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1911 में 12 दिसंबर को कोलकत्ता से दिल्ली आई राजधानी


भारत के औपनिवेशिक इतिहास में सन 1911 एक अत्यंत महत्वपूर्ण वर्ष माना जाता है। इसी वर्ष कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) से दिल्ली को भारत की नई राजधानी घोषित किया गया। यह निर्णय ब्रिटिश शासन की राजनीतिक, सैन्य, प्रशासनिक और भू-रणनीतिक सोच से प्रेरित था। राजधानी परिवर्तन केवल स्थान का बदलाव नहीं था, बल्कि भारत की व्यवस्था, शासन और सरकारी ढाँचे पर दूरगामी प्रभाव डालने वाला ऐतिहासिक मोड़ था।

कोलकाता कब से कब तक भारत की राजधानी रहा
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1757 के प्लासी युद्ध और 1764 के बक्सर युद्ध के बाद बंगाल पर अपना नियंत्रण मजबूत कर लिया था। प्रशासनिक कार्यों के विस्तार के साथ ही सन 1772 में वारेन हेस्टिंग्स ने कोलकाता को ब्रिटिश भारत की वास्तविक राजधानी बना दिया। उसके बाद लगभग 139 वर्ष तक, 1772 से लेकर 1911 तक कोलकाता ही भारत की राजधानी रहा। हालाँकि दिल्ली दरबार और अन्य समारोह कभी-कभी दिल्ली में होते थे, लेकिन प्रशासन, न्याय व्यवस्था, व्यापारिक गतिविधियाँ और सत्ता का केंद्र कोलकाता ही था।


कोलकाता को राजधानी बनाने के प्रमुख कारण थे—
ब्रिटिश व्यापार का केंद्र – शुरुआती दौर में कंपनी का मुख्य उद्देश्य व्यापार था और कोलकाता बंगाल की समृद्धि व समुद्री रास्तों के कारण सबसे अनुकूल स्थान था।
राजस्व व्यवस्था का मजबूत आधार – बंगाल से मिलने वाला राजस्व साम्राज्य के लिए सबसे बड़ा स्रोत था।
भौगोलिक सुविधाएँ – समुद्र के निकट होने से यूरोप से संपर्क आसान था।
सत्ता का आरंभिक केंद्र – कंपनी सरकार ने अपने शीर्ष अधिकारियों का निवास और प्रशासनिक कार्यालय यहीं स्थापित किए थे।

राजधानी दिल्ली स्थानांतरित करने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई
समय के साथ कोलकाता की सीमाओं, राजनीतिक परिस्थिति और भूगोल ने ब्रितानियों के सामने कई चुनौतियाँ उत्पन्न कर दीं। कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित थे—

१. कोलकाता का भौगोलिक असुरक्षित होना
पूर्वी भारत का यह क्षेत्र समुद्र के निकट था, जिससे युद्धकाल में यह बाहरी शक्तियों के आक्रमण का आसान लक्ष्य बन सकता था।
ब्रिटिश सत्ता अब संपूर्ण भारत पर फैली थी और ऐसे में एक अधिक सुरक्षित, देश के मध्य में स्थित राजधानी की आवश्यकता महसूस हुई।

२. बंगाल में राष्ट्रीय आंदोलन का बढ़ता प्रभाव
उन्नीसवीं सदी के अंत तक बंगाल राष्ट्रीय आंदोलन का प्रमुख केंद्र बन चुका था।
अनुशीलन समिति, क्रांतिकारी गतिविधियाँ और औपनिवेशिक शासन के खिलाफ बड़े आंदोलन लगातार हो रहे थे।
ब्रिटिश सरकार राजधानी को असंतोष के केंद्र से हटाकर एक शांत व राजनीतिक रूप से रणनीतिक स्थान पर ले जाना चाहती थी।

३. कोलकाता की भीड़, अव्यवस्था और प्रशासनिक कठिनाई
कोलकाता उस समय दुनिया की सबसे भीड़भाड़ वाली औपनिवेशिक शहरों में से था। सड़कों, पुलों, जल निकासी, आवागमन आदि पर भारी दबाव था।
सरकार को लगा कि इतनी बड़ी और अव्यवस्थित नगरी से पूरे भारत का शासन चलाना कठिन होता जा रहा है।

४. दिल्ली का ऐतिहासिक महत्व और सामरिक स्थिति
दिल्ली सदियों से भारत की राजनीति का केंद्र रही थी—चाहे वह मुगल हों, तोमर हों, खिलजी हो या तुगलक।
ब्रिटिश चाहते थे कि भारत के प्रशासनिक ढाँचे को दिल्ली से जोड़कर वे स्वयं को इस ऐतिहासिक साम्राज्य के उत्तराधिकारी के रूप में प्रस्तुत करें।
दिल्ली उत्तर, पश्चिम और मध्य भारत के केंद्र में स्थित थी, जो सामरिक दृष्टि से अधिक उपयुक्त था।

५. पूरे भारत में बेहतर संचार सुविधा
दिल्ली को रेलवे, राजमार्ग और आंतरिक संपर्क के लिए सर्वाधिक अनुकूल माना गया।
उत्तर भारत, पंजाब, राजस्थान, यूपी, मध्य भारत और आगे अफगानिस्तान मार्ग तक ब्रिटिश सेना का नियंत्रण दिल्ली से अधिक सशक्त हो सकता था।

