कहते हैं कि 21 अक्टूबर 1577 गुरू रामदास ने अमृतसर नगर की स्थापना की।और इसे मूल रूप से ‘रामदासपुर’ के नाम से जाना जाता था। शहर का नाम ‘अमृतसर’ श्री गुरु रामदास जी द्वारा बनाए गए ‘अमृत सरोवर’ से पड़ा। गुरु अर्जुन देव जी ने 1577 में इसी सरोवर के बीच श्री हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) की नींव रखी, जो 1604 में पूरा हुआ। शहर का इतिहास 19वीं सदी में ब्रिटिश शासन के अधीन आने के साथ-साथ जलियांवाला बाग हत्याकांड जैसी दुखद घटनाओं से भी जुड़ा है।
अमृतसर का इतिहास गौरवशाली है। यह अपनी संस्कृति और लड़ाइयों के लिए बहुत प्रसिद्ध रहा है। अमृतसर अनेक त्रासदियों और दर्दनाक घटनाओं का गवाह रहा है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सबसे बड़ा नरसंहार अमृतसर के जलियांवाला बाग में ही हुआ था। इसके बाद भारत पाकिस्तान के बीच जो बंटवारा हुआ उस समय भी अमृतसर में बड़ा हत्याकांड हुआ।
यहीं नहीं अफगान और मुगल शासकों ने इसके ऊपर अनेक आक्रमण किए और इसको बर्बाद कर दिया। इसके बावजूद सिक्खों ने अपने दृढ संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति से दोबारा इसको बसाया। हालांकि अमृतसर में समय के साथ काफी बदलाव आए हैं लेकिन आज भी अमृतसर की गरिमा बरकरार है।
अमृतसर लगभग साढ़े चार सौ वर्ष से अस्तित्व में है। सबसे पहले गुरु रामदास ने 1577 में 500 बीघा में गुरूद्वारे की नींव रखी थी। यह गुरूद्वारा एक सरोवर के बीच में बना हुआ है। यहां का बना तंदूर बड़ा लजीज होता है। यहां पर सुन्दर कृपाण, आम पापड, आम का आचार और सिक्खों की दस गुरूओं की खूबसूरत तस्वीरें मिलती हैं।
अमृतसर में पहले जैसा आकर्षण नहीं रहा। अमृतसर के पास उसके गौरवमयी इतिहास के अलावा कुछ भी नहीं है। अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के अलावा देखने लायक कुछ है तो वह है अमृतसर का पुराना शहर। इसके चारों तरफ दीवार बनी हुई है। इसमें बारह प्रवेश द्वार है। यह बारह द्वार अमृतसर की कहानी बयान करते हैं।

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