हरियाणा में डेंगू का प्रकोप ,जनता बीमार, प्रशासन लाचार

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हरियाणा में डेंगू का प्रकोप तेज़ है, लेकिन नगर निकायों के पास फॉगिंग मशीनों की भारी कमी है। प्रदेश के 87 निकायों में केवल 426 मशीनें उपलब्ध हैं, जो आवश्यकतानुसार बेहद कम हैं। मशीनों की कमी के कारण न तो शहरों में और न ही ग्रामीण इलाकों में नियमित फॉगिंग अभियान चल पाए हैं। 1200 से अधिक गाँव जलभराव से जूझ रहे हैं, जिससे खतरा और बढ़ गया है। स्वास्थ्य विभाग और निकायों की लापरवाही से जनता पर बीमारी का संकट गहराता जा रहा है। ठोस कार्ययोजना और पर्याप्त संसाधन ही डेंगू से सुरक्षा का रास्ता हैं।

 – डॉ. सत्यवान सौरभ

डेंगू का नाम सुनते ही लोगों के मन में डर बैठ जाता है। हर साल मानसून के बाद बरसात के दिनों में जब मच्छरों का प्रकोप बढ़ता है, तो डेंगू के मामले तेजी से सामने आने लगते हैं। बुखार, सिरदर्द, शरीर में दर्द और प्लेटलेट्स की कमी से पीड़ित मरीजों की संख्या अस्पतालों में बढ़ने लगती है। सरकारें हर वर्ष दावा करती हैं कि मच्छरों की रोकथाम और फॉगिंग के इंतज़ाम पूरे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत बिल्कुल उलट होती है। हाल ही में सामने आई रिपोर्ट ने हरियाणा के स्वास्थ्य तंत्र और स्थानीय निकायों की तैयारियों पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। प्रदेश के 87 नगर निकायों में डेंगू और मच्छर जनित बीमारियों से निपटने के लिए मात्र 426 फॉगिंग मशीनें ही उपलब्ध हैं। यानी लगभग हर निकाय के हिस्से में औसतन पाँच मशीनें भी नहीं आतीं। जबकि स्थिति यह है कि एक मध्यम आकार के शहर में ही डेंगू पर काबू पाने के लिए 20–25 मशीनें आवश्यक मानी जाती हैं। ऐसे में पूरे प्रदेश के स्तर पर मशीनों की यह कमी सीधा संदेश देती है कि प्रशासनिक लापरवाही किस हद तक हावी है।

डेंगू एक ऐसी बीमारी है जिसका सीधा इलाज एंटीबायोटिक दवाइयों से संभव नहीं है। यह मच्छरों से फैलने वाला वायरल संक्रमण है और रोगी के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर ही उपचार टिका होता है। अधिकतर मामलों में डेंगू का वायरस शरीर की प्लेटलेट्स तेजी से घटा देता है। समय पर इलाज न मिलने पर यह स्थिति जानलेवा हो सकती है। भारत में हर साल लाखों लोग डेंगू से प्रभावित होते हैं और हजारों मौतें भी होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी डेंगू को दुनिया के सबसे तेजी से फैलने वाले वायरल रोगों में गिनता है। इसलिए रोकथाम ही सबसे बड़ा हथियार है। मच्छरों को पनपने से रोकना, जलभराव हटाना और समय-समय पर फॉगिंग करना — यही डेंगू पर नियंत्रण के सबसे कारगर उपाय हैं। लेकिन जब यही इंतज़ाम कमजोर पड़ जाएं, तो बीमारी का फैलाव तेज़ी से होता है।

हरियाणा के नगर निकायों के पास फॉगिंग मशीनों की संख्या न सिर्फ कम है बल्कि जिन मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है, उनमें से कई पुराने और खराब हालत में हैं। यह स्थिति स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति राज्य सरकार और निकायों की उदासीनता को उजागर करती है। फॉगिंग का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि यह मच्छरों के जीवन चक्र को तोड़ती है। मच्छर के अंडे से निकलने और उनके वयस्क होने की प्रक्रिया पर फॉगिंग सीधा असर डालती है। यदि यह नियमित अंतराल पर हो तो मच्छरों की संख्या तेजी से कम हो सकती है। लेकिन जब मशीनें ही उपलब्ध न हों, तो फॉगिंग का अभियान केवल कागजों में रह जाता है।

