एम ए कंवल जाफरी
रूस के राष्ट्रपति के दो दिवसीय भारत दौरे को इसलिए भी याद रखा जाएगा कि अमेरिका व कई यूरोपीय देशों के जबरदस्त दबाव और दुनिया में व्याप्त शदीद तनाव के बावजूद व्लादिमीर पुतिन का भारत में बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया गया। दौरे की अहमियत का अंदाजा इसी से हो जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रॉटोकॉल को दरकिनार कर स्वयं पालम एयरपोर्ट पहुंचे और गले लगाकर पुतिन का इस्तकबाल किया। इससे पहले वह दिसंबर 2021 में मात्र छह घंटे के लिए भारत आए थे। सदी के अहम दौरों में से एक इस हालिया दौरे से दुनिया की सियासत में एक नई कूटनीतिक गूंज पैदा हुई। पीएम मोदी ने दिल्ली के मास्को के साथ ऐतिहासिक रिश्तों को ध्रुव तारे के समान सशक्त और अटल करार दिया। पुतिन के भारत आगमन और 23 वें रूस-भारत शिखर सम्मेलन में लिए गए फैसलों से न केवल दोनों देशों के संबंधों में बेहतरी आई, बल्कि इससे विश्व पटल पर यह संदेश भी गया कि रूस और भारत किसी की परवाह किए बिना बड़ी बेबाकी से एक दूसरे के साथ खड़े हैं। दोनों के बीच यह दोस्ती कोई नई या अस्थाई नहीं है, बल्कि पुरानी और मजबूत है। यह मित्रता तब भी कायम थी, जब रूस संयुक्त सोवियत संघ था और आज भी सशक्त है जब वह रूस है। इस शानदार और मजबूत रिश्ते की बुनियाद दशकों की कड़ी मेहनत और ईमानदारी का परिणाम है।
दरअसल, अमेरिका समेत कई देश चाहते हैं कि भारत, रूस के साथ अपने संबंध कम कर दे, जबकि नई दिल्ली के शिखर सम्मेलन की गुफ्तुगू ने एक बार पुनः सिद्ध कर दिया कि भारत की विदेश नीति पूरी तरह से स्वतंत्र है और आगे भी स्वतंत्र रहेगी। भारत हित में आर्थिक और कूटनीतिक फैसले लिए जाते रहेंगे। मतलब साफ कि भारत अमेरिका के भारी दबाव और बढ़ाए टैरिफ की परवाह किए बिना रूस से तेल खरीदना जारी रखेगा। भारत को तेल आपूर्ति करने वाले देशों में रूस पहले स्थान पर है। भारत अपनी खरीद का एक तिहाई से अधिक करीब 1.6 मिलियन बैरल तेल रोजाना रूसी तेल कंपनियों से खरीदता है। दूसरी ओर यह बात भी काफी विचित्र है कि अमेरिका स्वयं तो रूस से ईंधन खरीदने का अधिकार रखे और भारत पर तेल नहीं खरीदने का दबाव बनाए। मोदी ने हैदराबाद हाउस में कहा कि पिछले आठ दशकों की चुनौतियों के बावजूद रूस और भारत की मित्रता शाब्दिक नहीं, बल्कि हकीकत पर आधारित है। शिखर सम्मेलन में विजन 2030 रोडमैप की घोषणा हुई, जिसका लक्ष्य वार्षिक व्यापार को 2030 तक बढ़ाकर 100 अरब डॉलर तक ले जाना है। पुतिन के दौरे से भारत को रक्षा सहयोग में बढ़ोतरी, आर्थिक संबंधों में मजबूती, ऊर्जा क्षेत्र में सहभागिता और विज्ञान एवं तकनीकी जैसे क्षेत्रों में फायदा हुआ। विशेषकर रक्षा एवं परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियां हासिल हुईं। इससे भारत की रक्षा क्षमताएं बढ़ीं और स्ट्रेटेजिक रिश्ते मजबूत हुए। भारत को एस-400 मिसाइल प्रणाली और अन्य हथियार समेत आधुनिक रक्षा प्रणाली की सप्लाई जारी रखने का वादा किया गया। भारत में न्यूक्लियर पावर प्लांट निर्माण समेत न्यूक्लियर एनर्जी प्रोजेक्ट्स में सहयोग बढ़ाने पर सहमति बनी। तेल, गैस और कोयले में सहयोग बढ़ाने और समय पर आपूर्ति का वादा किया गया। रक्षा, ऊर्जा और अन्य क्षेत्रों समेत द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने के उपायों पर विचार के अलावा अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने