
हिंदी साहित्य के विस्तृत संसार में प्रभा खेतान का नाम एक ऐसी सशक्त और संवेदनशील लेखिका के रूप में लिया जाता है, जिन्होंने अपने लेखन से स्त्री-मन, समाज और जीवन के यथार्थ को गहराई से अभिव्यक्त किया। वह न केवल एक प्रतिभाशाली लेखिका थीं, बल्कि एक समाजसेवी, व्यवसायी और अनुवादक के रूप में भी उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। प्रभा खेतान का साहित्य स्त्री चेतना की वह गूंज है जो पारंपरिक सीमाओं को लांघकर आत्मस्वर में बदल जाती है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
प्रभा खेतान का जन्म 1 नवंबर 1942 को राजस्थान के बीकानेर में हुआ था। बचपन से ही उनमें अध्ययन और चिंतन की प्रवृत्ति थी। उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की और बाद में अंग्रेज़ी साहित्य में डॉक्टरेट (Ph.D.) की उपाधि हासिल की। उनकी शिक्षा और संस्कारों ने उन्हें जीवन के गहरे अर्थों को समझने की दृष्टि दी।
प्रभा खेतान का जीवन राजस्थान के पारंपरिक सामाजिक परिवेश में बीता, जहां स्त्रियों पर अनेक प्रकार की सामाजिक मर्यादाएँ लागू थीं। लेकिन उन्होंने उन सीमाओं को तोड़ा और अपनी स्वतंत्र सोच व आत्मनिर्भरता के बल पर एक नई राह बनाई।
साहित्यिक यात्रा की शुरुआत
प्रभा खेतान का लेखन 1970 के दशक में शुरू हुआ। उन्होंने प्रारंभ में कविताएँ लिखीं, लेकिन धीरे-धीरे उनका रुझान उपन्यास और आत्मकथात्मक लेखन की ओर हुआ। उनका लेखन हिंदी साहित्य में स्त्री विमर्श की एक सशक्त आवाज़ के रूप में उभरा।
उनके लेखन की विशेषता यह है कि उन्होंने समाज की रूढ़ियों, स्त्री की आंतरिक जटिलताओं और उसकी भावनात्मक संवेदनाओं को बड़े ही सजीव और प्रखर ढंग से प्रस्तुत किया। उन्होंने यह दिखाया कि स्त्री केवल परिवार या संबंधों का हिस्सा नहीं, बल्कि अपनी स्वतंत्र सत्ता रखती है।
प्रमुख कृतियाँ
प्रभा खेतान ने कई प्रसिद्ध उपन्यास और आत्मकथाएँ लिखीं। उनके प्रमुख उपन्यास हैं — “छिन्नमस्ता”, “पीली आंधी”, “आओ पेपे घर चलें”, “उपनिवेश”, और “अन्या से अनन्या”।
“छिन्नमस्ता” : यह उपन्यास स्त्री की यौनिकता और सामाजिक पाखंड पर गहरा प्रहार करता है। इसमें उन्होंने एक ऐसी स्त्री की कहानी कही है जो अपनी इच्छाओं को दबाने से इनकार करती है।
“अन्या से अनन्या” : यह आत्मकथात्मक रचना है, जिसमें प्रभा खेतान ने अपने जीवन के अनुभवों को बेहद ईमानदारी से लिखा है। इस किताब में समाज की दोहरी मानसिकता, स्त्री की अस्मिता और आत्मसंघर्ष का मार्मिक चित्रण है।
“पीली आंधी” : यह उपन्यास उत्तर भारत के सामाजिक जीवन और उसमें नारी के संघर्षों को उजागर करता है।
इनके अलावा उन्होंने अनेक निबंध, कविताएँ और लेख भी लिखे जो पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए।
स्त्री विमर्श की सशक्त आवाज़
