घर से दलिदर या दरिद्र को भगाने की परंपरा

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बिहार और उत्तर प्रदेश के भोजपुरी भाषी क्षेत्र में दीपावली के अगले दिन घर से दलिदर या दरिद्र को को भगाने की मजेदार परंपरा है।इस दरिद्रता को भगाने के लिए दिवाली की भोर सूप से ध्वनि की जाती है। ये परंपरा आदि काल से चली आ रही है। दिवाली की भोर यानी ब्रह्मकाल में सूप पीटने की प्रथा का उद्देश्य घर से दरिद्रता को बाहर निकालकर समृद्धि और वैभव को आमंत्रित करना है। इस दिन महिलाएं सूप बजाकर ‘दुख-दरिद्रता बाहर जाए-अन्न-धन लक्ष्मी घर में आएं’ गांव की स्त्रियां टोली बनाकर ब्रह्म बेला में हाथ में सूप और कलछुल लेकर घरों से निकलती हैं और सूप बजाती हुई दलिदर को बगल वाले गांव के सिवान तक खदेड़ आती है।

दिवाली की सुबह लगभग चार बजे उठकर घर की माताएं या कोई भी एक सदस्य टूटी हुई सूप लेकर पूरे घर में घूम घूम कर उसे बजाता है। हर कोने में ले जाकर सूप खटखटाता है। और कहता है की दरिद्रता भागे और लक्ष्मी जी आए। आम भाषा में लोग कहते हैं दलिंदर भाग मां लक्ष्मी अंदर आए। इस तरह की बातें इसलिए कही जाती हैं कि जो नकारात्मकता घर है वह बाहर भागे और सकारात्मक यानी मां लक्ष्मीजी घर के अंदर आएं। दलिदर भगाने की इस लोक परंपरा को देवी लक्ष्मी की बड़ी बहन अलक्ष्मी से जोड़कर देखा जाता है। पुराणों के अनुसार अलक्ष्मी समुद्र मंथन में लक्ष्मी के पहले मिली थी। लक्ष्मी युवा, सौंदर्यवान थी लेकिन अलक्ष्मी वृद्धा, कुरूप। लक्ष्मी धन, वैभव और सौभाग्य का प्रतीक और अलक्ष्मी दरिद्रता, दुख, दुर्भाग्य का कारण। लक्ष्मी का संबंध मिष्ठान्न से है, अलक्ष्मी का खट्टी और कड़वी चीजों से। यही वजह है कि मिठाई घर के भीतर रखी जाती है और नीबू तथा तीखी मिर्ची घर के बाहर लटका दी जाती है। लक्ष्मी मिठाई खाने घर के अंदर तक आती हैं। अलक्ष्मी नींबू, मिर्ची खाकर दरवाज़े से ही संतुष्ट लौट जाती हैं।

भोजपुरी लोक संस्कृति में संभवतः दरिद्रता की देवी अलक्ष्मी को दलिदर कहकर भगाया जाता है। आज के दिन गांव की औरतें सूप और कलछुल की कर्कश ध्वनि के बीच दलिदर को बगल वाले गांव की सीमा तक खदेड़ देती है। बगल वाले गांव की औरतें उसे अपने बगल के गांव के सिवान तक। सिलसिला चलता रहता है। प्रतिस्पर्द्धा ऐसी कि दलिदर उस पूरे इलाके में 360 डिग्री घूमकर ही रह जाता होगा। इलाके से निकलने का शायद ही कोई रास्ता बचता होगा उस बेचारे के पास। शायद यही कारण है कि सदियों तक खदेड़े जाने के बावजूद देश में दलिदर आज भी जस का तस बना हुआ है।

ध्रुव गुुप्ता

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