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रूस के राष्ट्रपति पुतिन के भारत दौरे का विश्व राजनीति पर प्रभाव


रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का ४ से ५ दिसंबर २०२५ तक भारत का राजकीय दौरा अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटना बनकर उभरा है। यह यात्रा यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद पुतिन की भारत की पहली यात्रा थी। इस दौरे ने वैश्विक राजनीतिक समीकरणों में कई नए आयाम जोड़े हैं और विश्व शक्तियों के बीच संतुलन को नया मोड़ दिया है।
भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का संदेश
पुतिन की यात्रा ने भारत की सामरिक स्वायत्तता की नीति को पुनः स्थापित किया है। जब पश्चिमी देश, विशेषकर अमेरिका, भारत पर रूस से संबंध कमजोर करने के लिए दबाव डाल रहे थे, तब भारत ने इस यात्रा को आयोजित कर स्पष्ट संकेत दिया कि वह अपनी विदेश नीति में किसी बाहरी दबाव को स्वीकार नहीं करेगा। यह कदम विश्व राजनीति में उन देशों के लिए प्रेरणादायक है जो महाशक्तियों के दबाव में अपनी स्वतंत्र नीतियों को बनाए रखना चाहते हैं। भारत ने यह साबित किया कि वह विश्व मित्र के रूप में सभी ध्रुवों के साथ संबंध बनाए रख सकता है।

पुतिन की यात्रा ने अमेरिका और भारत के बीच बढ़ते तनाव को और उजागर किया है। अमेरिका ने भारत पर रूसी तेल खरीदने के कारण ५० प्रतिशत शुल्क लगाया है। इसके बावजूद भारत ने पुतिन को भव्य स्वागत दिया, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी स्वयं हवाई अड्डे पर उन्हें लेने गए। यह घटना विश्व राजनीति में यह दर्शाती है कि भारत अमेरिका की धमकियों के आगे झुकने को तैयार नहीं है। यह स्थिति वैश्विक शक्ति संतुलन में एक नया अध्याय खोलती है, जहां मध्यम शक्तियां महाशक्तियों के दबाव से स्वतंत्र रूप से अपनी नीतियां बना रही हैं।
रूस-चीन-भारत त्रिकोण की जटिलता
पुतिन की भारत यात्रा ने रूस, चीन और भारत के बीच जटिल संबंधों को भी उजागर किया है। एक ओर जहां रूस और चीन के संबंध मजबूत हो रहे हैं, वहीं भारत और चीन की सीमा पर तनाव बना हुआ है। रूस इन दोनों देशों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने का प्रयास कर रहा है। यह स्थिति एशिया में शक्ति संतुलन को प्रभावित करती है और विश्व राजनीति में एक नया समीकरण बनाती है। भारत के लिए यह चुनौती है कि वह रूस के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को बनाए रखे और साथ ही चीन के बढ़ते प्रभाव से निपटे।
सैन्य सहयोग और रक्षा संबंध
भारत की सैन्य शक्ति का एक बड़ा हिस्सा रूसी हथियारों और प्रणालियों पर निर्भर है। भारत की सेना, वायु सेना और नौसेना में लगभग ६० से ७० प्रतिशत उपकरण रूसी मूल के हैं। इस यात्रा में रक्षा सहयोग पर विशेष चर्चा हुई, जिसमें एस-४०० वायु रक्षा प्रणाली और संयुक्त विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित किया गया। यह सहयोग विश्व राजनीति में महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पश्चिमी सैन्य गठबंधनों के समानांतर एक वैकल्पिक रक्षा संबंध को मजबूती प्रदान करता है। हालांकि, भारत अब अपनी रक्षा आपूर्ति में विविधता लाने का प्रयास कर रहा है।
ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक सहयोग
यूक्रेन युद्ध के बाद भारत रूसी तेल का सबसे बड़े खरीदारों में से एक बन गया है। दोनों देशों के बीच व्यापार लगभग ७० अरब डॉलर तक पहुंच गया है, जिसे २०३० तक १०० अरब डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य है। पुतिन ने भारत को निर्बाध ईंधन आपूर्ति का आश्वासन दिया है। यह आर्थिक सहयोग विश्व राजनीति में महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद रूस की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करता है। साथ ही, यह भारत को ऊर्जा सुरक्षा प्रदान करता है और उसकी आर्थिक वृद्धि को सहारा देता है।

