जब अटल जी ने संयुक्त राष्ट्र सभा में हिंदी में भाषण दिया

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चार अक्टूबर 1977 को तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 32वें अधिवेशन को हिंदी में संबोधित कर एक ऐतिहासिक क्षण बनाया था। यह संयुक्त राष्ट्र के मंच से किसी भारतीय द्वारा हिंदी में दिया गया पहला भाषण था। इस भाषण में उन्होंने भारत की दृढ़ आस्था, लोकतंत्र की पुनर्स्थापना, विश्व बंधुत्व और कई महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों को प्रमुखता से उठाया था।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में ऐतिहासिक हिंदी भाषण (1977)

​वाजपेयी जी ने अपने भाषण की शुरुआत में भारत की जनता की ओर से संयुक्त राष्ट्र के लिए शुभकामनाओं का संदेश देते हुए, संस्था में भारत की दृढ़ आस्था को व्यक्त किया।

​1. लोकतंत्र और मौलिक अधिकारों की पुनर्स्थापना

​यह भाषण मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी की सरकार बनने के केवल छह माह बाद दिया गया था, जिसने भारत में आपातकाल के बाद सत्ता संभाली थी। वाजपेयी जी ने अपनी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में भारत में लोकतंत्र और मूलभूत मानव अधिकारों की पुनर्प्रतिष्ठा पर ज़ोर दिया।
​उन्होंने कहा:

​”जनता सरकार को शासन की बागडोर संभाले केवल छह मास हुए हैं। फिर भी इतने अल्प समय में हमारी उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं। भारत में मूलभूत मानव अधिकार पुनः प्रतिष्ठित हो गए हैं। जिस भय और आतंक के वातावरण ने हमारे लोगों को घेर लिया था, वह अब दूर हो गया है। ऐसे संवैधानिक कदम उठाए जा रहे हैं जिनसे यह सुनिश्चित हो जाए कि लोकतंत्र और बुनियादी आजादी का अब फिर कभी हनन नहीं होगा।”

​यह वक्तव्य दुनिया को यह बताने के लिए महत्वपूर्ण था कि भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में अपनी जड़ों की ओर लौट आया है और व्यक्ति की स्वतंत्रता को सर्वोच्च महत्व देता है।

​2. वसुधैव कुटुंबकम् और आम आदमी की महत्ता

​वाजपेयी जी ने अपने भाषण में भारतीय संस्कृति के मूल विचार ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ (सारा संसार एक परिवार है) की परिकल्पना को प्रस्तुत किया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र को इस स्वप्न को साकार करने की संभावना के रूप में देखा।
​उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके लिए राष्ट्रों की सत्ता और महत्ता से अधिक महत्व आम आदमी की प्रतिष्ठा और प्रगति रखती है।

​”अध्यक्ष महोदय, ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की परिकल्पना बहुत पुरानी है। भारत में सदा से हमारा इस धारणा में विश्वास रहा है कि सारा संसार एक परिवार है। अनेकानेक प्रयत्नों और कष्टों के बाद संयुक्त राष्ट्र के रूप में इस स्वप्न के अब साकार होने की संभावना है। यहां मैं राष्ट्रों की सत्ता और महत्ता के बारे में नहीं सोच रहा हूं। आम आदमी की प्रतिष्ठा और प्रगति मेरे लिए कहीं अधिक महत्व रखती है।”

​उन्होंने सफलता और असफलता का मापदंड बताते हुए कहा कि हमें इस बात से नापा जाना चाहिए कि हम “पूरे मानव समाज, वस्तुतः हर नर-नारी और बालक के लिए न्याय और गरिमा की आश्वस्ति देने में प्रयत्नशील हैं या नहीं।” यह कथन उनके मानवतावादी दृष्टिकोण को दर्शाता है।

​3. रंगभेद और साम्राज्यवाद का विरोध

​अटल बिहारी वाजपेयी ने रंगभेद (Apartheid) की नीति की कड़े शब्दों में निंदा की, विशेष रूप से अफ्रीका के संदर्भ में। उन्होंने ज़ोर दिया कि रंगभेद के सभी रूपों का जड़ से उन्मूलन होना चाहिए।

​”अफ्रीका में चुनौती स्पष्ट है, प्रश्न यह है कि किसी जनता को स्वतंत्रता और सम्मान के साथ रहने का अनपरणीय अधिकार है या रंगभेद में विश्वास रखने वाला अल्पमत किसी विशाल बहुमत पर हमेशा अन्याय और दमन करता रहेगा। निःसंदेह रंगभेद के सभी रूपों का जड़ से उन्मूलन होना चाहिए।”

​इसके अलावा, उन्होंने मध्य-पूर्व के मुद्दे को उठाते हुए इजरायल द्वारा वेस्ट बैंक और गाजा में नई बस्तियां बसाकर अधिकृत क्षेत्रों में जनसंख्या परिवर्तन करने के प्रयास की भी निंदा की और संयुक्त राष्ट्र से इसे अस्वीकार करने का आग्रह किया।

​4. निरस्त्रीकरण और शांति की नीति

​वाजपेयी ने स्पष्ट किया कि भारत शांति और निरस्त्रीकरण के प्रति दृढ़ संकल्पित है। शीत युद्ध के चरम के दौरान, उन्होंने गुटनिरपेक्षता की भारतीय नीति को दोहराया और परमाणु हथियारों के प्रसार पर चिंता व्यक्त की।

​”भारत न तो कोई शस्त्र शक्ति है और न बनना ही चाहता है। नई सरकार ने अपने असंदिग्ध शब्दों में इस बात की पुनर्घोषणा की है।”

​भारत की विदेश नीति के सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हुए, उन्होंने कहा कि भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन के माध्यम से शांति और सभी राष्ट्रों के साथ दोस्ती के लिए खड़ा है।

​5. मानव का भविष्य

​भाषण का एक सर्वस्पर्शी विषय ‘मानव का भविष्य’ था। उन्होंने कहा कि यह वह विषय है जो आगामी वर्षों और दशकों में बना रहेगा। उन्होंने राष्ट्रों के बीच सहयोग, गरीबी उन्मूलन, विकास और एक नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि विकासशील देशों को उनके संसाधनों का उचित मूल्य मिलना चाहिए।
​भाषण का समापन करते हुए उन्होंने पूरी दुनिया को एक विश्व (One World) के आदर्शों की प्राप्ति के लिए भारत के त्याग और बलिदान की भावना का आश्वासन दिया और “जय जगत” (विश्व की जय) के नारे के साथ धन्यवाद कहा।
​यह भाषण केवल हिंदी भाषा का गौरव नहीं था, बल्कि यह भारत के नैतिक, लोकतांत्रिक और मानवतावादी सिद्धांतों का अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक सशक्त प्रदर्शन था।
​यह वीडियो वाजपेयी जी के 1977 के संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिए गए ऐतिहासिक हिंदी भाषण के मुख्य अंशों को दर्शाता है।

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