बंगाल में सांसद सहित तीन आदिवासियों पर हमले पर चुप्पी क्यों?

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बंगाल में सांसद सहित तीन आदिवासियों को सरे आम गाड़ी से उतारकर जिस तरह लहूलुहान कर दिया गया उसने लोकतंत्र को शर्मसार कर दिया है । आश्चर्य की बात है देश के राजनीतिक दलों को सीजेआई का दलित बौद्ध होना तो दिखाई दे गया , बिहार के तीन आदिवासी जनप्रतिनिधियों का आदिवासी होना दिखाई नहीं दिया । बंगाली जनता द्वारा निर्वाचित जनप्रतिनिधियों पर हमला करने वाले ममता के चहेते गुंडों की जाति दिखाई नहीं दी ।

समय आ गया है कि बंगाल को आधा बांग्लादेश बना चुकी ममता को अब कड़ा सबक सिखाया जाए । आश्चर्य की बात है कि सांसद और विधायकों के लहूलुहान होने पर प्रधानमंत्री भी एक्स हैंडल पर एक छोटी सी पोस्ट डालकर चुप हो गए । जबकि तीनों बीजेपी के निर्वाचित प्रतिनिधि थे और साथ चल रहे सीआरपीएफ जवानों तक पर लट्ठ बरसाए गए । दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि समूचे घटनाक्रम को वहां मौजूद पुलिस हाथ बांधे देखती रही ?

ममता का यह जंगलराज उससे भी बदतर है जैसा जंगलराज लालू के जमाने में बिहार में चला करता था । ममता के पहले कार्यकाल से लेकर आज तक हालात में कोई भी सुधार नहीं हुआ । उल्टे दिनों दिन बंगाल के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं । बंगाल के आधा दर्जन जिले तो पूरी तरह बांग्लादेश बन चुके हैं । इन जिलों से हिन्दू आबादी लगातार पलायन कर रही है । दरअसल ममता सरकार तोलाबाजी के दम पर राजनीति करने वाली सरकार है ।

ममता ने टाटा जैसे उद्यमियों को बंगाल से भगा दिया था , लेकिन राज्य की डेमोग्राफी को पूरी तरह बदलने का अभियान छेड़ा हुआ है । हिंसक गुंडागर्दी , आगजनी , लूट , डकैती के दम पर राज करने वाली ममता बनर्जी साम दाम दण्ड भेद के आधार पर बंगाल को दूसरा बांग्लादेश बनाना चाहती हैं । उन्होंने पिछले दशक में बंगाल को कांग्रेस और वामपंथियों से शून्य कर दिया है । लेकिन भाजपा उनके सामने कड़ी चुनौती बनकर आई है । बीजेपी को ममता मिटा नहीं पा रही अतः वे अपने पेड़ पार्टी वर्कर्स से जानबूझकर हमले करा रही हैं ।

किसी भी चुनी हुई राज्य सरकार को बीच में हटाने का एकमात्र इलाज है राष्ट्रपति शासन । खासकर कोई मुख्यमंत्री जब इतना अराजक हो जाए कि बॉर्डर स्टेट को पुराना कश्मीर बनाने पर आमादा हो । लेकिन लोकतंत्र में राष्ट्रपति शासन लगाना कोई अच्छी बात नहीं माना जाता । किसी को भी पसंद नहीं । जनता द्वारा चुनी सरकार को जनता ही वक्त आने पर हटाए , यही लोकतंत्र की खूबसूरती है ।

लेकिन ममता राज में पानी सिर के ऊपर से गुजर चुका है । समय आ गया है कि बंगाल में लोकतंत्र बचाने के लिए हत्यारी हो चुकी ममता को कोई कड़ा सबक सिखाया जाए । ममता ने बंगाल में शिक्षा , संगीत , फिल्म , नृत्य और ज्ञान के भद्रलोक को तबाह कर दिया है । केंद्र का दायित्व है कि इस भद्रलोक को बचाने में अब देर न की जाए । बहुत देर से उठाया उचित कदम भी आत्मघाती होता है , जान लीजिए ?

…..कौशल सिखौला

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