६. बंगाल विभाजन की असफलता और राजनीतिक दबाव
1905 में लॉर्ड कर्जन द्वारा किया गया बंगाल विभाजन भारी विरोध के कारण असफल हो गया था।
ब्रिटेन चाहता था कि साम्राज्य का प्रशासन बंगाल की राजनीतिक उथल-पुथल से अलग होकर देश के केंद्र से संचालित हो।

दिल्ली को राजधानी बनाने की घोषणा कब और कैसे हुई
राजधानी परिवर्तन की आधिकारिक घोषणा 12 दिसम्बर 1911 को हुई।
यह घोषणा ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम ने दिल्ली में आयोजित ऐतिहासिक दिल्ली दरबार में की।
इस घोषणा के बाद पूरा प्रशासनिक ढाँचा धीरे-धीरे दिल्ली में स्थानांतरित किया गया।
घोषणा की मुख्य बातें—
भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली लाई जाएगी।
नई राजधानी के निर्माण के लिए विशेष क्षेत्र चिन्हित होगा।
वायसराय हाउस (वर्तमान राष्ट्रपति भवन), सचिवालय, संसद भवन आदि नई योजना के तहत बनेंगे।
कोलकाता अब भी बंगाल प्रांत की राजधानी रहेगा, पर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली होगी।
इस घोषणा के बाद एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने नई दिल्ली की रूपरेखा तैयार की।
1931 में औपचारिक रूप से नई दिल्ली का उद्घाटन हुआ और यह भारत की स्थायी राजधानी बन गई।

दिल्ली को राजधानी बनाने के बाद के प्रभाव
भारत के प्रशासनिक ढांचे में व्यापक परिवर्तन हुआ।
उत्तरी भारत में राजनीतिक गतिविधियाँ बढ़ीं, जो कालांतर में राष्ट्रीय आंदोलन का नया केंद्र बना।
दिल्ली का औद्योगिक, जनसंख्या और सांस्कृतिक विस्तार पहले से तेज हुआ।
ब्रिटिश साम्राज्य ने मुगल साम्राज्य की परंपरा का प्रतीकात्मक “उत्तराधिकार” अपने पक्ष में स्थापित किया।
उपमहाद्वीप के केंद्र में प्रशासन होने से संचार, सेना, रेल और शासन सभी अधिक सुचारु रूप से चलने लगे।

उपसंहार
कोलकाता से दिल्ली राजधानी स्थानांतरण केवल एक भौगोलिक बदलाव नहीं था। यह ब्रिटिश सत्ता की राजनीतिक रणनीति, सुरक्षा चिंताओं और राष्ट्रीय आंदोलन की पृष्ठभूमि से जुड़ा बड़ा निर्णय था।
कोलकाता 1772 से 1911 तक लगभग डेढ़ सदी से अधिक समय तक राजधानी रहा।
परंतु बदलते समय, राजनीतिक परिस्थितियों और भारत की विविधता को देखते हुए ब्रिटेन ने दिल्ली को अधिक उपयुक्त पाया और 12 दिसम्बर 1911 की घोषणा के बाद भारत प्रशासन का केंद्र दिल्ली बन गया।
यह निर्णय आगे चलकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन, सांस्कृतिक गतिविधियों और आधुनिक भारत की राजनीतिक संरचना को आकार देने में अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हुआ।

    ​आधुनिक राजधानी का निर्माण: कलकत्ता औपनिवेशिक काल के शुरुआती चरण में विकसित हुआ था और इसकी वास्तुकला पुरानी पड़ रही थी। ब्रिटिश सरकार एक नई, आधुनिक और सुनियोजित राजधानी बनाना चाहती थी जो उनके साम्राज्य की शक्ति और भव्यता को प्रदर्शित कर सके। दिल्ली ने नई राजधानी (नई दिल्ली) के निर्माण के लिए पर्याप्त और अविकसित भूमि प्रदान की, जिसकी योजना एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर जैसे वास्तुकारों ने बनाई।

    ​विधान परिषदों का महत्व: 1909 के मॉर्ले-मिंटो सुधारों के बाद, निर्वाचित विधान परिषदों का महत्व बढ़ रहा था। वायसराय लॉर्ड हार्डिंग ने तर्क दिया था कि इन उभरते हुए विधायी निकायों के लिए एक अधिक केंद्रीय स्थान पर राजधानी होना आवश्यक है ताकि वे देश के विभिन्न हिस्सों के प्रतिनिधियों के लिए सुलभ हो सकें।

    ​कलकत्ता से दिल्ली राजधानी का स्थानांतरण केवल एक भौगोलिक बदलाव नहीं था, बल्कि ब्रिटिश सरकार की एक बहु-आयामी रणनीतिक चाल थी। यह चाल बंगाल में बढ़ते राष्ट्रवाद को शांत करने, एक विशाल और विविध साम्राज्य पर अधिक केंद्रीय स्थान से प्रभावी ढंग से शासन करने और भारतीय इतिहास के प्रतीकवाद का लाभ उठाकर अपनी सत्ता को मजबूत करने के उद्देश्य से की गई थी। इस कदम ने कलकत्ता के राजनीतिक और आर्थिक प्रभुत्व को कम कर दिया और दिल्ली को भारत की आधुनिक प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवस्था का स्थायी केंद्र बना दिया।( चैटजेपीटी− जैमिनी)

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