प्रारंभिक जीवन, विवाह और क्रांति से जुड़ाव
दुर्गा भाभी /दुर्गावती देवी (7 अक्टूबर, 1907- 15 अक्टूबर, 1999) भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्रान्तिकारियों की प्रमुख सहयोगी थीं।प्रसिद्ध क्रांतिकारी भगतसिंह के साथ इन्हीं दुर्गावती देवी ने 18 दिसम्बर, 1928 को वेश बदलकर कलकत्ता मेल से यात्रा की थी।चन्द्रशेखर आज़ाद के अनुरोध पर ‘दि फिलॉसफी ऑफ़ बम’ दस्तावेज तैयार करने वाले क्रांतिकारी भगवतीचरण बोहरा की पत्नी दुर्गावती बोहरा क्रांतिकारियों के बीच ‘दुर्गा भाभी’ के नाम से मशहूर थीं।सन 1927 में लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिये लाहौर में बुलायी गई बैठक की अध्यक्षता दुर्गा भाभी ने की थी।तत्कालीन बम्बई के गर्वनर हेली को मारने की योजना में टेलर नामक एक अंग्रेज़ अफ़सर घायल हो गया था, जिस पर गोली दुर्गा भाभी ने ही चलायी थी।
‘दुर्गा भाभी’ से जुड़ी आजादी की खास बातें
1- उत्तर प्रदेश के सिराथू तहसील क्षेत्र के शहजादपुर गांव में जन्मीं दुर्गा भाभी ने क्रांतिकारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर फिरंगियों से मोर्चा लिया।इस महान वीरांगना का जन्म सात अक्टूबर 1907 को शहजादपुर गांव में पं. बांके बिहारी के यहां हुआ था।
2- क्रांतिकारियों के संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट एसोसिएशन (एचआरएसए) के मास्टर ब्रेन प्रो. भगवती चरण वोहरा की पत्नी दुर्गा का परिवार और मायका दोनों सम्पन्न थे।उनके पिता इलाहाबाद कलेक्ट्रेट में नाजिर थे।
3- 10 साल की उम्र में ही उनका विवाह एक रेलवे अधिकारी के बेटे से हो गया।शुरू से ही पति भगवती चरण वोहरा का रुझान क्रांतिकारी गतिविधियों में था,भगवती को ना सिर्फ बम बनाने में महारथ हासिल थी बल्कि वो अपने संगठन के ब्रेन भी कहे जाते थे।
4- भगत सिंह के संगठन ‘नौजवान भारत सभा’ का मेनीफेस्टो भगवती ने ही तैयार किया था।
5- जब चंद्रशेखर आजाद की अगुआई में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के रूप में दिल्ली के फिरोज शाह कोटला मैदान में फिर से गठन हुआ,तो भगवती को ही उसके प्रचार की जिम्मेदारी दी गई।
6- 19 दिसम्बर 1928 का दिन था,भगत सिंह और सुखदेव सांडर्स को गोली मारने के दो दिन बाद सीधे दुर्गा भाभी के घर पहुंचे थे।
7- दुर्गा भाभी ने अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए पंजाब प्रांत के एक्स गवर्नर लॉर्ड हैली पर हमला करने की योजना बनाई,दुर्गा ने उस पर 9 अक्टूबर 1930 को बम फेंका।
8- 1956 में जब नेहरू को उनके बारे में पता चला तो लखनऊ में उनके स्कूल में एक बार मिलने आए।
9- सरदार भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त जब केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने जाने लगे तो दुर्गा भाभी और एक अन्य वीरांगना सुशीला मोहन ने अपनी उंगुली काटकर रक्त से दोनों क्रांतिकारियों को तिलक लगाया था।
10- 14 अक्टूबर, 1999 को गाजियाबाद के एक फ्लैट में उनकी मौत हो गई,तब वो 92 साल की थीं।
दुर्गा भाभी का जन्म 7 अक्टूबर 1907 को शहजादपुर, इलाहाबाद (वर्तमान कौशांबी, उत्तर प्रदेश) के एक संपन्न ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता पंडित बांके बिहारी इलाहाबाद कलेक्ट्रेट में नाजिर थे। मात्र 10 वर्ष की अल्पायु में उनका विवाह लाहौर के भगवती चरण वोहरा से हुआ, जो खुद एक संपन्न परिवार से थे, लेकिन उनका मन अंग्रेजों की गुलामी से देश को मुक्त कराने में लगा था।
उनके ससुर को अंग्रेजों द्वारा ‘राय साहब’ की उपाधि मिली थी, लेकिन भगवती चरण वोहरा ने अंग्रेजों की दासता को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने 1923 में नेशनल कॉलेज से बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की, और वह ‘नौजवान भारत सभा’ के प्रमुख प्रचार सचिव बने, जिसकी स्थापना उन्होंने भगत सिंह और रामचंद्र कपूर के साथ मिलकर की थी। अपने पति के क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित होकर, दुर्गा भाभी भी पूर्ण रूप से क्रांति में कूद पड़ीं। उन्होंने 1923 में प्रभाकर की डिग्री हासिल की और जल्द ही वह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) की सक्रिय सदस्य बन गईं।
