व्यंग्य

भिड़ने के लिए खुला मैदान है। स्कोप भी है। रोज़गार भी। असरदार भी। खुला टेंडर है। कोई भी आए भिड़ ले। हम रोज भिड़ते हैं। सड़क पर। ऑफिस में। स्कूल में। कॉलेज में। घर में। बाजार में। व्हाट्सएप पर। फेसबुक पर। टीवी पर। अखबारों में। यह दंगल है। यहां हर पल मंगल है।
सूरज ढल रहा था। शाम की आमद हो रही थी। सब अपने घर दौड़ रहे थे। भिड़ने का टाइम हो रहा था? आज किससे और क्यों भिड़ना है। व्हाट्सअप खोला। कॉलोनी के ग्रुप में सब भिड़ रहे थे। कॉलोनी में सफाई नहीं हुई। यह बात रात को याद आई।
भिड़ने के लिए अब चयन होता है। कौन कितना भिड़ सकता है। इसके लिये नाम मांगे जाते हैं। सभी पार्टियां अपने भिड़ंतु को भेजती हैं। टीआरपी बढ़ती है। दंगल शुरू होता है। भिड़ने के लिए कोई आयु वर्ग नहीं है। सभी धर्मों में सीट आरक्षित हैं।
स्कूटी भिड़ गई। तो भिड़ंत। कार रुक गई तो भिड़ंत। भिड़ने के लिए सब्जेक्ट की कमी नहीं। कभी भी किसी से कहीं भी भिड़ा जा सकता है। अब अपना घर ही देखो। पति पत्नी से, पत्नी पति से, बच्चे मां बाप से हर दिन भिड़ते हैं। सास और बहू का तो यह प्रतिदिन का मनोरंजन है। जब कोई नहीं भिड़ता तो पड़ोसी से भिड़ते हैं। यह पेट की आग है। आसानी से नहीं बुझती।
नेता हर दिन भिड़ते हैं। लोकतंत्र है। सबको भिड़ने की छूट है। तंत्र वहां भिड़ता है। लोक सोशल मीडिया पर। दोनों को मिलाकर ही लोकतंत्र बनता है।
भिड़ने के लिए कपड़े फटना जरूरी नहीं। फट जाएं तो परहेज नहीं। योग में वाणी व्यायाम का बहुत महत्व है। बिना बात हंसों। अपने से बात करो। आँखें बंद करो। ध्यान लगाओ। सोचो, किससे भिड़ा जा सकता है? फिर भिड़ जाओ। इससे ज्ञान चक्षु खुलते हैं। शरीर के सारे अवयव ठीक से काम करते हैं।
यह वोकल एक्सरसाइज है। वोकल टू लोकल।
भिड़ना वैश्विक है। पूरा विश्व भिड़ रहा है। 77 मुल्क एक दूसरे से भिड़े पड़े हैं। क्यों कि? भिड़ेंगे नहीं तो शक्ति कैसे पता चलेगी? सीज फायर कैसे होगा। शांति का नोबल कैसे मिलेगा।
जीभ भी हथियार है। परमाणु बम है। इसको धार देते रहना चाहिए। हर जीव जंतु यही करते हैं। आपने सामने आते हैं। भिड़ते हैं। देर तक भौंकते हैं। फिर दुम दबाकर शांत। तू अपने घर। मैं अपने घर।
यह उपमा बुरी लगेगी। लेकिन सच यही है। हम भी ऐसे ही भिड़ते हैं। हमारे ग्रुपों में यही होता है। शाम का फ्री मनोरंजन। मन में रंज न । आज का कोटा पूरा। काम खत्म। भिड़ने के लिए एक चिंगारी ही काफी है। नेता चिंगारी फेंकते हैं। हम भिड़ते हैं। बिना बात। बेबाक।
आज भी भिड़ रहे हैं। कल भी भिड़ेंगे। फ्री का मनोरंजन किसको बुरा लगता है। मुद्दे अनेक हैं। भिड़ने और भिड़ाने वाले चाहिए।
ग्रुप का टाइम हो गया है। भुजाएं फड़फड़ा रहीं हैं। आओ भिड़ते हैं। आप भी आओ। खाल में से बाल निकालते हैं। हवा को वायु कहते हैं। वायु को हवा। किसी की तो हवा गुम होगी।
हा हा हा।
सूर्यकांत द्विवेदी