पुतिन की भारत यात्रा ने यूरोपीय संघ और अन्य पश्चिमी देशों में चिंता उत्पन्न की है। यूरोपीय संघ ने भारतीय संस्थाओं को अपनी प्रतिबंध सूची में शामिल किया है। यह दर्शाता है कि पश्चिमी देश भारत-रूस संबंधों को लेकर असहज हैं। यह स्थिति विश्व राजनीति में पश्चिम के एकध्रुवीय प्रभुत्व को चुनौती देती है। भारत की स्वतंत्र नीति अन्य विकासशील देशों के लिए एक मॉडल बन सकती है जो पश्चिमी दबाव से मुक्त होकर अपने हितों की रक्षा करना चाहते हैं।
बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की ओर
पुतिन की भारत यात्रा बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह यात्रा दर्शाती है कि विश्व राजनीति अब केवल पश्चिम या अमेरिका के इर्द-गिर्द नहीं घूमती। भारत जैसे देश अपनी शर्तों पर अंतरराष्ट्रीय संबंध बना रहे हैं। यह प्रवृत्ति विश्व राजनीति को अधिक लोकतांत्रिक और समावेशी बना रही है। ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन जैसे मंचों के माध्यम से गैर-पश्चिमी देश अपनी आवाज मजबूती से उठा रहे हैं।
रूस के राष्ट्रपति पुतिन का भारत दौरा एक ऐसे समय में हुआ जब वैश्विक राजनीति अनेक ध्रुवों में बंटी हुई है। विश्व शक्तियों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा, नई आर्थिक संरचनाओं का निर्माण और बदलते सुरक्षा परिदृश्य के कारण यह यात्रा केवल द्विपक्षीय नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की दिशा को भी प्रभावित करने वाली मानी जा रही है। भारत और रूस के ऐतिहासिक संबंधों की गहराई को देखते हुए यह दौरा वैश्विक शक्ति संरचना में एक महत्वपूर्ण संदेश देता है।

इस दौरे का पहला बड़ा प्रभाव यह है कि भारत और रूस दोनों ने मित्रता और बहुपक्षीय संतुलन की नीति को एक नए रूप में दोहराया है। पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका और यूरोपीय राष्ट्रों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के बीच भारत का यह स्वागत वैश्विक मंच पर भारत की स्वतंत्र और संतुलित विदेश नीति को पुष्ट करता है। भारत ने यह स्पष्ट किया कि उसका निर्णय किसी दबाव का परिणाम नहीं बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों और रणनीतिक सोच के अनुरूप होता है।

पुतिन के दौरे से एशिया में रूस का प्रभाव भी और मजबूत हुआ है। चीन के बढ़ते प्रभाव और एशिया–प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन की बदलती स्थिति को देखते हुए रूस का भारत के साथ निकट आना विश्व राजनीति में एक नई धुरी के उदय की ओर संकेत करता है। यह धुरी न तो पश्चिमी गुट के पक्ष में है और न ही किसी एक शक्तिशाली देश के इर्द–गिर्द घूमती है। यह व्यवस्था बहुध्रुवीयता को मजबूत करती है जिसमें भारत और रूस दोनों एक–दूसरे की रणनीतिक स्वतंत्रता को महत्व देते हैं।

ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ने से भी विश्व राजनीति में व्यापक असर देखने को मिल सकता है। रूस ऊर्जा निर्यात की दिशा में दुनिया की एक प्रमुख शक्ति है, वहीं भारत ऊर्जा का एक बड़ा उपभोक्ता। दोनों के बीच दीर्घकालिक ऊर्जा समझौते पश्चिमी ऊर्जा बाजारों को चुनौती दे सकते हैं। यह स्थिति यूरोप और अमेरिका की ऊर्जा रणनीति पर प्रत्यक्ष असर डाल सकती है। वैश्विक ऊर्जा बाज़ार में रूस–भारत साझेदारी नई कीमतों, नए मार्गों और नई साझेदारियों का निर्माण कर सकती है।