संगठन और त्याग में भूमिका
दुर्गा भाभी का मायका और ससुराल दोनों पक्ष संपन्न थे। उनके ससुर ने उन्हें 40 हजार रुपये और उनके पिता ने 5 हजार रुपये दिए थे, जिसे दुर्गा भाभी और उनके पति ने संकट के दिनों में देश को आजाद कराने के लिए क्रांतिकारियों पर खर्च कर दिया।
उनका घर क्रांतिकारियों के लिए आश्रय स्थल था, जहां वह सभी का स्नेहपूर्वक सत्कार करती थीं। इसीलिए सभी क्रांतिकारी, विशेषकर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु उन्हें सम्मान से ‘भाभी’ कहकर पुकारते थे। उनकी भूमिका केवल खाना बनाने या देखभाल करने तक सीमित नहीं थी; वह गुप्त सूचनाएं पहुंचाने, चंदा इकट्ठा करने और सबसे महत्वपूर्ण, पिस्तौल और बम बनाने के सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाने-ले जाने का काम करती थीं। वह पति भगवती चरण वोहरा के साथ बम बनाने में भी सहायता करती थीं।
साहसी कारनामा: भगत सिंह को बचाना
दुर्गा भाभी के जीवन का सबसे साहसी और यादगार अध्याय तब आया जब 18 दिसंबर 1928 को उन्होंने भगत सिंह को अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंककर लाहौर से बाहर निकाला।
लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह और उनके साथियों ने जॉन सॉन्डर्स को गोली मार दी थी। इस घटना के बाद लाहौर में चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात थी और भगत सिंह को गिरफ्तार करने के लिए जाल बिछाया जा चुका था। ऐसे में दुर्गा भाभी ने एक असाधारण योजना बनाई।
वेश-बदल: दुर्गा भाभी भगत सिंह की पत्नी बनीं। भगत सिंह ने अपने बाल कटवा लिए, सूट-बूट पहना और हैट लगाई, जिससे वह एक रईस और आधुनिक ‘साहब’ लगे।
यात्रा: भगत सिंह (पति) और दुर्गा भाभी (पत्नी) फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट में अपने तीन वर्षीय अबोध पुत्र के साथ बैठे।
राजगुरु की भूमिका: राजगुरु ने उनके नौकर की भूमिका निभाई, जो मैले कपड़ों में उनके सामान की देखभाल कर रहे थे।
इस साहसी वेश-बदल और रणनीति के कारण, पांच सौ से अधिक पुलिसकर्मियों की तैनाती के बावजूद, वे सभी लाहौर रेलवे स्टेशन से कलकत्ता मेल द्वारा सकुशल बच निकलने में कामयाब रहे। दुर्गा भाभी ने इस यात्रा में अपने पति की जीवन भर की कमाई का उपयोग किया, जिससे देश के महान क्रांतिकारियों की जान बचाई जा सकी। बाद में, जब भगत सिंह असेंबली बम कांड के बाद गिरफ्तार हुए, तो उन्हें छुड़ाने के लिए दुर्गा भाभी ने अपने सारे आभूषण बेचकर वकील को 3000 रुपये दिए थे।
प्रत्यक्ष संघर्ष और अंतिम जीवन
लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज के बाद दुर्गा भाभी इतनी क्रोधित थीं कि उन्होंने खुद स्कॉट को मारने की इच्छा जताई थी। उन्होंने केवल सहयोग नहीं किया, बल्कि 9 अक्टूबर 1930 को उन्होंने गवर्नर हेली पर गोली भी चलाई। गवर्नर हेली तो बच गया, लेकिन उसका सैनिक अधिकारी टेलर घायल हो गया। उन्होंने मुंबई के पुलिस कमिश्नर को भी गोली मारी थी।
मई 1930 में उनके पति भगवती चरण वोहरा बम का परीक्षण करते समय रावी नदी के तट पर शहीद हो गए। पति की शहादत के बावजूद, दुर्गा भाभी साथी क्रांतिकारियों के साथ सक्रिय रहीं। यह वह दुर्गा भाभी ही थीं, जिन्होंने चंद्रशेखर आजाद को वह पिस्तौल लाकर दी थी, जिससे उन्होंने अंतिम समय में अंग्रेजों से लड़ते हुए खुद को गोली मारी थी।
गिरफ्तारी और जेल की सजा काटने के बाद, दुर्गा भाभी धीरे-धीरे सक्रिय क्रांति से दूर हुईं। उन्होंने स्वतंत्रता के बाद अपने जीवन को शिक्षा के प्रसार में समर्पित कर दिया। उन्होंने गाजियाबाद में एक कन्या विद्यालय में अध्यापन का कार्य किया और 1938 के अंत में वह दिल्ली कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष भी चुनी गईं।
दुर्गा भाभी को उनके अदम्य साहस के कारण ब्रिटिश पुलिस ‘आयरन लेडी’ कहकर बुलाती थी। उनका जीवन यह दिखाता है कि भारत की आज़ादी की लड़ाई में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने वाली महिलाओं का त्याग और समर्पण कितना विशाल था।