भारतीय रेडियो प्रसारण के इतिहास में अमीन सयानी का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। उनकी मधुर आवाज और अनोखे अंदाज ने लाखों श्रोताओं के दिलों में विशेष स्थान बना लिया। “भाइयो और बहनो” कहकर अपने कार्यक्रम की शुरुआत करने वाले इस महान उद्घोषक ने भारतीय रेडियो को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनकी आवाज में एक जादू था जो श्रोताओं को बांध लेता था और उन्हें कार्यक्रम से जोड़े रखता था।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
अमीन सयानी का जन्म ११ दिसंबर १९३२ को मुंबई में एक गुजराती परिवार में हुआ था। उनके पिता जान मोहम्मद सयानी और माता कुलसूम सयानी दोनों ही शिक्षित और प्रगतिशील विचारों के थे। उनकी माता स्वयं भी एक लेखिका और समाज सेविका थीं। अमीन सयानी की शिक्षा मुंबई के प्रतिष्ठित सेंट जेवियर्स महाविद्यालय में हुई, जहां उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। बचपन से ही उनमें भाषा और संप्रेषण के प्रति विशेष रुचि थी।
अमीन सयानी का विवाह रूमा सयानी से हुआ और उनके दो पुत्र हैं। उनका पारिवारिक जीवन अत्यंत सुखद रहा। उनके परिवार ने हमेशा उनके व्यावसायिक जीवन में उनका साथ दिया और उन्हें प्रोत्साहित किया। उनकी पत्नी रूमा भी एक शिक्षित महिला थीं और उन्होंने अमीन के करियर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
रेडियो जगत में प्रवेश
अमीन सयानी का रेडियो जगत में प्रवेश बहुत ही रोचक तरीके से हुआ। मात्र तेरह वर्ष की आयु में वर्ष १९४५ में उन्होंने अपना पहला कार्यक्रम प्रस्तुत किया। यह एक अंग्रेजी कार्यक्रम था जो बच्चों के लिए था। धीरे-धीरे उनकी प्रतिभा का विकास होता गया और वे विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों में भाग लेने लगे। उनकी आवाज की स्पष्टता, उच्चारण की शुद्धता और भावनाओं को व्यक्त करने की क्षमता ने उन्हें जल्द ही लोकप्रिय बना दिया।
पचास के दशक में वे नियमित रूप से रेडियो सीलोन पर कार्यक्रम प्रस्तुत करने लगे। उन दिनों रेडियो सीलोन भारतीय श्रोताओं के बीच बहुत लोकप्रिय था क्योंकि यह फिल्मी संगीत प्रसारित करता था, जबकि आकाशवाणी पर अधिकतर शास्त्रीय संगीत और गंभीर कार्यक्रम होते थे। इसी दौरान उन्होंने अपनी पहचान बनाई और श्रोताओं के प्रिय बन गए।
बिनाका गीतमाला: एक युगांतरकारी कार्यक्रम
अमीन सयानी के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और यादगार कार्यक्रम था “बिनाका गीतमाला”। इस कार्यक्रम की शुरुआत तीन दिसंबर १९५२ को हुई थी और यह लगभग चार दशकों तक चला। यह कार्यक्रम हर बुधवार रात को प्रसारित होता था और करोड़ों श्रोता इसे सुनने के लिए अपने रेडियो के पास बैठ जाते थे। इस कार्यक्रम में सप्ताह के लोकप्रिय फिल्मी गीत बजाए जाते थे और अमीन सयानी अपने अद्भुत अंदाज में उन्हें प्रस्तुत करते थे।
बिनाका गीतमाला केवल एक संगीत कार्यक्रम नहीं था, बल्कि यह एक सामाजिक घटना बन गया था। लोग अपने पसंदीदा गीतों के लिए पत्र लिखते थे और गीतों की लोकप्रियता की सूची का बेसब्री से इंतजार करते थे। अमीन सयानी के “भाइयो और बहनो” कहने का अंदाज इतना प्रसिद्ध हो गया कि यह उनकी पहचान बन गई। वे श्रोताओं के पत्रों को पढ़ते थे, उनकी समस्याओं को सुनते थे और उन्हें अपने परिवार का हिस्सा समझते थे।
आवाज में जादू और प्रस्तुति की कला
अमीन सयानी की सफलता का राज उनकी अद्वितीय प्रस्तुति शैली थी। उनकी आवाज में एक अनोखा जादू था जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता था। वे हर गीत को इस तरह प्रस्तुत करते थे जैसे वह कोई कहानी सुना रहे हों। फिल्म की पृष्ठभूमि, गीतकार, संगीतकार और गायक के बारे में रोचक जानकारी देना उनकी विशेषता थी। वे केवल गीत बजाने तक सीमित नहीं रहते थे, बल्कि श्रोताओं को उस गीत से भावनात्मक रूप से जोड़ देते थे।
उनकी हिंदी भाषा पर पकड़ अद्भुत थी। यद्यपि उनकी मातृभाषा गुजराती थी, लेकिन उन्होंने हिंदी को इतने सुंदर तरीके से बोला कि हर प्रांत के श्रोता उन्हें अपना समझते थे। उनका उच्चारण स्पष्ट था और शब्दों का चयन बहुत सोच-समझकर किया जाता था। वे कठिन शब्दों को भी इस तरह बोलते थे कि आम श्रोता भी समझ सकें।
अन्य कार्यक्रम और योगदान
बिनाका गीतमाला के अलावा अमीन सयानी ने हजारों अन्य कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए। उन्होंने विभिन्न विषयों पर कार्यक्रम बनाए, जिनमें सामाजिक मुद्दे, स्वास्थ्य, शिक्षा और मनोरंजन शामिल थे। वे विज्ञापनों के लिए आवाज देने में भी सिद्धहस्त थे और उन्होंने अनगिनत विज्ञापनों के लिए अपनी आवाज दी। उनकी आवाज ने कई उत्पादों को घर-घर तक पहुंचाने में मदद की।
अमीन सयानी ने दूरदर्शन पर भी कई कार्यक्रम प्रस्तुत किए। जब दूरदर्शन का प्रसारण शुरू हुआ, तो उन्होंने इस नए माध्यम को भी अपनाया और सफलतापूर्वक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। हालांकि, रेडियो ही उनकी पहली पसंद रहा और वहीं उन्होंने अपनी सबसे बड़ी पहचान बनाई।
पुरस्कार और सम्मान
अमीन सयानी को उनके अतुलनीय योगदान के लिए अनेक पुरस्कार और सम्मान मिले। भारत सरकार ने उन्हें वर्ष २००९ में पद्मश्री से सम्मानित किया। यह भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। इसके अलावा उन्हें कई राज्य सरकारों और संगठनों द्वारा भी सम्मानित किया गया। उन्हें जीवनभर उपलब्धि के लिए विभिन्न पुरस्कार मिले।
लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी उनका नाम दर्ज है। उन्होंने अपने जीवनकाल में लगभग ५४,००० से अधिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए और ६५,००० से अधिक विज्ञापनों के लिए आवाज दी। यह एक विश्व रिकॉर्ड है जो उनकी मेहनत और समर्पण का प्रमाण है।
विरासत और प्रभाव
अमीन सयानी ने भारतीय रेडियो प्रसारण को एक नई दिशा दी। उन्होंने यह साबित कर दिया कि रेडियो केवल समाचार और जानकारी का माध्यम नहीं है, बल्कि यह मनोरंजन और भावनात्मक जुड़ाव का भी सशक्त माध्यम हो सकता है। उनके बाद आने वाले अनेक उद्घोषकों ने उनसे प्रेरणा ली और उनकी शैली को अपनाने का प्रयास किया, लेकिन अमीन सयानी की अनोखी आवाज और शैली की नकल करना असंभव था।
उनका निधन २० फरवरी २०२४ को मुंबई में हुआ। उस समय वे ९१ वर्ष के थे। उनके निधन से भारतीय मनोरंजन जगत को एक अपूरणीय क्षति हुई। लेकिन उनकी आवाज और उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए कार्यक्रम आज भी लोगों की यादों में जीवित हैं। अनेक लोग आज भी उनके कार्यक्रमों की रिकॉर्डिंग सुनते हैं और उस स्वर्णिम युग को याद करते हैं।
अमीन सयानी ने साबित किया कि प्रतिभा, मेहनत और समर्पण से कोई भी व्यक्ति अपने क्षेत्र में शिखर पर पहुंच सकता है। उनका जीवन और कार्य आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा। भारतीय रेडियो के इतिहास में उनका स्थान अमर रहेगा और वे हमेशा “आवाज का जादूगर” के रूप में याद किए जाएंगे।(साेनेट)