अफगानिस्तान के विदेश मंत्री का भारत दौरा: विश्व की राजनीति पर प्रभाव

Date:


​अफगानिस्तान की तालिबान-शासित सरकार के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी का हालिया भारत दौरा क्षेत्रीय कूटनीति और वैश्विक भू-राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण घटना है। अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद किसी वरिष्ठ तालिबान नेता की यह पहली उच्च-स्तरीय यात्रा थी। भले ही भारत ने अभी तक तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं दी है, लेकिन यह दौरा दोनों देशों के बीच व्यावहारिक जुड़ाव और दशकों पुरानी दुश्मनी को समाप्त करने की दिशा में एक अहम कूटनीतिक क्षण माना जा रहा है।
​इस दौरे के निहितार्थ केवल भारत-अफगानिस्तान संबंधों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इसका असर विश्व की राजनीति, विशेषकर क्षेत्रीय शक्ति संतुलन और आतंकवाद-विरोधी प्रयासों पर भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

मुत्ताकी का भारत दौरा क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को प्रभावित करने वाला एक बड़ा कदम है। ​भारत ने तालिबान के सत्ता में आने के बावजूद अफगानिस्तान में मानवीय सहायता जारी रखी है और काबुल में अपने ‘तकनीकी मिशन’ को अब ‘पूर्ण दूतावास’ के स्तर पर अपग्रेड करने की घोषणा की है, साथ ही तालिबान को नई दिल्ली स्थित अफगान दूतावास में अपने राजनयिक नियुक्त करने की भी अनुमति दी है। यह कदम भारत की अफगानिस्तान नीति में बड़े बदलाव का संकेत है। भारत अफगानिस्तान में अपने सुरक्षा हितों (खासतौर पर भारत विरोधी आतंकवादी समूहों की सक्रियता) और विकास परियोजनाओं (लगभग $3 बिलियन से अधिक का निवेश) को सुरक्षित करने के लिए पर्दे के पीछे से तालिबान के साथ संपर्क बनाए हुए है। यह दौरा संबंधों को और मजबूत करने का संकेत है।

यह दौरा क्षेत्रीय शक्ति संतुलन, खासकर पाकिस्तान के लिए, कई सवाल खड़े करता है। पाकिस्तान की हमेशा से यह इच्छा रही है कि अफगानिस्तान की विदेश नीति पर उसका प्रभाव रहे, विशेषकर भारत के मामलों में। तालिबान और भारत के बीच बढ़ती नजदीकी से पाकिस्तान में चिंताएं बढ़ी हैं। तालिबान के विदेश मंत्री ने भारत को आतंकवाद के खिलाफ अफगानिस्तान की ज़मीन का उपयोग न होने देने की प्रतिबद्धता दोहराई है, जिसका सीधा निहितार्थ पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों के लिए चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है। इसके अलावा, भारत चाबहार बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान के साथ व्यापार बढ़ाना चाहता है, जो पाकिस्तान को दरकिनार करता है। इससे पाकिस्तान पर भू-राजनीतिक दबाव बढ़ सकता है।

दौरे के दौरान व्यापार, अर्थव्यवस्था, हवाई संपर्क बढ़ाने और निवेश के अवसरों पर चर्चा हुई। अफगानिस्तान ने भारतीय कंपनियों को अपने खनन क्षेत्र में अवसरों की खोज करने के लिए आमंत्रित किया। भारत की ओर से चाबहार बंदरगाह के माध्यम से व्यापारिक संपर्क बढ़ाने की पहल क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और व्यापार के लिए महत्वपूर्ण है। यह अफगानिस्तान की आर्थिक स्थिरता में भारत की सकारात्मक भूमिका को भी रेखांकित करता है।

इस दौरे का असर सिर्फ क्षेत्रीय ताकतों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बड़ी शक्तियों के बीच कूटनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित करता है।भारत का यह उच्च-स्तरीय जुड़ाव तालिबान सरकार के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैधता हासिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। दुनिया के कई देश अभी भी तालिबान को औपचारिक रूप से मान्यता देने से हिचक रहे हैं, लेकिन भारत जैसे महत्वपूर्ण देश का व्यावहारिक जुड़ाव अन्य देशों को भी तालिबान के साथ संबंध सामान्य बनाने के लिए प्रेरित कर सकता है। यह तालिबान के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत है।

भारत और अफगानिस्तान दोनों ने सभी प्रकार के आतंकवाद से निपटने के लिए समन्वित प्रयास करने पर सहमति व्यक्त की है। अफगानिस्तान ने दोहराया है कि उसकी ज़मीन का उपयोग किसी भी देश के खिलाफ कोई आतंकवादी गतिविधि चलाने के लिए नहीं किया जाएगा। यह आश्वासन वैश्विक समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है, जो अफगानिस्तान को फिर से आतंकवाद का केंद्र बनने से रोकने के लिए चिंतित है। यह कदम भविष्य में वैश्विक आतंकवाद-विरोधी प्रयासों की दिशा को भी प्रभावित कर सकता है।

यह दौरा ऐसे समय में हुआ है जब ईरान कमजोर हुआ है, रूस यूक्रेन युद्ध में व्यस्त है, और अमेरिका का रुख अस्थिर बना हुआ है। चीन पहले से ही तालिबान के साथ राजनयिक संबंध मजबूत कर रहा है। भारत का यह कदम क्षेत्रीय शक्ति चीन के बढ़ते प्रभाव को प्रतिसंतुलित करने की दिशा में भी देखा जा सकता है, जिससे एशियाई भू-राजनीति में एक नई रणनीतिक प्रतिस्पर्धा की शुरुआत हो सकती है। भारत की यह सक्रियता क्षेत्र में किसी भी एक बड़ी शक्ति के पूर्ण दबदबे को रोकने में महत्वपूर्ण हो सकती है।

​अफगानिस्तान के विदेश मंत्री का भारत दौरा दोनों देशों के बीच संबंधों के सामान्यीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह न केवल भारत के सुरक्षा और आर्थिक हितों को साधने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि क्षेत्रीय शक्ति संतुलन और वैश्विक आतंकवाद-विरोधी प्रयासों की दिशा को भी प्रभावित करता है। यह दौरा क्षेत्रीय कूटनीति में भारत की व्यावहारिक नीति और बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य को दर्शाता है, जिसमें भारत अब अफगानिस्तान के साथ मिलकर एक स्थिर और सुरक्षित भविष्य की दिशा में आगे बढ़ना चाहता है, भले ही औपचारिक मान्यता का प्रश्न अभी भी लंबित हो।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

पोस्ट साझा करें:

सदस्यता लें

spot_imgspot_img

लोकप्रिय

इस तरह और भी
संबंधित

आर्य समाज नेता और सांसद प्रकाशवीर शास्त्री : धर्म, राष्ट्र और संस्कृति के तेजस्वी पुरोधा

प्रकाशवीर शास्त्री भारतीय राजनीति, धर्म और समाज-सुधार की उन...

भारतीय संगीत की मधुर आत्मा, पाश्र्वगायिका गीता दत्त

भारतीय फिल्म संगीत के स्वर्णयुग में जो आवाज सबसे...

कोई बड़ी बात नही, कल फिर सिंध भारत में आ जाएः राजनाथ सिंह

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि सीमाएं...

तृणमूल विधायक हुमायूं कबीर का छह दिसंबर को ‘बाबरी मस्जिद’ की नींव रखने का ऐलान

तृणमूल कांग्रेस विधायक हुमायूं कबीर ने छह दिसंबर...
hi_INहिन्दी