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60 साल पहले अमेरिका जा बसी महिला  अपने पूर्वजों के पद चिन्ह खोजने  बिजनौर आई

पूर्णिमा गुप्ता

राजकीय इंटर कालेज बिजनौर के पुराने निष्प्रयेाज्य भवन में दादा चरण दास मित्तल के नाम पर बने उद्यान के पत्थर के पास अशाेक मधुप और पूर्णिमा गुप्ता

राजकीय इंटर कालेज बिजनौर में प्रधानाचार्यधर्मवीर सिंह से बात करती श्रीमती पुर्णिमा गुप्ता

राजकीय इंटर कालेज लैंसीडाउन में प्रधानाचार्यों के नाम के बोर्ड पर पूर्णिमा गुप्ता के दादा चरणदास मित्तल जी का लिखा नाम । यहां से ट्रांस्वर पर मित्तल साहब बिजनौर आए

लगभग  60 साल पूर्व  अमेरिका जा बसीं  पूर्णिमा गुप्ता आजकल  भारत आई हुई हैं। यहां वह अपने पूर्वजों के पद चिन्ह और पहचान खोजने में लगी हैं। पिछले दो दिन  से वह बिजनौर में अपने नाना और दादाजी के कार्य स्थल और  निवास का पता लगा   रही  हैं। यहां राजकीय इंटर कालेज बिजनौर में प्रधानाचार्य पद पर तैनाती के दौरान छात्रों ने इनके नाना कृपाराम और दादा चरण दास मित्तल का कत्ल कर दिया था।

इलाहाबाद में 13 अगस्त 1946 को जन्मी  पूर्णिमा गुप्ता ने आईआईटी रुड़की से 1968 बी.आर्क किया। उसके बाद ये अमेरिका चली गईं और वहीं सैटिल हो गई। यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनॉय से इन्होंने 1970 में एम.आर्क किया। इन्होंने AXA इक्विटेबल कंपनी में वित्तीय प्रोफेशनल के रूप में कार्य किया और वर्ष 2000 में सेवानिवृत्त हुईं। अमेरिका में वह  सामाजिक जीवन और गतिविधियों में ये शामिल रहीं। वे  बताती हैं कि उनके नाना  कृपाराम और दादा चरण दास मित्तल  बिजनौर के राजकीय  इंटर काँलेज में प्रधानाचार्य  रहे। अपनी सेवा  के दौरान इन दोनों का बिजनौर में ही उनके छात्रों ने कत्ल कर दिया था । वे कहती हैं की उनके परिवार में  दादा और  नाना के बारे में कोई  जिक्र नही होता था। दादी रूकमणी देवी और नानी मायावती देवी की निरीह हालत उन्होंने देखी है।  दादा जी की मौत पर उनके  पिता को गुस्सा जरूर होता था , किंतु उनके हत्यारे को फंसी होने  की बात आते ही वह शांत हो जाते थे।

वह कहती हैं कि अमेरिका के लगभग 50 साल से जीवन में वह अपनी नानी और दादी के मुर्झाए  चेहरे को नही भूल पाईं  और अब नाना जी और दादा जी के निशान खोजने बिजनौर आ गईं। वे कहती हैं कि अपने रूडकी इंजीनियरिंग काँलेज के जूनियर चांदपुर निवासी उद्योगपति श्री अरविंद मित्तल जी के कहने पर बिजनौर के इतिहास के बड़े जानकार  और  सीनियर पत्रकार अशोक मधुप  से मिलीं।

अशोक मधुप ने उनके नाना कृपाराम और दादा  चरण दास मित्तल के बारे में विस्तार से जानकारी दी। इन दोनों  की मौत  पर चिंगारी सांध्य  दैनिक में छपा अपना लेख भी  उपलब्ध कराया। उन्होंने मुझे  राजकीय इंटर काँलेज भी दिखाया। यहां उनके  नाना जी और दादाजी प्रधानाचार्य रहे। दादा की के कत्ल की जगह नार्मल स्कूल ( आज के राजकीय अंबेडकर बालिका छात्रावास) की बाउंड़ी दिखाई । वहां दादा जी का चाकू मारकर कत्ल किया गया था। वह बताती हैं कि मैंने आज का जिला जज का निवास और उनका पुराना कोर्ट देखा। बिजनौर वालों के अनुसार यह पहले कांशीपुर हाउस था। इसी कांशीपुर हाउस में मेरे नानाजी और  दादाजी  रहा करते थे। 

