बाल मुकुन्द ओझा
भारत लोक आस्था के प्रतीक तीज त्योहारों का देश है। यहाँ दुनियाँ के सबसे ज्यादा त्योहार मनाये जाते है। इनमें नवरात्रि देश का बहुत महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे भारत में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। नवरात्रि शब्द एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है नौ रातें। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान देवी के नौ रूपों की पूजा अर्चना की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। नवरात्रि सिर्फ पूजा-पाठ का पर्व नहीं है, अपितु नौ दिनों तक चलने वाला आस्था, शक्ति और भक्ति तथा खुशियों का महापर्व है। नवरात्रि पर्व भारत में होली-दीपावली और दशहरे जैसी धूमधाम, हर्षोल्लास और श्रद्धा से मनाया जाता है। नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की अराधना पूजा नियम अनुसार करनी चाहिए। इस बार नवरात्रि पर कई शुभ योग बन रहे हैं। माता दुर्गा गज पर सवार होकर आएंगी, जो समृद्धि का प्रतीक है। हिंदी पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होती है और महानवमी के दिन समाप्त होती है। उसके अगले दिन दशहरा पर्व हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
शारदीय नवरात्र सभी नवरात्रियों में सबसे अधिक लोकप्रिय और महत्वपूर्ण माना जाता है। इस वर्ष यह महापर्व 22 सितंबर से आरंभ होकर 2 अक्टूबर 2025 तक मनाया जाएगा। इस बार तृतीया तिथि 24 और 25 सितंबर दो दिन होने के कारण नवरात्रि पर्व 10 दिनों तक मनाया जाएगा। नवरात्रि के आखिरी 3 दिन बहुत ही खास होते हैं जिसमें दुर्गा सप्तमी, दुर्गा अष्टमी और दुर्गा नवमी शामिल हैं। सनातनी परम्परा में शारदीय नवरात्रि का पर्व अत्यंत शुभ और विशेष माना जाता है। परंपरा के अनुसार, अष्टमी या नवमी तिथि पर विधि-विधान से कन्या पूजन किया जाता है।
पंचांग के अनुसार घटस्थापना का मुहूर्त सुबह 6 बजकर 9 मिनट से लेकर 8 बजकर 6 मिनट तक होगा। घटस्थापना के लिए कुल 1 घंटा 56 मिनट का समय मिलेगा। इसके अलावा, घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त में भी किया जा सकता है। अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 49 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 38 मिनट तक रहेगा, जिसके लिए 49 मिनट का समय मिलेगा। नवरात्रि में घट स्थापना या कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है। नवरात्रि के प्रथम दिन ही कलश स्थापना या घट स्थापना करके मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
नवरात्रि भारत के विभिन्न प्रदेशों में अलग ढंग से मनायी जाती है। गुजरात में नवरात्रि समारोह डांडिया और गरबा के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पूरी रात भर चलता है। देवी के सम्मान में भक्ति प्रदर्शन के रूप में गरबा, आरती से पहले किया जाता है और डांडिया समारोह उसके बाद। पश्चिम बंगाल में यह पर्व पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ आयोजित किया जाता है। इस पावन माह में माता रानी की पूजा अर्चना की जाती है। नवरात्र में देवी और नवग्रहों की पूजा का कारण यह भी है ग्रहों की पूरे वर्ष अनुकूल रहे और जीवन में खुशहाली बनी रहे।
देशवासी नवरात्र मनाने की तैयारियां कर रहे है। इस दौरान मां दुर्गा के नवरूपों की उपासना की जाती है। इसमें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा अलग-अलग दिन होती है। नवरात्र के पहले दिन देवी को शरीर में लेप के तौर पर लगाने के लिए चंदन और केश धोने के लिए त्रिफला चढ़ाना चाहिए। त्रिफला में आंवला, हर्रड़ और बहेड़ा डाला जाता है। दूसरे दिन केषों को ठीक स्थान पर रखने के लिए माता को रेशम की पट्टी दी जाती है। तीसरे दिन पैरों को रंगने के लिए आलता, सिर के लिए सिंदूर और देखने के लिए दर्पण दिया जाता है। चौथे दिन देवी को शहद, मस्तक पर तिलक लगाने के लिए चांदी का एक टुकड़ा और आंख में लगाने का अंजन, यानि कि काजल दिया जाता है। नवरात्र के पांचवें दिन देवी मां को अंगराग, यानि सौन्दर्य प्रसाधन की चीजें और अपने सामर्थ्य अनुसार आभूषण चढ़ाने का विधान है। नवरात्र के छठे दिन मां कात्यायनी की उपासना की जायेगी और बेल के पेड़ के पास जाकर देवी का बोधन किया जायेगा। नवरात्र के सातवें दिन मंत्रोच्चारण के साथ बेल के पेड़ से लकड़ी तोड़कर लाई जाती है। इन दिनों में देवी पूजा के साथ ही दान-पुण्य भी करना चाहिए। जरूरतमंद लोगों को भोजन और धन का दान करें। नवरात्रि में व्रत करने वाले लोगों को फल जैसे केले, आम, पपीता आदि का दान करें।
बाल मुकुन्द ओझा
वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार