शरद_पूर्णिमा*

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भारतीय (सनातन) वांग्मय ऋग्वेद कहता है और आज आधुनिक विज्ञान भी इस की पुष्टि करता है शरद पूर्णिमा पर चांद पृथ्वी के सबसे पास होता है भूमंडल में सूर्य और उसके ग्रह सौर परिवार कहलाता है जिन्हें उर्जा (उष्मा) सूर्य से मिलती है ।सभी ग्रह और उप ग्रह एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण से जुड़े हैं और अपनी धुरी पर धूमते हैं जिसे दिन और रात होता और सौर परिवार के केंद्र सूर्य का चक्कर लगाते हैं। इससे अलग अलग ऋतु होती हैं ।पृथ्वी पर जीवन और वनस्पति सभी में जीवन सूर्य और चंद्रमा से आता है ।प्रकृति ने सभी जीवों वनस्पतियों मे उर्जा ग्रहण करने की छमता अनुसार गुण विकसित होते हैं। इसी तरह पृथ्वी का उप ग्रह चंद्रमा है और पृथ्वी के सबसे करीब भी है, इसीलिए पृथ्वी को सबसे ज्यादा प्रभावित चंद्रमा करता है ।इसीाकारण समुद्र में ज्वार भाटा आता है अनाजों में पौष्टिकता फलों में मिठास औषधियों में रोग हर गुण फूलों में सुगंध सभी सूरज और चंद्रमा से आते हैं।

*आयुर्वेद में चंद्रमा की चांदनी से चिकित्सा और शरद पूर्णिमा का महत्व *

शरद पूर्णिमा ( 6अक्टूबर 2025 – शरद पूनम की रात दिलाये- आत्मशांति और, स्वास्थ्य लाभ।)

आश्विन पूर्णिमा को ‘शरद पूर्णिमा’ या कोजागिरी भी बोलते हैं । इस दिन रास-उत्सव और कोजागर व्रत किया जाता है । गोपियों को शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण ने बंसी बजाकर अपने पास बुलाया और ईश्वरीय अमृत का पान कराया था । अतः शरद पूर्णिमा की रात्रि का विशेष महत्त्व है । इस रात को चन्द्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ पृथ्वी पर शीतलता, पोषक शक्ति एवं शांतिरूपी अमृतवर्षा करता है ।

शरद पूनम की रात को क्या करें, क्या न करें ?

दशहरे से शरद पूनम तक चन्द्रमा की चाँदनी में विशेष हितकारी रस, हितकारी किरणें होती हैं । इन दिनों चन्द्रमा की चाँदनी का लाभ उठाना, जिससे वर्षभर आप स्वस्थ और प्रसन्न रहें । नेत्रज्योति बढ़ाने के लिए दशहरे से शरद पूर्णिमा तक प्रतिदिन रात्रि में 15 से 20 मिनट तक चन्द्रमा के ऊपर त्राटक करें ।

अश्विनी कुमार देवताओं के वैद्य हैं । जो भी इन्द्रियाँ शिथिल हो गयी हों, उनको पुष्ट करने के लिए चन्द्रमा की चाँदनी में खीर रखना और भगवान को भोग लगाकर अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करना कि ‘हमारी इन्द्रियों का बल-ओज बढ़ायें ।’ फिर वह खीर खा लेना ।

इस रात सूई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से भी नेत्रज्योति बढ़ती है ।

शरद पूनम दमे की बीमारी वालों के लिए वरदान का दिन है।छोटी इलाईची को, चन्द्रमा की चाँदनी में रखी हुई खीर में मिलाकर खा लेना और रात को सोना नहीं । दमे का दम निकल जायेगा ।चन्द्रमा की चाँदनी गर्भवती महिला की नाभि पर पड़े तो गर्भ पुष्ट होता है । शरद पूनम की चाँदनी का अपना महत्त्व है लेकिन बारहों महीने चन्द्रमा की चाँदनी गर्भ को और औषधियों को पुष्ट करती है।

अमावस्या और पूर्णिमा को चन्द्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है । जब चन्द्रमा इतने बड़े दिगम्बर समुद्र में उथल-पुथल कर विशेष कम्पायमान कर देता है तो हमारे शरीर में जो जलीय अंश है, सप्तधातुएँ हैं, सप्त रंग हैं, उन पर भी चन्द्रमा का प्रभाव पड़ता है । इन दिनों में अगर काम-विकार भोगा तो विकलांग संतान अथवा जानलेवा बीमारी हो जाती है और यदि उपवास, व्रत तथा सत्संग किया तो तन तंदुरुस्त, मन प्रसन्न और बुद्धि में नयापन आता है।

खीर को बनायें अमृतमय प्रसाद

खीर को रसराज कहते हैं । सीताजी को अशोक वाटिका में रखा गया था । रावण के घर का क्या खायेंगी सीताजी ! तो इन्द्रदेव उन्हें खीर भेजते थे।

खीर बनाते समय घर में चाँदी का गिलास आदि जो बर्तन हो, या शुद्ध चांदी का सिक्का अथवा गहना आवश्य रात भर डाल कर रखें चांदी गरम खीर में डालेंआजकल जो मेटल (धातु) का बनाकर चाँदी के नाम से देते हैं वह नहीं, असली चाँदी के बर्तन अथवा असली सोना धो-धा के खीर में डाल दो तो उसमें रजतक्षार या सुवर्णक्षार आयेंगे । लोहे की कड़ाही अथवा पतीली में खीर बनाओ तो लौह तत्त्व भी उसमें आ जायेगा।