दादाजी कृपाराम जी का 41 साल की आयु में 1928 में बिजनौर काँलेज के एक कक्ष में कत्ल कर दिया गया था। अशोक मधुप के लेख के अनुसार  उस समय विद्यालय में अनुशासन बहुत सख्त था। प्रतिदिन पीटी और सायंकाल में खेल अनिवार्य था। फूलसिंह नामक छात्र विद्यालय के व्यायाम शिक्षक से नाराज था। वार्षिक परीक्षाएं चल रही थी। पीटीआई महोदय कक्षा सात के कक्ष निरीक्षक थे। उर्दू का पेपर था। प्रधानाध्यापक श्री कृपाराम जी पेपर में कुछ संशोधन करा रहे थे। फूलसिंह अपने पिता की लाइसेंसी बन्दूक लेकर कक्ष में आ गया। व्यायाम शिक्षक पर निशाना साधकर उसने जैसे ही फायर किया कि व्यायाम शिक्षक को बचाने के लिए प्रधानाचार्य कृपाराम उनके सामने आ गए। उन्होंने फूल सिंह को कक्षा में प्रवेश करते देख लिया था। फलस्वरूप व्यायाम शिक्षक तो बच गए पर प्रधानाचार्य को गोली लग गई। इससे उनकी मौत हो गई। वरिष्ठ शिक्षक और पत्रकार वीपी गुप्ता बतातें हैं कि प्रधानाचार्य कृपाराम मुजफ्फरनगर के रहने वाले  उनके रिशतेदार होते थे। छात्र  फूल सिंह को कुछ साल की सजा हुई। बाद में वह छूट गया।

  सन उन्नीस सौ बयालिस में चरणदास मित्तल गवर्नमेंट कॉलेज के प्रधानाध्यापक होते थे। वे अनुशासन के बड़े सख्त थे। होली का अवसर था। कुछ माह पूर्व ही उन्होंने कार्य संभाला था। विद्यालय की लिस्ट में होली से पहले पड़ने वाली रंग की एकादशी का अवकाश नही था। कुछ छात्र एकादशी के अवकाश कराना चाहते थे। छात्र मित्तल साहब से मिले। मित्तल साहब ने कहा कि विद्यालय की अवकाश सूची में रंग की इकादशी के अवकाश की व्यवस्था नही है। अतः अवकाश करना संभव नहीं है। छात्र छुट्टी की जिद कर बैठे । उन्होंने छोटे छात्रों को कक्षाओं से भगा दिया। छुट्टी चाहने वाले छात्र स्कूल के गेट पर लेट उन्होंने गेट पर बैठने वाले सभी  11 छात्रों को निलंबित कर दिया। इन छात्रों में अधिकांश हिंदू छात्र थे। इनके साथ मुस्लिम छात्र जमील अहमद पुत्र शब्बीर हुसैन (मुख्तार )भी था। शहर के प्रमुख लोगों के अनुरोध पर जमील और दो अन्य हिंदू छात्रों को छोड़कर शेष सभी आठ छात्रों का निलंबन रद्द कर दिया गया ।

कालेज की पत्रिका के अनुसार मित्तल साहब वर्तमान जजी (पूर्व काशीपुर हाउस)  में रहते थे । लोग कहते हैं कि जमील उनके घर पहुंचा और उनकी बहुत अनुनय −विनय की। कहा कि उनका और उनके साथियों का निलंबन रद्द कर दिया जाए । अगले दिन पांच मार्च 1942 को प्रधानाचार्य मित्तल साइकिल से स्कूल आ रहे थे। दो चपरासी भी उनके साथ थे। पत्रकार स्वर्गीय राजेंद्र पाल सिंह कश्यप और वरिष्ठ  पत्रकार  वीपी गुप्ता बताते थे कि घटना पूर्व नार्मल स्कूल के सामने की है। नार्मल स्कूल की बांउड्री की जगह उस समय खाई बनी थी। जमील ने मित्तल साहब की साइकिल को धक्का देकर खाई में गिरा दिया। जब तक मित्तल साहब संभलते चाकू से उन्हें बुरी तरह गोद दिया गया। इससे उनकी मौत हो गई । पुलिस में दर्ज  रिपोर्ट के अनुसार  मित्तल साहब को पांच चाकू मारे गए। छह मार्च को टीकम सिंह सब इंस्पैक्टर ने जमील को नजीबाबाद से गिरफतार कर लिया ।  इस केस का ट्रायल बीबी लाल स्पेशल जज के कोर्ट में हुआ। 31 जुलाई 1942 को  न्यायालय ने  जमील को फांसी की सजा सुनाई। इस केस की अपील उच्च् न्यायालय में हुई। अपील को निरस्त कर दिया गया। 31 जुलाई  1944 को जमील को बरेली जेल मे फांसी दे दी गई। विशेष  बात यह रही कि कृपा राम के केस में फूल सिंह की ओर से और चरण दास मित्तल के केस में सरकार की और से उस समय के प्रसिद्ध वकील और आज के सिविल के अधिवक्ता अभय कृषण सक्सैना के पिता जी ने पैरवी की थी। 

पूर्णिमा गुप्ता लैंसीडाउन के जहरीखाल के राजकीय इंटर काँलेज भी गईं। यहां से चरण दास मित्तल 1942 में ट्रांसवर होकर  बिजनौर आए और यहां कत्ल कर दिये गए। उन्होंने  राजकीय इंटर काँलेज  बिजनौर  के पुराने कंडम हो चुके भवन में चरण दास मित्तल के उद्यान परिसर में लगे के पत्थर के पास खडे होकर कुछ फोटो भी कराईं। काँलेज के प्रधानाचार्य धर्मवीर सिंह से कुछ पुरानी जानकारी भी ली। 

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