
छठ पर्व भारतीय संस्कृति का वह अनुपम उत्सव है जिसमें प्रकृति, आस्था और अनुशासन का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यह पर्व केवल सूर्य उपासना का प्रतीक नहीं, बल्कि जल और पर्यावरण के प्रति हमारी श्रद्धा का भी सबसे सुंदर उदाहरण है। जब-जब छठी मैय्या का गीत गूंजता है, तब-तब नदी के तटों पर आस्था की लहरें उमड़ पड़ती हैं। परंतु आज जब हम छठ मनाने की तैयारी कर रहे हैं, तब एक गहरी चिंता मन में उठती है। क्या हमारी नदियाँ, विशेषकर यमुना, इस आस्था को स्वीकार करने लायक बची हैं। हालांकि यमुना केवल एक नदी नहीं, भारत की संस्कृति की धारा है। जिस जल में कभी कृष्ण की बंसी गूंजी, जिसमें मथुरा-वृंदावन की मिट्टी ने भक्ति का रंग भरा, आज वही यमुना शहरों की गंदगी और कारखानों के जहरीले रसायनों से कराह रही है। दिल्ली से लेकर आगरा तक यमुना के जल का स्वरूप देखकर कोई भी संवेदनशील व्यक्ति विचलित हुए बिना नहीं रह सकता। छठी मैय्या के उपासक जिस पवित्रता से जल अर्पित करते हैं, वह पवित्रता अब स्वयं यमुना में दिखाई नहीं देती। छठ पर्व हमें सिखाता है कि प्रकृति की पूजा केवल फूल-मालाओं से नहीं, बल्कि उसके संरक्षण से होती है। यमुना की सफाई के लिए केवल सरकारी योजनाएँ काफी नहीं होंगी। यह कार्य तभी सफल होगा जब जनता, समाज और प्रशासन मिलकर इसे एक सामूहिक जिम्मेदारी के रूप में स्वीकार करेंगे। आज आवश्यकता है साफ यमुना सबका अभियान की। इसमें पहला कदम होना चाहिए कि गंदगी के स्रोतों की पहचान हो। यमुना में सबसे अधिक प्रदूषण नालों, सीवर और फैक्ट्री के केमिकल डिस्चार्ज से आता है। दिल्ली, फरीदाबाद, मथुरा और आगरा के बीच सैकड़ों छोटे-बड़े नाले सीधे नदी में गिर रहे हैं। अगर इन्हें चिन्हित कर, उन पर रोक लगा दी जाए तो आधी समस्या वहीं समाप्त हो जाएगी। हर जिले में नागरिक समितियाँ बनाई जा सकती हैं जो ऐसे बिंदुओं की निगरानी करें और प्रशासन को रिपोर्ट दें। दूसरा कदम फैक्ट्रियों की जिम्मेदारी तय की जाए। जो उद्योग अपना अपशिष्ट बिना ट्रीटमेंट के यमुना में बहा रहे हैं, उन पर भारी जुर्माना और सीलिंग की कार्रवाई हो। पर्यावरण विभाग को जनता की निगरानी के साथ जोड़ना होगा ताकि कोई भी उल्लंघन छिप न सके। तीसरा कदम धार्मिक आयोजनों में स्वच्छता का अनुशासन हो। छठ पूजा के अवसर पर लाखों श्रद्धालु यमुना तट पर एकत्रित होते हैं। उनकी भावना पवित्र है, लेकिन यदि आयोजन के बाद पूजा सामग्री, मूर्तियाँ, कपड़े या प्लास्टिक नदी में डाले जाएँ तो वही आस्था प्रदूषण का कारण बन जाती है। इसके लिए नगर निकायों को घाटों पर विशेष सफाई दल और कूड़ा संग्रह केंद्र लगाने चाहिए। साथ ही, भक्तों से यह अपील भी जरूरी है कि मैय्या की पूजा धरती को गंदा कर के नहीं, साफ रख कर करें। चौथा कदम जनजागरण और शिक्षा का हो। स्कूलों, कॉलेजों और सामाजिक संस्थाओं में यमुना संकल्प सप्ताह मनाया जाए। ताकि नई पीढ़ी समझ सके कि धर्म और पर्यावरण एक-दूसरे के पूरक हैं। मीडिया की भूमिका भी अहम है। वह हर सप्ताह यमुना की स्थिति और सुधार कार्यों की रिपोर्ट जनता के सामने रखे। पाँचवाँ कदम तकनीकी उपाय का हो। यमुना किनारे पानी की गुणवत्ता मापने वाले सेंसर और सीसीटीवी कैमरे लगाए जाए। ताकि कोई भी संस्था या व्यक्ति चोरी-छिपे गंदगी न गिरा सके। साथ ही, छोटे स्तर पर जैविक ट्रीटमेंट प्लांट और नाले रोकने वाले फिल्टर सिस्टम लगाए जाए। छठ पर्व की आत्मा यही कहती है कि सूर्य और जल ये दोनों जीवन के आधार हैं। जब हम डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं, तो यह केवल पूजा नहीं बल्कि कृतज्ञता का भाव होता है। हमें यह स्वीकार करना होगा कि अगर हम अपनी नदियों को मरने देंगे, तो यह पूजा केवल औपचारिकता बनकर रह जाएगी। यमुना की सफाई का अभियान दरअसल आस्था और अस्तित्व दोनों की रक्षा का संकल्प है। छठी मैय्या का यह पावन पर्व हमें यह याद दिलाता है कि पवित्रता केवल मंत्रों में नहीं, बल्कि हमारे कर्मों में बसती है। जब समाज का हर व्यक्ति यह ठान ले कि वह गंदगी नहीं फैलाएगा, नाले को नदी नहीं बनाएगा, फैक्ट्री को जिम्मेदार बनाएगा, तभी यमुना फिर से जीवन से भर उठेगी। आइए, इस बार छठ की संध्या पर हम सब मिलकर एक संकल्प लें कि मैय्या के अर्घ्य के साथ यमुना की रक्षा भी हमारी पूजा का हिस्सा है। अगर यह भावना जन-जन में बस गई तो यकीन मानिए कि फिर से यमुना बहेगी निर्मल, फिर से गूंजेगा भक्ति का स्वर और फिर छठी मैय्या का आशीर्वाद पूरे समाज को स्वच्छता और समृद्धि का संदेश देगा।

भूपेन्द्र शर्मा सोनू
(स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक)