
− तनवीर जाफ़री
अमेरिकीराष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रयासों से ग़ज़ा को लेकर नई शांति योजना घोषित की गयी है। कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति ट्रंप व इस्राईली प्रधानमंत्री नेतन्याहू द्वारा संयुक्त रूप से प्रस्तावित यह योजना ग़ज़ा में सैन्य संघर्ष को समाप्त करने और इस क्षेत्र में दीर्घकालिक शांति स्थापित करने के लिए बनाई गई है। इस नई शांति योजना के अंतर्गत मुख्य रूप से ग़ज़ा को “आतंक मुक्त” और उग्रवाद-मुक्त क्षेत्र बनाने का लक्ष्य है, जिससे पड़ोसी देशों के लिए कोई ख़तरा न रहे और वहां पुनर्निर्माण व विकास कार्य शुरू हो सके। इस प्रस्तावित योजना के तहत इस्राईल अपनी सेना को चरणबद्ध तरीक़े से ग़ज़ा से हटाएगा, बशर्ते दोनों पक्ष यानी इस्राईल और हमास इस योजना को स्वीकार करें। सार्वजनिक रूप से दोनों पक्षों द्वारा इस योजना को स्वीकार करने के 72 घंटे के भीतर सभी बंधकों की रिहाई की बात कही गई है। प्रस्तावित समझौते के अनुसार हमास के क़ब्ज़े में रखे गये बंधकों की रिहाई के बाद इस्राईल भी क़रीब 250 फ़िलस्तीनी कैदियों सहित अन्य सैकड़ों गिरफ़्तार ग़ज़ा वासियों को रिहा करेगा। इसके अतिरिक्त ग़ज़ा में अस्थायी रूप से एक अंतरराष्ट्रीय शासी बोर्ड बनेगा, जिसकी अध्यक्षता स्वयं डोनाल्ड ट्रंप करेंगे। इसमें पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर भी शामिल होंगे। शांति योजना के अनुसार हमास के जो सदस्य शांतिपूर्वक साथ रहने की शपथ लेंगे उन्हें तो मुआफ़ी दी जाएगी जबकि अन्य को सुरक्षित निकास या किसी इच्छुक देश में बसने का विकल्प मिलेगा।
अमेरिका व इस्राईल द्वारा ग़ज़ावासियों पर ‘थोपी’ जा रही इस शांति योजना पर मुस्लिम देशों के रवैये में एक राय नहीं है। सऊदी अरब, जॉर्डन, संयुक्त अरब अमीरात, क़तर, मिस्र, इंडोनेशिया और पाकिस्तान जैसे कई अन्य ‘अमेरिका परस्त ‘ मुस्लिम राष्ट्रों ने इन शांति प्रयासों का समर्थन किया है तो ईरान और तुर्की जैसे देश इस योजना को ‘अधूरी’ और फ़िलिस्तीन के हक़ में अपर्याप्त मान रहे हैं। इन देशों का मानना है कि इस योजना से फ़िलिस्तीनी स्वायत्तता और हमास की भूमिका सीमित हो जाती है। ईरान का मत है कि वह ‘न्यायपूर्ण, संतुलित और स्थायी समाधान’ के पक्ष में है और ग़ज़ा व फ़िलिस्तीन संबंधी किसी भी योजना में फ़िलिस्तीनी जनता की इच्छाओं व आकांक्षाओं की अनदेखी उचित नहीं है। ईरान ने इस योजना को ‘चौंकाने वाला’ और “फ़िलिस्तीनियों के जबरन विस्थापन का प्रयास” बताया है। जबकि कई अरब देश ऐसे भी हैं जिन्होंने अमेरिका के नेतृत्व वाली इस प्रक्रिया के स्थायित्व को लेकर संदेह ज़ाहिर किया है। इस योजना को लेकर नेतन्याहू का मानना है कि इस योजना से उनके युद्ध के उद्देश्य पूरे होंगे। इस योजना के लागू होने से बंधकों की वापसी, हमास की सैन्य क्षमताओं का विघटन, और भविष्य में ग़ज़ा से कोई ख़तरा न रहना सुनिश्चित हो सकेगा। ख़बरों के अनुसार हमास ने भी दूर दृष्टि का परिचय देते हुये इस नई शांति योजनसा को स्वीकार कर लिया है।
ऐसे में एक बड़ा सवाल यह है कि ग़ज़ा जनसंहार के दोषी व ग़ज़ा शांति को लेकर पूरी दुनिया की अनदेखी करने वाले नेतेनयाहू को आख़िर इस नई शांति योजना के लिये अचानक क्यों राज़ी होना पड़ा। यह समझने के लिये हमें पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र पर नज़र डालनी होगी। दरअसल न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र महासभा में पिछले दिनों उस समय अजीब दृश्य देखने को मिला जब विश्व के इस सबसे प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मंच से इस्राईल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू अपना भाषण देने के लिये जैसे ही खड़े हुये उसी समय उनके भाषण का विश्व के अधिकांश देशों द्वारा बहिष्कार किया गया। 193 देशों की इस महासभा में सैकड़ों देशों के प्रतिनिधि व राजनयिक अपनी कुर्सियां छोड़कर सदन से बाहर चले गए जिससे महासभा का काफ़ी बड़ा हिस्सा ख़ाली रह गया। उस समय नेतन्याहू के चेहरे पर परेशानी व असहजता के भाव साफ़ नज़र आ रहे थे। निःसंदेह यह दृश्य इस्राईल की वर्तमान आक्रामक नीतियों, विशेषकर उसके द्वारा ग़ज़ा में जारी सैन्य अभियान और इससे होने वाले जनसंहार, के प्रति वैश्विक असहमति व आक्रोश का प्रतीक बन था। इस घटना के उस व्यापक निहितार्थ को भी समझने की ज़रुरत है जिसमें इस्राईल व नेतन्याहू के सन्दर्भ में अंतर्राष्ट्रीयक़ानून, नैतिकता, राजनीति और भविष्य की वैश्विक व्यवस्था पर सवाल खड़े होते हैं। नेतन्याहू के भाषण के दौरान केवल अरब, मुस्लिम और अफ़्रीक़ी देशों के प्रतिनिधि ही बाहर नहीं गए, बल्कि अनेक यूरोपीय व पश्चिमी देशों के राजनयिकों ने भी नेतन्याहू के भाषण के विरोध में मंच छोड़ दिया। दरअसल यह बहिष्कार इस्राईल की अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बढ़ती अलगाव और दुनिया की नज़रों में इस्राईल के ‘अछूत ‘ बनने की स्थिति की ओर संकेत करता है।
नेतन्याहू इस समय अमेरिका संरक्षित विश्व के सबसे बड़े ‘अपराधी ‘ राष्ट्राध्यक्ष व एक बदनाम नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं। उनपर ग़ज़ा युद्ध में जनसंहार व युद्ध अपराध करने के आरोप हैं। इस व्यक्ति ने खाने के लिये लाइन में लगे भूखे लोगों पर, अस्पतालों पर शरणार्थी कैम्प्स पर अनेक बार बमबारी करवाई है। अंतर्राष्ट्रीय अदालत ने उसके विरुद्ध गिरफ़्तारी वारंट जारी कर रखा है। नेतन्याहू के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक अदालत ने नवंबर 2024 में वारंट जारी किया है जिसमें उसे ‘युद्ध अपराध’ और ‘मानवता के ख़िलाफ़ अपराध’ का आरोपी ठहराया गया है । इन आरोपों में भुखमरी को हथियार बनाना, नागरिकों की हत्या करवाना , उत्पीड़न, और अन्य अमानवीय कृत्य शामिल हैं। नेतन्याहू अंतर्राष्ट्रीय अदालत के सभी 125 सदस्य देशों की यात्रा के समय क़ानूनी तौर पर हिरासत में लिये जा सकते हैं। उधर ग़ज़ा व फ़िलिस्तीन की धरती को क़ब्ज़ा करने की फ़िराक़ में अपनी गिद्ध दृष्टि लगाये बैठे नेतन्याहू को दुनिया के कई प्रमुख देश एक के बाद एक झटके देते जा रहे हैं। मिसाल के तौर पर जिस फ़िलिस्तीन को इस्राईल स्वतंत्र राष्ट्र मानने को तैयार नहीं उसी फ़िलिस्तीन को फ़्रांस , यूके, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे कई पश्चिमी देशों ने गत दिनों स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी।
दरअसल संयुक्त राष्ट्र महासभा में पिछले दिनों नेतन्याहू के भाषण का विश्व के अधिकांश देशों द्वारा किये गये बहिष्कार की घटना ने जहां नेतन्याहू को ट्रंप द्वारा प्रस्तावित नई शांति योजना को स्वीकार करने के लिये मजबूर किया वहीँ कई प्रमुख पश्चिमी देशों द्वारा फ़िलिस्तीन को राष्ट्र के रूप में मान्यता दिया जाना भी नेतन्याहू के लिये एक बड़ा झटका साबित हुआ है। वास्तव में अपनी जनसंहारक नीतियों से नेतन्याहू इस्राईल को दुनिया की नज़रों में एक अछूत देश बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे थे।

तनवीर जाफ़री
वरिष्ठ पत्रकार
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