
आलोक पुराणिक
दिल्ली का पुराना किला अलग किस्म के दर्दों का साक्षी रहा है।
पाकिस्तान जानेवाले यहां शरणार्थी के बतौर रहे। लाखों लोग मारे गये बंटवारे में। लाखों लोग इधर से उधर हुए, सामान और उससे ज्यादा दर्द लेकर। पाकिस्तान बना किसके लिए, पाकिस्तान बनने से फायदा किसे हुआ, इन सवालों के जवाब अब तो मिल जाते हैं कि पाकिस्तान बनने का सबसे ज्यादा फायदा पाकिस्तानी आर्मी को हुआ। पाकिस्तानी आर्मी ही पाकिस्तान को चला रही है, पाकिस्तानी आर्मी ही पाकिस्तान में धंधा कारोबार चलाती है और पाकिस्तानी आर्मी ही आतंक से लेकर अदालतें चलाती हैं।
पाकिस्तान का बनना क्या है, यह बात दरअसल उन्हे भी ना पता थी, जो पाकिस्तान बनाने से ठीक पहले नेतृत्वकारी भूमिकाओं में थे। अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे हुसैन हक्कानी की एक किताब है-पाकिस्तान बिटवीन मास्क एंड मिलिट्री। इस किताब में हक्कानी पाकिस्तान के दूसरे गवर्नर जनरल और दूसरे प्रधानमंत्री ख्वाजा नाजिमुद्दीन के हवाले से एक महत्वपूर्ण बात बताते हैं। किताब के मुताबिक ख्वाजा नाजिमुद्दीन ने बंटवारे से कुछ महीने पहले ही एक संवाद में यह साफ किया था कि उन्हे नहीं पता कि पाकिस्तान का मतलब क्या और मुस्लिम लीग में किसी को नहीं पता। मुस्लिम लीग ही जिन्ना के नेतृत्व में पाकिस्तान बनाने का झंडा उठा रही थी।
पाकिस्तान अंधों का हाथी था, हरेक अंधा अपने हिसाब से मतलब निकाल रहा था, आर्मी का मतलब ऐसे में बहुत आसानी से सध गया और अब करीब पिचहत्तर साल बाद यह कहा जा सकता है कि पाकिस्तान ऐसा मुल्क है, जिसे जिन्ना ने बहुत मेहनत के साथ पाकिस्तानी आर्मी जनरलों के लिए बनाया, जिसमें लूटपाट का हिस्सा पाकिस्तान के इलीट को अपने हिसाब से मिलता रहता है।
खैर एक शेर सुनिये, बंटवारे के मारे लोगों पर ही-
पानी में अक्स और किसी आसमाँ का है
ये नाव कौन सी है ये दरिया कहाँ का है
अहमद मुश्ताक़