यह समस्या सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं है। प्रदेश के 1200 से अधिक गाँव जलभराव की समस्या से जूझ रहे हैं। गाँवों में नालियों की सफाई और कचरे के निस्तारण की व्यवस्था कमजोर है। पंचायतों के पास न तो पर्याप्त बजट है और न ही तकनीकी संसाधन। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में डेंगू और मलेरिया का प्रकोप और भी खतरनाक हो सकता है। सरकारी नीतियों में बार-बार शहरी क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाएँ और रोकथाम अभियान बिल्कुल नाममात्र के रह जाते हैं।

इस स्थिति की सबसे बड़ी जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग और स्थानीय निकायों पर आती है। हर साल डेंगू का मौसम आता है और हर बार प्रशासन अचानक हाथ-पैर मारता है। जबकि यह समस्या नई नहीं है। फॉगिंग मशीनें सालभर सक्रिय रहनी चाहिए और नियमित अंतराल पर उनका रखरखाव होना चाहिए। लेकिन निकायों के पास अक्सर यह तर्क होता है कि बजट की कमी है। सवाल यह उठता है कि जब स्वास्थ्य सेवाओं पर ही खर्च नहीं होगा तो विकास का दावा किस आधार पर किया जाएगा?

मशीनों की कमी और लापरवाही का सीधा असर आम जनता पर पड़ता है। हर साल हजारों परिवार डेंगू से प्रभावित होते हैं। एक बार किसी घर का सदस्य डेंगू से बीमार हो जाए तो उस परिवार पर मानसिक, शारीरिक और आर्थिक बोझ बढ़ जाता है। अस्पतालों में भर्ती का खर्च, दवाइयों और प्लेटलेट्स की कमी का संकट, लंबे समय तक काम और पढ़ाई से दूरी, बीमारी का डर और असुरक्षा—ये सभी पहलू जनता को झकझोरते हैं। खासकर गरीब और मध्यम वर्ग के परिवार सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं क्योंकि उनके पास महंगे इलाज का साधन नहीं होता।

सरकार और प्रशासन को चाहिए कि इस स्थिति से सबक लें। सबसे पहले फॉगिंग मशीनों की संख्या बढ़ाई जाए और हर निकाय को पर्याप्त मशीनें दी जाएं। केवल आपातकालीन हालात में नहीं बल्कि पूरे वर्ष तय अंतराल पर फॉगिंग होनी चाहिए। पंचायतों को बजट और मशीनें उपलब्ध कराकर ग्रामीण क्षेत्रों में मच्छरनाशी अभियान चलाना आवश्यक है। जनता को भी जागरूक किया जाए कि घरों में पानी जमा न होने दें, कूलर व टंकियों को ढककर रखें। अस्पतालों में डेंगू टेस्ट, दवाइयों और प्लेटलेट्स की पर्याप्त व्यवस्था समय रहते की जाए।

डेंगू हर साल एक बार नहीं बल्कि अब स्थायी खतरे के रूप में सामने आ चुका है। बदलते मौसम, बढ़ते शहरीकरण और जलभराव की समस्याओं ने इसकी जड़ें और गहरी कर दी हैं। ऐसे में केवल घोषणाओं से काम नहीं चलेगा। फॉगिंग मशीनों की कमी और प्रशासनिक उदासीनता न केवल लापरवाही है बल्कि लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ भी है। सरकार को चाहिए कि इस समस्या को आपदा प्रबंधन की तरह प्राथमिकता दे और हर निकाय को संसाधन उपलब्ध कराए। जनता भी अपनी जिम्मेदारी समझे और घर-आसपास पानी जमा न होने दे। प्रशासन और समाज के संयुक्त प्रयासों से ही डेंगू पर काबू पाया जा सकता है। आज जरूरत है एक ठोस कार्ययोजना की, वरना डेंगू हर साल नए रूप में दस्तक देता रहेगा और स्वास्थ्य तंत्र की कमजोरियों को उजागर करता रहेगा।

 – डॉ. सत्यवान सौरभ

(ये लेखक के अपने विचार है)

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