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मैडम और मार्केट

व्यंग्य

बाजार तो बाजार है। बेजार नहीं। वह दिल से ज्यादा नब्ज पर हाथ रखता है। ग्राहक के कदम रखते ही वह सब भांप जाता है। कभी अकेले शॉप में जाएं। मुरझाए चेहरे। कुछ भी ले लो। कोई उत्साह नहीं। मरे मन से सेल्स बॉय चीज दिखाएगा। आदमी अलट पलट करके देखेगा। समझ में कुछ आयेगा नहीं। फिर सेल्स बॉय से कहेगा..भाई जो अच्छा हो। आप ही दे दो। मुश्किल बीबी के आइटम में आती है। पास में बैठी “बहन जी” की मदद लेनी पड़ती है। “जी, मिसेज के लिए साड़ी लेनी है। क्या आप मदद करेंगी?”
वह भी चतुर हैं। वह बारीकी नज़रों से पहले ही भांप चुकी थी..हमको कुछ समझ नहीं आ रही है। खैर, हमारे प्रश्न पर उनका जवाब मिला.. “श्योर “।” मैं लेती तो ये लेती”( जैसे हम उनको दिलवा रहे हों)। अब उनकी पसंद का तो पता नहीं। वैसे ये ले जाइए। शायद पसंद आ जाए। वरना आप चेंज कर लीजिए। हर लेडीज की पसंद अलग होती है। “
सेल्स बॉय ने मौका ताड़ा। भाईसाहब दो ले जाइए। कोई न कोई पसंद आ ही जाएगी। एक बहन जी की पसंद की ले लें। एक मेरी पसंद की ( वो जान गया था, हम तो उल्लू हैं)। “भैया। तुम्हारी पसंद की क्यों? अपनी क्यों नहीं। “

बहरहाल, घर पर आए। बीबी ने डिब्बा खोला। “अरे, वाह। तुम तो मेरे लिए साड़ी लाए हो।” पहला डिब्बा सेल्स बॉय की पसंद वाला था। वो देखा। फिर किनारे रख दिया। दूसरा डिब्बे का दिल धुक धुक हो रहा था..खुल जा सिम सिम। डिब्बा खुला..”ये तुम लाए हो? ये तुम्हारी पसंद तो लगती नहीं? किस से पसंद करवाई?”
पोल खुल गई। सच बताना पड़ा। “वही तो”। मैं तो देखते ही समझ गई थी। जान पहचान की थी?” अरे नहीं। बगल में बैठी थी। उसी से पूछ लिया। “साड़ी तो ठीक है। सुंदर है। लेकिन अब मैं साड़ी कहां पहनती हूं? इस कलर की तो कई हैं। वैसे भी मैं तो अब सूट पहनती हूं।”
दुकानदार कह रहा था..”पसंद न आए तो बदल लेना..मैने कहा।”
ठीक है। अभी चलते हैं ( महिलाएं बाजार जाने को कभी मना नहीं करतीं। बाजार उनसे है। वो बाजार से)। हम दोनों दुकान पर पहुंचे। वो महिला अभी तक वहीं जमी हुई थी। या तो साड़ी पसंद नहीं आई। या हमारा इंतजार कर रही थी।
हमने परिचय कराया..” आपके लिए इन्होंने ही पसंद की थी ..”। दोनों ने बुझे मन से एक दूसरे को नजरों से हेलो कहा। दोनों अपने काम में लग गई। वाइफ ने पचास साड़ी में से 8 चॉयस में निकाली। फिर सबको रिजेक्ट किया। जो हम लेकर गए थे। वही घर में आ गई। साथ में दो सूट और।
कनखियों से उस महिला ने हमको देखा। नजरों से थंब किया। देखी, हमारी पसंद !

महिला प्रवृत्ति को ध्यान में रखकर ही बाजारों में एक्सचेंज ऑफर निकलता है। जीएसटी अपने आप उछलता रहता है। स्लैब की यहां जरूरत नहीं। महिलाओं के लिए कोई दुकान नई नहीं। प्रायः हर दुकान पर लक्ष्मी जी के चरण कमल पड़ चुके होते हैं। 800 या 1000 करोड़ का बिजनेस यूं ही नहीं हो जाता। वो भी अकेले करवा चौथ पर।

पूरे बाजार पर महिलाओं या बच्चों का कब्जा है। उदाहरण देखिए…गारमेंट्स, ज्वेलरी,कॉस्मेटिक,ब्यूटी पार्लर और राशन की दुकानें। इनकी अनगिनत रेंज है। एक ही लेन में पांच ज्वेलर्स। 20 साड़ी या गारमेंट्स के शो रूम। चार पार्लर। पांच परचून की दुकान। तीन जगह पानी के बताशे। बाकी में लेडीज शूज।

शेष 10 प्रतिशत में बच्चे। 2 % में पुरुषों की थकी हुई जींस। टी शर्ट। सूट। या हाथ की घड़ी। कोई रेंज नहीं। नो एक्सचेंज ऑफर। उसमें भी लेडीज चॉइस..” ये ले लो। यही ठीक लगेगी।” जैसे जैसे महिलाएं आगे बढ़ रही हैं। बाजार भी बढ़ रहा है। विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था से हमको कौन रोकेगा? जीडीपी में इससे बड़ा योगदान क्या होगा ? वह गृह लक्ष्मी हैं। राज लक्ष्मी हैं। धन लक्ष्मी हैं।

सूर्यकांत

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