हर सांस के साथ बढ़ रहा है वायु प्रदूषण का खतरा

Date:

बाल मुकुन्द ओझा

देश की राजधानी दिल्ली सहित देशभर में पर्यावरण प्रदूषण का मामला संसद और सुप्रीम कोर्ट में गूंजने लगा है। अनेक सांसदों ने प्रदूषण विशेषकर वायु प्रदूषण पर संसद में चर्चा की मांग की है। वहीं देश की सर्वोच्च अदालत ने वायु प्रदूषण पर गहरी चिंता व्यक्त की है। दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर खतरे के निशान को भी पार कर चुका है। दिल्ली गैस चैंबर में बदल चुका है, यहां AQI 500 के पार दर्ज किया गया है। प्रदूषण से लोगों को सांस लेने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने बार के सदस्यों और लोगों को सलाह दी है कि वे शीर्ष अदालत के सामने लिस्टेड मामलों के लिए, जहां भी आसान हो, हाइब्रिड मोड में पेश हों। सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण के मुद्दे पर गंभीर सुनवाई चल रही है। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस समस्या पर चुप नहीं रहा जा सकता और केंद्र सरकार से इस संबंध में प्रभावी एक्शन प्लान मांगा गया है । सर्वोच्च अदालत ने साफ कर दिया कि हवा की गुणवत्ता की समस्या गंभीर है और इसे तुरंत हल करने की दिशा में ऐसे कदम उठाने चाहिए।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक के मुताबिक वायु प्रदूषण दुनिया के सबसे बड़े हेल्थ रिस्क में से एक है। इसकी वजह से हर साल दुनिया में करीब 67 लाख लोग समय से पहले मौत का शिकार होते हैं। हमारे देश भारत की बात करे तो वायु प्रदूषण की समस्या अत्यधिक गंभीर हो गई है। शहरों में वायु की गुणवत्ता या AQI बहुत खराब या गंभीर है। राजधानी दिल्ली में AQI 500 पार पहुँच चुका है। AQI यानि एयर क्वालिटी इंडेक्स हवा की क्वालिटी को बताने वाला एक स्कोर है, जो यह समझने में मदद करता है कि हमारे आसपास की हवा साफ है या प्रदूषित। AQI में हवा में मौजूद प्रदूषकों का स्तर मापा जाता है। AQI जितना बढ़ता है हवा उतनी ही ज्यादा खतरनाक मानी जाती है। वर्तमान में देश की राजधानी दिल्ली सहित बहुत से शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों के रूप में सबसे पहले स्थान पर हैं। IQAir की रिपोर्ट के मुताबिक भारत पर्यावरण प्रदूषण के मामले में दुनिया में तीसरे स्थान पर है और विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2023 के मुताबिक दुनिया के 50 सबसे प्रदूषित शहरो में से 42 शहर भारत के हैं। हर साल दिल्ली में होने वाली मौतों में से करीब 11.5 प्रतिशत प्रदूषण के कारण होती हैं। भारत की लगभग पूरी आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहती, जहां वायु गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों से अधिक हैं। भारत में अत्यधिक वायु प्रदूषण के कारण सांस संबंधी बीमारियां, त्वचा रोग जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ गया है और जीवन प्रत्याशा में भी कमी आई है।

प्रदूषण आज दुनियाभर चिंता का विषय है। यह केवल भारत के लिए ही नहीं है बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है जो कई तरह के प्रदूषणों से पीड़ित है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण और अन्य, लाखों लोगों के जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं। भारत दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में दूसरे स्थान पर है। प्रदूषण का स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है और औसतन एक भारतीय की जीवन प्रत्याशा को 5.3 साल तक कम कर देता है। प्रदूषण का अर्थ है हमारे आस पास का परिवेश गन्दा होना और प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना। प्रदूषण कई प्रकार का होता है जिनमें वायु, जल और ध्वनि-प्रदूषण मुख्य है। पर्यावरण के नष्ट होने और औद्योगीकरण के कारण  प्रदूषण की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है जिसके फलस्वरूप मानव जीवन दूभर हो गया है। महानगरों में वायु प्रदूषण अधिक फैला है। वहां चौबीसों घंटे कल-कारखानों और वाहनों का विषैला धुआं इस तरह फैल गया है कि स्वस्थ वायु में सांस लेना दूभर हो गया है। यह समस्या वहां अधिक होती हैं जहां सघन आबादी होती है और वृक्षों का अभाव होता है। कल-कारखानों का दूषित जल नदी-नालों में मिलकर भयंकर जल-प्रदूषण पैदा करता है। बाढ़ के समय तो कारखानों का दुर्गंधित जल सब नाली-नालों में घुल मिल जाता है। इससे अनेक बीमारियां पैदा होती है। इसी भांति ध्वनि-प्रदूषण ने शांत वातावरण को अशांत कर दिया है। कल-कारखानों और यातायात का कानफाडू शोर, मोटर-गाड़ियों की चिल्ल-पों, लाउड स्पीकरों की कर्णभेदक ध्वनि ने बहरेपन और तनाव को जन्म दिया है। हमने प्रगति की दौड़ में मिसाल कायम की है मगर पर्यावरण का कभी ध्यान नहीं रखा जिसके फलस्वरूप पेड़ पौधों से लेकर नदी तालाब और वायुमण्डल प्रदूषित हुआ है और मनुष्य का सांस लेना भी दुर्लभ हो गया है। इसके अलावा वृक्षों की अंधाधुंध कटाई ने भी पर्यावरण को बहुत अधिक क्षति पहुंचाई है। विश्व में हर साल एक करोड़ हैक्टेयर से अधिक वन काटा जाता है। भारत में 10 लाख हैक्टेयर वन प्रतिवर्ष काटा जा रहा है। वनों के कटने से वन्यजीव भी लुप्त होते जा रहे हैं। वनों के क्षेत्रफल के नष्ट हो जाने से रेगिस्तान के विस्तार में मदद मिल रही है। प्रकृति का संरक्षण हमारे सुनहरे भविष्य का आधार है। मनुष्य जन्म से ही प्रकृति और पर्यावरण  के सम्पर्क में आ जाता है। प्राणी जीवन की रक्षा हेतु प्रकृति की रक्षा अति आवश्यक है।

बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

डी-32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

पोस्ट साझा करें:

सदस्यता लें

spot_imgspot_img

लोकप्रिय

इस तरह और भी
संबंधित

लम्बे जनजागरण के बाद मिली गोवा को आजादी

बाल मुकुन्द ओझा                                                                                                                                                       गोवा मुक्ति दिवस हर साल...

उपराष्ट्रपति ने गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस की वर्षगांठ कार्यक्रम में भाग लिया

भारत के उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन ने आज नई...

भारत के दूरसंचार निर्यात में 72 प्रतिशत की वृद्धि

केंद्रीय संचार एवं उत्तर पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्री श्री ज्योतिरादित्य एम. सिंधिया ने आज लोकसभा में   बताया कि पिछले पांच वर्षों में भारत के दूरसंचार निर्यात में 72% की वृद्धि हुई है, जबकि आयात पहले के स्तर पर स्थिर रहा है। ये आंकड़े दूरसंचार क्षेत्र में भारत की बढ़ती आत्मनिर्भरता की कहानी बयां करते हैं। एक प्रश्न के उत्तर में केंद्रीय मंत्री श्री सिंधिया ने कहा कि भारत का दूरसंचार निर्यात 2020-21 में 10,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 2024-25 में 18,406 करोड़ रुपये हो गया है, जो 72% की वृद्धि दर्शाता है, जबकि आयात लगभग 51,000 करोड़ रुपये पर स्थिर बना हुआ है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत न केवल दूरसंचार क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से बढ़ रहा है, बल्कि वैश्विक नेतृत्व के लिए भी खुद को तैयार कर रहा है। पूरक प्रश्न के उत्तर में, श्री सिंधिया ने 5जी तैनाती में भारत की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि देश के 778 जिलों में से 767 जिले पहले ही 5जी नेटवर्क से जुड़ चुके हैं। उन्होंने आगे कहा कि भारत में वर्तमान में 36 करोड़ 5जी ग्राहक हैं, यह संख्या 2026 तक बढ़कर 42 करोड़ और 2030 तक 100 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है। सैटेलाइट संचार (SATCOM) के बारे में बात करते हुए केंद्रीय मंत्री श्री सिंधिया ने कहा कि विश्वव्यापी अनुभव से पता चलता है कि जिन क्षेत्रों में पारंपरिक बीटीएस या बैकहॉल या ऑप्टिकल फाइबर केबल के माध्यम से ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी संभव नहीं है, वहां केवल सैटेलाइट संचार के माध्यम से ही सेवाएं पहुंचाई जा सकती हैं। इस संदर्भ में, भारत ने यह सुनिश्चित करने के लिए निर्णायक कदम उठाया है कि SATCOM सेवाएं देश के कोने-कोने में ग्राहकों को उपलब्ध कराई जाएं। उन्होंने कहा कि सरकार का उद्देश्य प्रत्येक ग्राहक को दूरसंचार सेवाओं का संपूर्ण पैकेज उपलब्ध कराना है, जिससे व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं और पसंदीदा मूल्य के आधार पर सोच-समझकर निर्णय ले सकें। केंद्रीय मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सैटेलाइट संचार (SATCOM) नीति का ढांचा पूरी तरह से तैयार है और स्पेक्ट्रम का प्रशासनिक आवंटन किया जाना है। स्टारलिंक, वनवेब और रिलायंस को पहले ही तीन लाइसेंस जारी किए जा चुके हैं। उन्होंने आगे बताया कि ऑपरेटरों की ओर से वाणिज्यिक सेवाएं शुरू करने से पहले दो प्रमुख पहलुओं पर ध्यान देना आवश्यक है। पहला पहलू स्पेक्ट्रम आवंटन से संबंधित है, जिसमें प्रशासनिक स्पेक्ट्रम शुल्क का निर्धारण भी शामिल है, जो भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (टीआरएआई) के अधिकार क्षेत्र में आता है। टीआरएआई वर्तमान में मूल्य निर्धारण ढांचे को अंतिम रूप देने में लगा हुआ है। दूसरा पहलू प्रवर्तन एजेंसियों से सुरक्षा मंजूरी से संबंधित है। इस प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए, ऑपरेटरों को प्रदर्शन करने हेतु नमूना स्पेक्ट्रम उपलब्ध कराया गया है, और तीनों लाइसेंसधारी वर्तमान में आवश्यक अनुपालन गतिविधियों को पूरा कर रहे हैं। एक बार जब ऑपरेटर निर्धारित सुरक्षा मानदंडों का पालन करने का प्रदर्शन कर देते हैं - जिसमें भारत के भीतर अंतरराष्ट्रीय गेटवे स्थापित करने की आवश्यकता भी शामिल है - तो आवश्यक अनुमोदन प्रदान कर दिए जाएंगे, जिससे ग्राहकों को सैटकॉम सेवाएं शुरू करने में मदद मिलेगी।

ऑस्ट्रेलिया में बढ़ती यहूदी-विरोधी हिंसा: आंतरिक सुरक्षा और लोकतांत्रिक संतुलन

-डॉ. सत्यवान सौरभ ऑस्ट्रेलिया को लंबे समय तक एक ऐसे...
hi_INहिन्दी