रक्षा सहयोग भी इस यात्रा का एक अहम पहलू है। लंबे समय से रूस भारत का विश्वसनीय रक्षा साझेदार रहा है और इस दौरे में रक्षा उत्पादन और तकनीकी साझेदारी पर जोर दिया गया। इससे वैश्विक हथियार बाजार में रूस की पकड़ मजबूत होगी, साथ ही भारत की सामरिक क्षमताओं में वृद्धि होने से दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन प्रभावित होगा। यह स्थिति उन देशों के लिए चुनौती बन सकती है जो क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ाकर अपने हित साधने की कोशिश करते हैं।

विश्व राजनीति में यह यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है कि भारत और रूस दोनों विश्व के बड़े संकटों पर लगभग समान दृष्टिकोण रखते हैं। चाहे वह पश्चिम एशिया का संकट हो, यूक्रेन की स्थिति हो या एशिया के समुद्री क्षेत्र का विवाद—दोनों देश बातचीत और शांतिपूर्ण समाधान को प्राथमिकता देते हैं। यह दृष्टिकोण वैश्विक कूटनीति में संवाद आधारित व्यवस्था को मजबूत करेगा और बड़ी शक्तियों के बीच विरोध का दबाव कम करने में मदद करेगा।

पुतिन के इस दौरे ने पश्चिमी देशों को भी यह संकेत दिया है कि भारत किसी एक ध्रुव में बंधने वाला देश नहीं है। भारत की विदेश नीति में स्वायत्तता ने पश्चिमी देशों को अपने रवैये की समीक्षा करने पर मजबूर किया है। कई विश्लेषकों का मानना है कि इससे अमेरिका और यूरोप को भारत के साथ नई रणनीतिक समझ विकसित करनी होगी ताकि भारत को अपनी ओर आकर्षित रखा जा सके। यह स्थिति वैश्विक राजनीति में भारत की भूमिका को और अधिक मजबूत करती है।

वैश्विक दक्षिण के देशों पर भी इस यात्रा का सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। भारत और रूस दोनों उन देशों के समर्थक रहे हैं जो विकसित देशों की नीतियों से संतुलन और न्याय की मांग करते हैं। पुतिन का भारत दौरा इन देशों के लिए यह संदेश देता है कि बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की राह भारत और रूस मिलकर प्रशस्त कर रहे हैं। इससे विकासशील देशों की आवाज़ वैश्विक मंचों पर और मजबूत हो सकती है।

अंततः यह स्पष्ट है कि पुतिन का भारत दौरा केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं बल्कि विश्व राजनीति में एक बड़े परिवर्तन का संकेत है। इस यात्रा ने यह दिखाया कि वैश्विक शक्ति संतुलन बदल रहा है और भारत उस नई व्यवस्था में एक निर्णायक भूमिका निभा रहा है। बहुध्रुवीय विश्व, स्वतंत्र विदेश नीति, ऊर्जा सुरक्षा, रक्षा सहयोग और वैश्विक दक्षिण के सशक्तिकरण जैसे कई पहलुओं पर इस यात्रा का दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। आने वाले वर्षों में इसकी गूंज अंतरराष्ट्रीय संबंधों के हर मंच पर सुनाई देगी।
पुतिन की भारत यात्रा विश्व राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है। यह यात्रा भारत की सामरिक स्वायत्तता, रूस की वैश्विक स्थिति की मजबूती और अमेरिका के एकतरफा प्रभुत्व को चुनौती देने का प्रतीक है। इस दौरे ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले समय में विश्व राजनीति अधिक जटिल और बहुध्रुवीय होगी। भारत जैसे देशों की भूमिका इस नई व्यवस्था में केंद्रीय होगी, जो विभिन्न शक्ति केंद्रों के बीच संतुलन बनाए रखते हुए अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करेंगे। यह यात्रा इस बात का भी संकेत है कि पुराने गठबंधन और शीत युद्ध के समीकरण अब लागू नहीं होते, और देश नए संबंधों और साझेदारियों के माध्यम से अपना भविष्य तय कर रहे हैं।

​रूस का अलगाव विफल: पुतिन की यह यात्रा पश्चिमी देशों को यह संदेश देने में सफल रही कि रूस अलग-थलग नहीं पड़ा है।

​चीन के लिए संदेश: रूस और चीन की बढ़ती रणनीतिक निकटता भारत के लिए चिंता का विषय रही है। पुतिन की भारत यात्रा ने एक तरह से चीन को यह संकेत दिया कि रूस केवल बीजिंग का ‘जूनियर पार्टनर’ नहीं है और उसके पास नई दिल्ली के रूप में एक मजबूत, दीर्घकालिक भागीदार मौजूद है। यह भारत को एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए रणनीतिक विकल्प प्रदान करता है।

​पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया और चुनौती: पुतिन के दौरे पर यूरोपीय और अमेरिकी देशों की कड़ी नज़र थी। उनके लिए यह एक चुनौती है, क्योंकि वे भारत को रूस से दूर करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि भारत अपने हितों के लिए दोनों पक्षों से संबंध बनाए रखने की नीति पर अडिग है। यह स्थिति भारत को अपनी विदेश नीति में अधिक मोलभाव की शक्ति देती है, लेकिन साथ ही पश्चिमी पूंजी और टेक्नोलॉजी के साथ अपने व्यापार को भी संतुलित रखने की जटिल चुनौती पेश करती है।

​अफगानिस्तान और क्षेत्रीय सुरक्षा: दोनों नेताओं ने आतंकवाद, उग्रवाद और अफगानिस्तान की स्थिति पर भी समन्वय बनाए रखने पर सहमति व्यक्त की। यह क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर मध्य एशिया और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ती अनिश्चितताओं के बीच।

​शिखर सम्मेलन ने भविष्य के लिए सहयोग के नए रास्ते खोले।

​कनेक्टिविटी और लॉजिस्टिक्स: उत्तरी समुद्री मार्ग (Northern Sea Route) और चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री गलियारे जैसे कनेक्टिविटी प्रोजेक्टों पर जोर दिया गया, जो दोनों देशों के बीच व्यापार और परिवहन को गति प्रदान करेंगे।

​जन-जन के बीच संबंध: रूसी नागरिकों के लिए 30 दिन के मुफ्त ई-वीजा और समूह पर्यटक वीजा की सुविधा के साथ-साथ कुशल श्रमिकों की गतिशीलता पर हुए समझौतों ने दोनों देशों के लोगों के बीच संपर्क को बढ़ावा दिया है।

​परमाणु ऊर्जा और आर्कटिक: कुडनकुलम परमाणु परियोजना की शेष इकाइयों के निर्माण में तेजी लाने पर सहमति हुई। इसके अतिरिक्त, भारत की आर्कटिक परिषद में एक पर्यवेक्षक के रूप में सक्रिय भूमिका निभाने की इच्छा ने सहयोग के एक नए भू-सामरिक क्षेत्र का द्वार खोला है।

​निष्कर्ष

​रूस के राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा ने द्विपक्षीय संबंधों में ‘विश्वास और पारस्परिक सम्मान’ की मजबूत नींव को फिर से स्थापित किया। वैश्विक राजनीति के संदर्भ में, इस शिखर सम्मेलन ने पश्चिमी एकाधिकार और दबाव को खारिज करते हुए बहुध्रुवीयता और स्वतंत्र राष्ट्रीय हितों की सर्वोच्चता का संदेश दिया है। यह यात्रा भारत को एक ऐसी वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करती है जो अपनी शर्तों पर दुनिया की प्रमुख शक्तियों के साथ संबंध बनाए रख सकती है, भले ही भू-राजनीतिक हवाएँ किसी भी दिशा में बह रही हों। यह घटनाक्रम आने वाले समय में विश्व व्यापार, रक्षा गतिशीलता और भू-राजनीतिक गठबंधनों को एक नई दिशा देगा।
​क्या आप इस लेख के किसी विशिष्ट पहलू, जैसे डी-डॉलरकरण के प्रभाव या भारत की रक्षा स्वायत्तता, पर अधिक गहराई से चर्चा करना चाहेंगे?

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