतिक आज़ादी की नहीं, बल्कि आर्थिक और सामाजिक समानता की भी बात की थी। भगत सिंह केवल एक नाम नहीं, एक विचारधारा हैं

 भगत सिंह की क्रांति बंदूक से नहीं, बल्कि विचारों से थी। उन्होंने हमें सिखाया कि वास्तविक बदलाव संघर्ष और बलिदान से आता है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है सोचने और सवाल करने की शक्ति। आज, जब हम उनके विचारों को अपने जीवन में अपनाने की बात करते हैं, तो यह जरूरी हो जाता है कि हम उनके सपनों के भारत के निर्माण में अपना योगदान दें।

“इंकलाब जिंदाबाद!”

– डॉo सत्यवान सौरभ,

कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार

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