
वस्त्र मंत्रालय के विकास आयुक्त (हस्तशिल्प) कार्यालय ने हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद के सहयोग से आज नई दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय शिल्प परिसर (द कुंज) में कमलादेवी चट्टोपाध्याय शिल्प व्याख्यान शृंखला के पहले संस्करण का शुभारंभ किया। इस कार्यक्रम में पद्म भूषण राजीव सेठी ने ‘आने वाली पीढ़ी के लिए हस्तशिल्प’ विषय पर अपना व्याख्यान दिया। ।
श्री राजीव सेठी द्वारा दिए गए उद्घाटन व्याख्यान में उन महत्वपूर्ण प्रश्नों पर प्रकाश डाला गया जो आज हस्तनिर्मित उत्पादों को परिभाषित करते हैं, जैसे कि क्या ये तेजी से बदल रही तकनीकी दुनिया में टिके रह सकते हैं और किस प्रकार सदियों पुरानी मजबूती स्थानान्तरण (माइग्रेशन ) और सांस्कृतिक समरूपता जैसी समकालीन चुनौतियों का सामना कर सकती हैं। श्री सेठी ने मानव हाथ की शाश्वत शक्ति, उसकी अंतर्ज्ञान, कौशल और संवेदनशीलता को एक रचनात्मक शक्ति के रूप में रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि कोई भी मशीन इसकी पूरी तरह से नकल नहीं कर सकती है। इस बात पर भी प्रकाश डाला कि हस्तनिर्मित शिल्प किस प्रकार कम मशीनीकृत उत्पादन, स्थानीय आजीविका और देश भर में महिलाओं और हाशिए पर पड़े समूह के सशक्तिकरण के माध्यम से स्थिरता के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है।
इस अवसर पर हस्तशिल्प की विकास आयुक्त श्रीमती अमृत राज ने कहा कि यह व्याख्यान इस बात की याद दिलाता है कि भारत के लाखों कारीगर समावेशी, सतत विकास और हस्तनिर्मित उत्कृष्टता में वैश्विक नेतृत्व के हमारे दृष्टिकोण के केंद्र में बने हुए हैं। उन्होंने आगे कहा कि यह शृंखला कमलादेवी जी के शिल्प को शिक्षा, आजीविका और राष्ट्र निर्माण के साथ एकीकृत करने के आग्रह को श्रद्धांजलि है।भारत सरकार में हस्तशिल्प और कारीगर-आधारित गतिविधियों के लिए विकास आयुक्त (हस्तशिल्प) का कार्यालय नोडल एजेंसी है। यह हस्तशिल्प के विकास, विपणन और निर्यात में सहायता करता है और शिल्प कला के रूपों और कौशल को बढ़ावा देता है।
इस व्याख्यान में हस्तशिल्प की विकास आयुक्त श्रीमती अमृत राज; विकास आयुक्त (हथकरघा) डॉ. एम बीना; ईपीसीएच के पूर्व अध्यक्ष श्री रवि के पासी; ईपीसीएच के अतिरिक्त कार्यकारी निदेशक श्री राजेश रावत, प्रख्यात डिजाइनर, विद्वान, शिल्प गुरु, राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता और वास्तुकार समेत 100 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।(यह व्याख्यान शृंखला कमलादेवी चट्टोपाध्याय की दूरदर्शी विरासत को श्रद्धांजलि अर्पित करती है, जिन्हें व्यापक रूप से भारत के शिल्प पुनर्जागरण की जननी माना जाता है। उन्होंने भारत की हस्तशिल्प और हथकरघा परंपराओं को पुनर्जीवित करने और संस्थागत रूप देने में अग्रणी भूमिका निभाई। उनके आजीवन काम ने कारीगरों को सशक्त बनाने, स्वदेशी शिल्प को बढ़ावा देने और भारतीय हस्तशिल्प को वैश्विक मंच पर स्थापित करने में मदद की


