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संतान सुख और परिवार की समृद्धि का पर्व है अहोई अष्टमी

 बाल मुकुन्द ओझा

अहोई अष्टमी हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण निर्जला व्रत है जिसे माताएँ अपनी संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए पूर्ण श्रद्धा से करती हैं। यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है और करवा चौथ के चार दिन बाद आता है। त्योंहारों की श्रृंखला  में अहोई अष्टमी का भी अपना खास महत्त्व है। हमारे देश में आये दिन कोई न कोई त्योंहार मनाया जाता है। हर त्योंहार सन्देश देता है। अहोई अष्टमी का पर्व देश के कई स्थानों पर मनाया जाता है। अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के 4 दिन बाद कार्तिक मास की कृष्‍ण अष्‍टमी को रखा जाता है। इस साल 13 अक्टूबर को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जा रहा है। यह पर्व संतान प्राप्ति और लंबी आयु के लिए रखा जाता है। संतान की मंगलकामना, सुख, समृद्धि, वैभव और तरक्की के महिलाएं सालभर में कई उपवास-व्रत रखती हैं। अहोई अष्टमी भी एक ऐसा पर्व है जिसमें माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और जीवन में सफलता प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। पति की लंबी आयु की कामना के लिए करवा चौथ व्रत रखने के बाद सुहागिन महिलाएं चार दिन बाद अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं। मान्यता है कि नि-संतान महिलाओं के लिए यह व्रत फलदायी होता है।

पंचांग के अनुसार, इस वर्ष अहोई अष्टमी 13 अक्टूबर, सोमवार को दोपहर 12:24 बजे से शुरू होगी और 14 अक्टूबर, मंगलवार को सुबह 11:10 बजे समाप्त होगी। सूर्योदय तिथि के अनुसार, यह 13 अक्टूबर, सोमवार को मनाया जाएगा। साथ ही, पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 6:17 बजे से शुरू होकर 7:31 बजे तक रहेगा, यानी इसकी अवधि 1 घंटा 14 मिनट रहेगी।

 इस दिन माता पार्वती के अहोई स्वरूप की पूजा की जाती है। यह व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद रखा जाता है। अहोई अष्टमी का उपवास भी कठोर व्रत माना जाता है। इस व्रत में माताएं पूरे दिन जल तक ग्रहण नहीं करती हैं। आकाश में तारों को देखने के बाद उपवास पूर्ण किया जाता है। इस दिन संतान की लंबी आयु की कामना करते हुए तारों की पूजा की जाती है।

इस व्रत को संतान प्राप्ति का सर्वोत्तम उपाय माना गया है। इस दिन विधि विधान से मां पार्वती, भगवान शिव, श्रीगणेश एवं कार्तिकेय की उपासना करें। अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता और भगवान शिव को दूध और भात का भोग लगाएं। इस दिन घर में बनाए गए भोजन का आधा हिस्सा गाय को खिलाएं। अहोई माता को सफेद फूलों की माला अर्पित करें। अगर बच्चे को क्रोध अधिक आता है तो अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता को लाल रंग के पुष्प और चावलों को लाल रंग से रंगकर अर्पित करें। इसे लाल रंग के कपड़े में बांधकर बच्चे के कमरे में रख दें। बच्चे का गुस्सा कम होता जाएगा। अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता को हलुआ और पूड़ी बनाकर अर्पित करें और इस प्रसाद को जरूरतमंदों में बांटे दें। ऐसा करने से संतान को जल्द तरक्की मिलती है। अहोई माता से संतान की लंबी उम्र और सुखदायी जीवन की कामना करें। व्रत से पूर्व रात्रि को सात्विक भोजन करें। अहोई अष्टमी का व्रत करने वाले को दोपहर के समय सोने से परहेज करना चाहिए। अहोई अष्टमी के दिन मिट्टी को हाथ न लगाएं। न ही इस दिन कोई पौधा उखाड़ें। इस व्रत में कथा सुनते समय सात प्रकार के अनाज अपने हाथ में रखें। पूजा के बाद यह अनाज गाय को खिला दें। अहोई अष्टमी के व्रत में पूजा करते समय बच्चों को साथ जरूर बैठाएं। अहोई माता को भोग लगाने के बाद प्रसाद बच्चों को खिलाएं।

  

बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

डी 32 मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर

मो.- 9414441218

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