प्रभा खेतान का लेखन स्त्री विमर्श को हिंदी साहित्य में गहराई देने वाला माना जाता है। उन्होंने यह माना कि नारी मुक्ति का अर्थ केवल पुरुष विरोध नहीं है, बल्कि अपनी पहचान और आत्मसम्मान की स्थापना है। उनके पात्र प्रायः शिक्षित, संवेदनशील और आत्मचेतन स्त्रियाँ हैं जो सामाजिक बंधनों से टकराने का साहस रखती हैं।
उनकी रचनाओं में प्रेम, वासना, संबंधों की जटिलता, मातृत्व और आत्म-संघर्ष की गहरी पड़ताल मिलती है। वह उन विरली लेखिकाओं में से थीं जिन्होंने स्त्री-शरीर और उसकी इच्छाओं पर खुलकर लिखा, बिना किसी झिझक या सामाजिक भय के।
अनुवाद और सामाजिक योगदान
प्रभा खेतान ने लेखन के साथ-साथ अनुवाद के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होंने सिमोन द बोउवा (Simone de Beauvoir), पाउलो कोएलो, जीन पॉल सार्त्र और अन्य विश्व प्रसिद्ध लेखकों की कृतियों का हिंदी में अनुवाद किया। उनके अनुवादों ने हिंदी पाठकों को विश्व साहित्य से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई।
वह एक सफल उद्यमी भी थीं — कोलकाता में उन्होंने “डॉ. प्रभा खेतान एंड कंपनी” नाम से व्यवसाय शुरू किया जो बाद में उनके सामाजिक कार्यों के लिए वित्तीय आधार बना।
उनकी स्थापना की हुई संस्था “प्रभा खेतान फाउंडेशन” आज भी साहित्य, संस्कृति और महिला सशक्तिकरण के लिए कार्य कर रही है। यह संस्था देश-विदेश में हिंदी साहित्य के प्रचार और भारतीय विचारधारा के प्रसार के लिए सेमिनार, चर्चा और पुस्तक विमोचन कार्यक्रम आयोजित करती है।
शैली और भाषा
प्रभा खेतान की भाषा सरल, प्रभावशाली और भावनात्मक है। वे अपने पात्रों के मनोभावों को बारीकी से उकेरने में सिद्धहस्त थीं। उनके लेखन में आत्मस्वीकृति की शक्ति और सामाजिक विद्रोह का स्वर दोनों साथ चलते हैं। वे भावनाओं को शब्दों में ढालने की ऐसी कला रखती थीं कि पाठक उनके पात्रों के दर्द और संघर्ष को महसूस कर सके।
उनका लेखन आत्मकथात्मक होते हुए भी सामूहिक अनुभवों का दर्पण बन जाता है। उन्होंने महिलाओं के अंतर्मन में झाँकने और उनके मौन को शब्द देने का कार्य किया।
सम्मान और विरासत
प्रभा खेतान को उनके योगदान के लिए अनेक साहित्यिक पुरस्कारों और सम्मानों से नवाज़ा गया। वे कोलकाता की उन चुनिंदा साहित्यिक हस्तियों में थीं जिनका प्रभाव राष्ट्रीय स्तर पर था।
2008 में उनके निधन के बाद भी उनकी रचनाएँ नई पीढ़ी की लेखिकाओं को प्रेरित कर रही हैं। “प्रभा खेतान फाउंडेशन” के माध्यम से उनका साहित्यिक और सामाजिक कार्य आज भी जीवंत है।
निष्कर्ष
प्रभा खेतान हिंदी साहित्य की उन महान लेखिकाओं में से हैं जिन्होंने स्त्री के आत्मबोध, संघर्ष और संवेदना को गहराई से स्वर दिया। उन्होंने यह साबित किया कि स्त्री केवल प्रेरणा का विषय नहीं, बल्कि स्वयं रचना का केंद्र भी हो सकती है।
उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि परिस्थितियाँ चाहे जैसी हों, यदि व्यक्ति में आत्मविश्वास और रचनात्मक दृष्टि है, तो वह समाज की धारणाओं को बदल सकता है। प्रभा खेतान का लेखन हिंदी साहित्य में उस दीपक की तरह है जो नारी चेतना के मार्ग को आज भी आलोकित कर रहा है।