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राज्य सभा में वंदेमातरम और लोकसभा में चुनाव सुधारों पर चर्चा् हुई

​आज (9 दिसंबर, 2025) संसद के दोनों सदनों में हुई दो महत्वपूर्ण बहसों – राज्यसभा में ‘वंदे मातरम’ की 150वीं वर्षगांठ पर चर्चा और लोकसभा में ‘चुनाव सुधारों’ पर बहस – का हुई।राज्यसभा में यह बहस राष्ट्रगीत के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक महत्व पर केंद्रित रही। दोनों पक्षों के मुख्य वक्ताओं ने एक-दूसरे पर तीखे राजनीतिक और वैचारिक हमले किए। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने (सत्ता पक्ष का नेतृत्व) करते हुए इस चर्चा को एक राष्ट्रीय आवश्यकता बताया।लोकसभा में चुनाव सुधारों पर चर्चा का मुख्य उद्देश्य निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता और मतदाता सूची में कथित अनियमितताओं के मुद्दे उठाना था।
​क. सांसद मनीष तिवारी (विपक्ष – कांग्रेस) ने बहस की शुरुआत करते हुए चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाए।

​1. राज्यसभा में ‘वंदे मातरम’ पर बहस का विश्लेषण 💬

​राज्यसभा में यह बहस राष्ट्रगीत के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक महत्व पर केंद्रित रही। दोनों पक्षों के मुख्य वक्ताओं ने एक-दूसरे पर तीखे राजनीतिक और वैचारिक हमले किए।
​क. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (सत्ता पक्ष का नेतृत्व)
​गृह मंत्री अमित शाह ने इस चर्चा को एक राष्ट्रीय आवश्यकता बताया। उन्होंने कांग्रेस पर सीधा हमला करते हुए कहा कि ‘वंदे मातरम’ पर विवाद पैदा करने की शुरुआत तुष्टीकरण की राजनीति के कारण हुई।

​मुख्य आरोप: उन्होंने आरोप लगाया कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रगीत के कुछ अंशों को हटवा दिया था, जो स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लाखों देशभक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत था।

​ऐतिहासिक संदर्भ: उन्होंने कहा कि जब यह गीत 100 साल का हुआ, तब देश आपातकाल (इमरजेंसी) से गुज़र रहा था, जो कांग्रेस के अलोकतांत्रिक इतिहास को दर्शाता है।

​निष्कर्ष: शाह ने निष्कर्ष निकाला कि इस राष्ट्रगीत का विरोध और इसे लेकर पैदा किया गया विवाद ही देश के विभाजन का मूल कारण बना। उनके अनुसार, यह गीत मात्र एक धुन नहीं, बल्कि भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है।

​ख. विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे (विपक्ष का नेतृत्व)
​विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने गृह मंत्री के आरोपों का दृढ़ता से खंडन किया और इसे इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने का प्रयास बताया।

​मुख्य तर्क: उन्होंने जोर देकर कहा कि कांग्रेस ने हमेशा ‘वंदे मातरम’ का सम्मान किया है और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इसे ही नारा बनाकर लाखों लोग जेल गए और अपने प्राणों का बलिदान दिया।

​राजनीतिक मंशा: खड़गे ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह बेरोज़गारी, महंगाई और विमानन कंपनी (इंडिगो) संकट जैसे वास्तविक और गंभीर मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने के लिए इस भावनात्मक चर्चा को प्राथमिकता दे रही है।

​निष्कर्ष: उन्होंने कहा कि सत्ता पक्ष को राष्ट्रीय प्रतीकों को राजनीतिक हथियार बनाना बंद कर देना चाहिए और देश के सामने खड़ी वर्तमान चुनौतियों पर जवाब देना चाहिए।

​ग. सांसद ए. राजा (विपक्ष – द्रमुक)
​सांसद ए. राजा ने बहस में शामिल होते हुए तर्क दिया कि ‘वंदे मातरम’ पर विवाद को धार्मिक रंग देना ग़लत है।

​विभाजनकारी राजनीति: उन्होंने कहा कि राष्ट्रगीत पर विभाजन मुसलमानों ने नहीं किया, बल्कि यह भारतीय जनता पार्टी की विभाजनकारी राजनीति की देन है।

​सांस्कृतिक बहुलता: राजा ने ज़ोर दिया कि भारत एक ऐसा देश है जहाँ विभिन्न संस्कृतियाँ और विभिन्न भाषाएँ हैं, और राष्ट्रवाद को किसी एक प्रतीक या गीत तक सीमित नहीं किया जा सकता।

​2. लोकसभा में चुनाव सुधारों पर बहस का विश्लेषण 🗳️

​लोकसभा में चुनाव सुधारों पर चर्चा का मुख्य उद्देश्य निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता और मतदाता सूची में कथित अनियमितताओं के मुद्दे उठाना था।
​क. सांसद मनीष तिवारी (विपक्ष – कांग्रेस)
​कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने बहस की शुरुआत करते हुए चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाए।

​सुधार का सुझाव: उन्होंने मांग की कि चुनाव आयोग के सदस्यों के चयन को नियंत्रित करने वाले कानून में तुरंत संशोधन किया जाए।