इलायची, खजूर या छुहारा डाल सकते हो लेकिन बादाम, काजू, पिस्ता, चारोली ये रात को पचने में भारी पड़ेंगे ।

रात्रि आठ बजे महीन कपड़े से ढँककर चन्द्रमा की चाँदनी में रखी हुई खीर 12 बजे के आसपास भगवान को भोग लगा कर प्रसादरूप में खा लेनी चाहिए । लेकिन देर रात को खाते हैं इसलिए थोड़ी कम खाना और खाने से पहले एकाध चम्मच ईश्वर के हवाले भी कर देना । मुँह अपना खोलना और भाव करना : ‘लो प्रभु ! आप भी लगाओ भोग ।’ और थोड़ी बच जाय तो फ्रिज में रख देना । सुबह गर्म करके खा सकते हो ।
(खीर दूध, चावल, मिश्री, चाँदी, चन्द्रमा की चाँदनी – इन पंचश्वेतों से युक्त होती है, अतः सुबह बासी नहीं मानी जाती ।)

शरद पूनम का आत्मकल्याणकारी संदेश

रासलीला इन्द्रियों और मन में विचरण करनेवालों के लिए अत्यंत उपयोगी है लेकिन राग, ताल, भजन का फल है भगवान में विश्रांति । रासलीला के बाद गोपियों को भी भगवान ने विश्रांति में पहुँचाया था । श्रीकृष्ण भी इसी विश्रांति में तृप्त रहने की कला जानते थे । संतुष्टि और तृप्ति सभीकी माँग है । चन्द्रमा की चाँदनी में खीर पड़ी-पड़ी पुष्ट हो और आप परमात्म-चाँदनी में विश्रांति पाओ ।
चन्द्रमा के दर्शन करते जाना और भावना करना कि ‘चन्द्रमा के रूप में साक्षात् परब्रह्म-परमात्मा की रसमय, पुष्टिदायक रश्मियाँ आ रही हैं । हम उसमें विश्रांति पा रहे हैं । पावन हो रहा है मन, पुष्ट हो रहा है तन, ॐ शांति… ॐ आनंद…’ पहले होंठों से, फिर हृदय से जप और शांति… निःसंकल्प ईश्वर में विश्रांति पाते जाना । परमात्म-विश्रांति, परमात्म-ज्ञान के बिना भौतिक सुख-सुविधाएँ कितनी भी मिल जायें लेकिन जीवात्मा की प्यास नहीं बुझेगी, तपन नहीं मिटेगी ।
देखें बिनु रघुनाथ पद जिय कै जरनि न जाइ । (रामायण)

श्रीकृष्ण गोपियों से कहते हैं कि ‘‘तुम प्रेम करते-करते बाहर-ही-बाहर रुक न जाओ बल्कि भीतरी विश्रांति द्वारा मुझ अपने अंतरात्मा प्रेमास्पद को भी मिलो, जहाँ तुम्हारी और हमारी दूरी खत्म हो जाती है । मैं ईश्वर नहीं, तुम जीव नहीं, हम सब ब्रह्म हैं – वह अवस्था आ जाय ।’’ श्रीकृष्ण जो कहते हैं, उसको कुछ अंश में समझकर हम स्वीकार कर लें, बस हो गया ।

शरद पूर्णिमा
सबके लिए सुखद शीतल ठंडी दे छाँव
7अक्टूबर 2025
आज आश्विन मास का अंतिम दिवस शरद पूर्णिमा है
कार्तिक मास के अभिनंदन हेतु स्वयं चांद अपनी प्यारी प्रिया चांदनी द्वारा खूबसूरत चौड़ी मुस्कान देते हुए तैयार खड़ा हो जाता है।
सचमुच अति मनोहर चांदनी दूधिया श्वेत धवल उज्ज्वल चांदनी रात का दृश्य हृदय को आल्हादित किये बगैर नहीं रहता है।
आज की ही रात चन्द्रमा की चांदनी में खीर को ठंडी कर रख सुबह यज्ञ में प्रसाद लगा कर खाने का, आंखों की ज्योति वर्धन करने निरीक्षण परीक्षण करने का अति उत्साही, मंगलकारी यह प्राकृतिक पावन पर्व है..
कहा जाता है यदि आज के दिन की बनाई हुई खीर में अर्जुन की छाल का चूर्ण मिला दिया जाए, फिर उस खीर को रात भर बाहर किसी बर्तन में भर, सूती झीने कपड़े से मुंह बांधकर किसी दीवाल से अधर लटका दिया जाए (जहां बिल्ली आदि न चढ़ सके) तत्पश्चात खाने से जीवन भर के लिए दमा या अस्थमा रोग से छुटकारा मिल जाता है और ह्रदय को शक्ति मिलती है।
चांदी के कटोरे में लगभग पांच से 10 ग्राम चूर्ण डाल कर खीर चांदनी में रात भर रखने से चंद्रमा की किरणें खीर पर पड़ औषधीय लाभ को चौगुना कर देती हैं।
प्रकृति के द्वारा इस अनमोल अनुपम औषधीय लाभ को हम सभी को ग्रहण कर उस परमात्मा का अवश्य धन्यवाद करना चाहिये जिसने सूरज चांद ऋतुएं बना औषधियों का ग्रहण पान कर स्वस्थ दीर्घायु हो आनंद से जीने हमें सुअवसर प्रदान किया है।
चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में, स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में। पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से, मानों झूम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥ आप सभी को शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनायें ।।
यशपाल सिंह आयुर्वेद रत्न

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