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दुर्गा भाभी का जन्म 7 अक्टूबर को हुआ । वे सुप्रसिद्ध क्रान्तिकारी थीं।। दुर्गा भाभी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू की तरह फांसी पर नहीं चढ़ीं लेकिन कंधें से कंधा मिलाकर आजादी की लड़ाई लड़ती रहीं। स्वतंत्रता सेनानियों के हर आक्रमक योजना का हिस्सा बनी। दुर्गा भाभी बम बनाती थीं तो अंग्रेजों से लोहा लेने जा रहे देश के सपूतों को टीका लगाकर विजय पथ पर भी भेजती थीं।
देश की आजादी की लड़ाई के लिए महिलाओं ने खुद को बलिदान कर दिया था। झांसी की रानी, अहिल्या बाई और कई दमदार व्यक्तित्व की महिलाओं की जाबांजी का भारतीय इतिहास गवाह है। इन महिलाओं में एक नाम और भी शामिल हैं, वह हैं दुर्गावती देवी जी का। दुर्गावती देवी को आप दुर्गा भाभी के नाम से जानते होंगे।
दुर्गा भाभी को भारत की ‘आयरन लेडी’ भी कहा जाता है। बहुत ही कम लोगों को ये बात पता होगी कि जिस पिस्तौल से चंद्रशेखर आजाद ने खुद को गोली मारकर बलिदान दिया था, वह पिस्तौल दुर्गा भाभी ने ही आजाद को दी थी। इतना ही नहीं दुर्गा भाभी एक बार भगत सिंह के साथ उनकी पत्नी बन कर अंग्रेजों से बचाने के लिए उनके प्लान का हिस्सा बनी थीं। लाला लाजपत राय की मौत के बाद दुर्गा भाभी इतना गुस्से में थीं कि उन्होंने खुद स्काॅर्ट को जान से मारने की इच्छा जताई थी।
दुर्गा भाभी और उनके पति भगवतीचरण वोहरा दोनों ही ऐसे महान क्राँन्तिकारी हैं, जिनका पूरा जीवन राष्ट्र को समर्पित रहा । पति बलिदान हुये, और दुर्गा भाभी का पूरा जीवन संघर्ष और समर्पण में बीता । उनका संघर्ष स्वतंत्रता के पूर्व भी रहा और स्वतंत्रता के बाद भी। यह भी संयोग है कि उनका जन्म भी अक्टूबर माह में ही हुआ और निधन भी अक्टूबर में…
दुर्गा भाभी के दादाजी पं. शिवशंकर कौशांबी जिले के अंतर्गत शहजादपुर के जमींदार थे तो पिता पं बाँके बिहारी इलाहाबाद कलेक्टोरेट में नाजिर । दुर्गा भाभी अपने मायके में तीसरी कक्षा तक पढ़ी थीं । उन दिनों अल्पायु में विवाह की प्रथा थी । इस के अनुसार केवल दस वर्ष की आयु में दुर्गा का विवाह लाहौर के वोहरा परिवार में हो गया । उनके ससुर को अंग्रेजों से राय बहादुर की उपाधि मिली थी । इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि उनके मायके और ससुराल की पृष्ठभूमि कितनी प्रभाव शाली थी लेकिन ये दोनों पति पत्नि को अंग्रेजों द्वारा प्रदत्त सुविधा और दिखावटी प्रतिष्ठा में जीना पसंद न था । इसलिए दोनों ने अपनी अलग राह पकड़ी।
दुर्गा भाभी ने विवाह के बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रखी और प्रभाकर की डिग्री हासिल की । उनके पति भी बचपन से ही अंग्रेजों की ज्यादती के विरुद्ध थे । किशोर वय से ही वे अंग्रेज विरोधी गतिविधियों से जुड़ गये । और धीरे धीरे क्रान्तिकारी आंदोलन से । उन्होंने 1926 नौजवान भारत सभा का गठन किया । इसके साथ ही दोनों पति पत्नि क्रान्ति कारी आँदोलन में सक्रिय रहे । दुर्गा भाभी के जिम्मे हथियारों तथा बम बनाने की सामग्री को यहाँ से वहां ले जाने का और संदेश यहाँ से वहां पहुँचाने का दायित्व था। वे एक बार बंबई में पिस्तौल के साथ गिरफ्तार भी हुई । मुकदमा चला सजा हुई छूटकर आईं फिर अपने काम में लग गयीं।
18 दिसम्बर 1928 को वेश बदल कर वे सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी भगतसिंह को लेकर कलकत्ता गयीं थी। इस यात्रा में उन्होंने भगतसिंह की पत्नी की भूमिका निभाई थी। यह उनके अभिनय का ही कमाल था कि सख्त चेकिंग के बीच भी वे भगतसिंह को सुरक्षित निकाल ले गईं थीं। 1930 में उनके पति बम बनाकर उसका परीक्षण करते समय शहीद हो गये थे । लेकिन कुछ समय के शोक के बाद दुर्गा भाभी फिर अपने काम में लग गईं ।
उन्होंने 9 अक्टूबर 1930 को गवर्नर हैली पर गोली चलाई । हैली तो बच गया लेकिन उनका अंग रक्षक घायल हुआ । इस घटना के बाद क्राँतिकारियों का दमन बढ़ गया । क्राँन्तिकारियों के दमन के बाद वे दिल्ली गयीं जहाँ पुलिस ने भारी परेशान किया । कभी भी उठा ले जाती और छोड़ जाती फिर उन्हे दिल्ली छोड़ने को कहा गया। वे लाहौर चली गईं । वहां उन्हे निगरानी में रखा गया । वे गिरफ्तार हुईं । तीन साल जेल में रहीं । अंत में अनेक शर्तों के साथ छोड़ा । जेल से बाहर आकर वे लखनऊ पहुँची । जहां उन्होंने एक मोन्टेसरी स्कूल खोला ।
आजादी के बाद भी वे लगभग गुमनामी में ही रहीं। इसका कारण जो भी रहे हों। उन्हे वह सम्मान मिला ही नहीं जिसकी वे हकदार थीं । अंत में 1999 में उन्होंने 92 वर्ष की अवस्था में संसार छोड़ा।
एक बार बड़े जोर शोर से गाजियाबाद जिले का नाम बदलकर दुर्गा भाभी नगर किए जाने की मुहिम स्थानीय स्तर पर चलाई गई थी।
उनकी स्मृति को नमन