संघ के शताब्दी वर्ष में संघ के मंचों से नव चिंतन सामने आएगा

Date:

– कौशल सिखौला

महान राष्ट्रवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ 2025 को अपनी सौवीं जयंती के रूप में मना रहा है । डॉ हेडगेवार और गुरु गोलवलकर से मोहन भागवत तक आते आते इस संस्था के गर्भ से असंख्य राष्ट्रचिंतकों ने जन्म लिया है । करोड़ों या फिर सच कहें तो 194 करोड़ वर्ष पुरानी प्राचीनतम आर्य सभ्यता एवम् संस्कृति की रक्षा के लिए संघ रूपी यह विराट वट वृक्ष सीना ताने यथावत खड़ा है ।

जिन्हें अखण्ड आर्यावर्त भारतवर्ष की महान परंपराओं पर गर्व है वे जानते हैं कि संघ की यह चैतन्य धारा अभी अनंतकाल तक प्रवाहमान रहेगी । संघ के शताब्दी वर्ष में निश्चय ही संघ के मंचों से नव चिंतन सामने आएगा ।

एक बात मानने में किसी को भी संकोच नहीं हैं कि स्वाधीनता आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व में प्रारंभ हुआ था । यह आंदोलन आज की कांग्रेस ने नहीं , आंदोलनकारी कांग्रेस ने प्रारंभ किया था । कांग्रेस एक स्वाधीनता आंदोलन थी पार्टी नहीं । तभी आजादी मिलने के बाद जब बापू को लगा कि कांग्रेस रूपी यह स्फूर्त आंदोलन अब एक राजनैतिक पार्टी में बदल जाएगा तो उन्होंने उसे भंग करने की सलाह दी थी । आज की कांग्रेस को देखकर समझ लीजिए कि बापू का अनुमान कितना सही था ।

उसी कांग्रेस आंदोलन से डॉ हेडगेवार आए और संघ की स्थापना की । डॉ हेडगेवार समझ गए थे देश में राष्ट्रवाद की स्थापना करने के लिए जिन चरित्रवान लोगों की आवश्यकता है उसके लिए एक संगठन बनाना पड़ेगा । उनका चिंतन 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के दिन एक संगठन के रूप में सामने आया । वही विचार आज संघ के सैकड़ों प्रकल्पों के रूप में अपनी स्थापना के 100 वर्ष मना रहा है । संघ ने देश को दो प्रधानमंत्री दिए । वर्तमान प्रधानमंत्री के पद पर आसीन संघ का एक प्रचारक देश को ऊंचाई के जिस सोपान पर ले गया वह सचमुच अदभुत है ।

हमें आज तक समझ नहीं आया कि 78 वर्ष की आजादी के बाद भी लोग राष्ट्रवादी और हिंदुत्ववादी विचारधारा से चिढ़ते क्यूँ हैं ? अरे भाई इस देश को लूटने मुगल आक्रांता न आते तो आज भी हिन्दू राष्ट्र ही होता भारत ? ग्यारहवीं शताब्दी तक बड़े आनंद से जी रहा था अनादि हिन्दूराष्ट्र भारत । कहीं राष्ट्र साधना , कहीं राष्ट्र यज्ञ तो कहीं राष्ट्रीय वैभव के लिए अनुष्ठान । विश्व का सबसे चिंतनशील और वैभवशाली धनाढ्य देश था हिन्दू भारतवर्ष ।

हर विधा में इतना प्रवीण कि बाकी दुनिया हमारे ज्ञान की बिखरी हुई खुरचन ही चाटती रह जाए । इसी सोने की चिड़िया और ज्ञान विज्ञान को ही तो लूटने आए लुटेरे ? संघ ने अतीत के उसी वैभव को पुनर्स्थापित करने का काम शुरू किया तो बुरा मान गए ? आज विजयादशमी है । संघ का शताब्दी वर्ष भारतमाता को विश्व के शीर्ष पर स्थापित करे , आइए हम सब यही कामना और प्रार्थना करते हैं । नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे ।

– कौशल सिखौला

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

पोस्ट साझा करें:

सदस्यता लें

spot_imgspot_img

लोकप्रिय

इस तरह और भी
संबंधित

हरियाणा के एडीजीपी वाई. पूरन की आत्महत्या , हमारी सामूहिक असफलता

“एक वर्दी का मौन: (पद और प्रतिष्ठा के पीछे...

मुंशी प्रेमचंद की कलम ने अन्याय और नाइंसाफी के खिलाफ बुलंद की आवाज

( बाल मुकुन्द ओझा आज उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की पुण्य...

बढ़ती छात्र आत्महत्याएँ: कानून हैं, लेकिन संवेदना कहाँ है?

भारत में बढ़ती छात्र आत्महत्याएँ एक गहरी सामाजिक और...

महर्षि वाल्मीकि: शिक्षा, साधना और समाज का सच

(गुरु का कार्य शिक्षा देना है, किंतु उस शिक्षा...
hi_INहिन्दी