का फैसला लिया गया। वायु रक्षा, हाईटेक विमान, अंतरिक्ष अनुसंधान, कृत्रिम बुद्धिमतता और वैज्ञानिक परियोजनाओं में सहयोग बढ़ाने के समझौते हुए। सिविल न्यूक्लियर क्षेत्र में कुडनकुलम प्लांट के छह रिएक्टर की पूर्ति, छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर और तैरते न्यूक्लियर पावर प्लांट्स पर सहयोग को साझी प्राथमिकता बताया गया। यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन के साथ व्यापारिक समझौते, प्रवास, बंदरगाहांे, जहाजरानी, खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य रूपरेखा पर हस्ताक्षर किए गए। पांच लाख भारतीय अर्द्ध कुशल श्रमिक के रूस जाने को आसान बनाया गया। सांस्कृतिक संबंधों की मजबूती के लिए रूसी नागरिकों को 30 दिनी निःशुल्क ई-टूरिस्ट और ग्रुप वीजे की घोषणा की गई। दोनों नेताओं की बैठक और समझौतों में जहां शानदार भविष्य की झलक मौजूद है, वहीं साझेदारी, स्थिरता और आत्मविश्वास की दुनिया में राजनीति, संस्कृति, ऊर्जा, परमाणु विज्ञान और मानव संसाधन क्षेत्र में सशक्त दोस्ती की संभावना है।
वर्तमान परिस्थितियों में जहां कुछ देश अपने रवैये में तब्दीली लाने को तैयार नहीं हैं, वहीं भारत को भी यह समझने की जरूरत है कि उसके साथ कौन देश खड़ा है? रूस और भारत के बीच परमाणु, ऊर्जा, तकनीकी, सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान प्रदान में वद्धि हो रही है। उन्हें रक्षा क्षेत्र में भी एक साथ आगे बढ़ने की जरूरत है। भारत आतंक, उग्रवाद, सरहद पार सुनियोजित अपराध, मनीलांड्रिंग, आतंकवाद की वित्तीय सहायता और ड्रग्स की तस्करी जैसी चुनौतियों और खतरों से निपटने के लिए द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहयोग को मजबूत बनाने का इच्छुक है। भारत शांति का पक्षधर है। शांति बहाली पर जोर देते हुए मोदी ने कहा कि रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। युद्ध से रूस दुनिया में अकेला पड़ गया तथा उसके विकास पर नकारात्मक प्रभावित पड़ा। इस कारण भारत को रक्षा एवं दूसरे उत्पादों की आपूर्ति में देरी का सामना करना पड़ रहा है। दूसरी ओर, पश्चिमी देशों की रूस को अलग-थलग करने की नीति सफल नहीं रही। भारत, चीन, अफ्रीका और पश्चिमी एशिया के दक्षिणी देशों में पुतिन का स्वागत इस बात का प्रमाण है कि जिन देशों का रूस ने साथ दिया, वे आज उसके साथ खड़े हैं। एक शांतिपूर्ण और विकसित भारत के लिए एक शांतिपूर्ण और विकसित रूस जरूरी है।
दोनों देशों के बीच व्यापार में बड़ा बदलाव आया है। पांच वर्ष पहले जो व्यापार आठ बिलियन डॉलर था, वह बढ़कर 68 बिलियन डॉलर हो गया है। दुनिया के सियासी मंज़रनामे में बदलाव प्राकृतिक प्रक्रिया है। रूस व चीन के रिश्ते बेहतर हुए। अमेरिका, भारत पर जिस तरह का दबाव बनाने की मुहिम में लगा है, उसे देखते हुए रूस और भारत के बीच रिश्तों की मजबूती बहुत जरूरी थी। पुतिन के दौरे की एक अच्छी बात यह रही कि वह अकेले नहीं आए, उनके साथ बड़ी संख्या में रूसी नागरिक और व्यापारी भी आए, जो भारत के साथ जुड़ना और व्यापार बढ़ाना चाहते हैं। इससे पता चलता है कि रूस लोगों के बीच संबंध बढ़ाने का इच्छुक है। भारत ने भी लोगों के आपसी जुड़ाव के मामले में सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। उम्मीद की जानी चाहिए कि दोनों देशों के बीच संबंध और मजबूत होंगे।

एम ए कंवल जाफरी
वरिष्ठ पत्रकार