​चयन समिति में बदलाव: तिवारी ने विशेष रूप से मांग की कि निर्वाचन आयुक्तों के चयन की समिति में लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश को शामिल किया जाए, ताकि चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके।

​लोकतंत्र की आत्मा: उन्होंने कहा कि वोट देने का अधिकार लोकतंत्र की आत्मा है और यह सुनिश्चित करना सरकार का कर्तव्य है कि यह अधिकार सुरक्षित रहे और किसी भी तरह की धांधली न हो।

​वित्तीय आरोप: उन्होंने सरकारों पर चुनाव जीतने के लिए चुनाव से ठीक पहले लोगों के खातों में पैसे डालने की रणनीति अपनाने का आरोप भी लगाया।

​ख. सांसद ललन सिंह (सत्ता पक्ष – जदयू)
​राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सहयोगी दल से सांसद ललन सिंह ने विपक्ष के आरोपों का खंडन करते हुए निर्वाचन आयोग की विश्वसनीयता का बचाव किया।

​आरोपों का खंडन: उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग एक स्वतंत्र और संवैधानिक संस्था है, और विपक्ष के निराधार आरोपों से इस संस्था की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जाना चाहिए।

​चुनाव की निष्पक्षता: सिंह ने जोर देकर कहा कि देश में हुए पिछले कई चुनावों की निष्पक्षता ने यह साबित किया है कि चुनाव आयोग पूरी तरह से तटस्थ होकर काम करता है।

​ग. केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू (सत्ता पक्ष)
​केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने बहस में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि सरकार चुनाव सुधारों के लिए प्रतिबद्ध है।

​जनता का विश्वास: उन्होंने कहा कि चुनाव सुधारों पर चर्चा आवश्यक है ताकि जनता झूठे आख्यानों (बातों) से गुमराह न हो और उनका लोकतंत्र में विश्वास बना रहे।

​सार्थक चर्चा की आवश्यकता: रिजिजू ने सदन के सदस्यों से अपील की कि वे शोरशराबा करने के बजाय चुनाव सुधारों जैसे महत्वपूर्ण विषय पर सार्थक और रचनात्मक चर्चा करें।

​3. विस्तृत समीक्षा और निष्कर्ष 🎯

​दोनों सदनों में आज की कार्यवाही ने भारतीय लोकतंत्र के दोहरे चरित्र को उजागर किया: एक ओर भावनात्मक राष्ट्रवाद पर गहन बहस, तो दूसरी ओर संस्थागत विश्वसनीयता पर तीखा सवाल-जवाब।
​’वंदे मातरम’ पर बहस ने यह स्पष्ट कर दिया कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच इतिहास की व्याख्या और राष्ट्रवादी प्रतीकों के उपयोग को लेकर गहरा मतभेद है। यह चर्चा, रचनात्मक संवाद की बजाय, राजनीतिक प्रतिशोध और एक-दूसरे के इतिहास पर आरोप-प्रत्यारोप में बदल गई।
​’चुनाव सुधारों पर बहस’ अत्यंत महत्वपूर्ण थी, क्योंकि यह लोकतंत्र की रीढ़ से संबंधित है। मनीष तिवारी की यह मांग कि चयन समिति में विपक्ष के नेता को शामिल किया जाए, संस्थागत निष्पक्षता के प्रति जनता के विश्वास को बहाल करने की दिशा में एक गंभीर कदम है। हालांकि, शोर-शराबे के कारण इस विषय पर व्यापक और आवश्यक चर्चा नहीं हो पाई, जो कि संसद के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।
​निष्कर्ष: आज की संसदीय कार्यवाही गहरे ध्रुवीकरण और विधायी गतिरोध की शिकार रही। महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, सदन का अधिकांश समय प्रतीकात्मक राजनीति और राजनीतिक स्कोर सेटल करने में बर्बाद हुआ। संसद को अपनी उत्पादकता बढ़ाने और जनहित के मुद्दों पर रचनात्मक चर्चा करने की आवश्यकता है।

भारतीय संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा, में शीतकालीन सत्र के अंतर्गत कार्यवाही चली, जो मुख्यतः वैचारिक टकराव और विधायी गतिरोध के बीच फंसी रही। दिन भर की कार्यवाही में, लोकसभा में चुनाव सुधारों पर चर्चा हुई, जबकि राज्यसभा में ‘वंदे मातरम’ की 150वीं वर्षगांठ पर विशेष बहस जारी रही, जिसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी बयानबाजी देखने को मिली। वहीं, विपक्ष के हंगामे के कारण दोनों सदनों की कार्यवाही को कई बार स्थगित भी करना पड़ा।

​1. राज्यसभा: ‘वंदे मातरम’ पर भावनात्मक और राजनीतिक बहस 🇮🇳

​राज्यसभा की कार्यवाही का प्रमुख केंद्र राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ की 150वीं वर्षगांठ पर चल रही विशेष चर्चा रही, जो कल (8 दिसंबर, 2025) शुरू हुई थी।
​बहस का सार और सत्ता पक्ष का पक्ष
​केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस चर्चा का नेतृत्व किया और कांग्रेस पर तुष्टीकरण की राजनीति करने का गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि तुष्टीकरण के कारण ही राष्ट्रगीत का विरोध किया गया और इसके कुछ अंशों को पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के काल में हटाया गया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि राष्ट्रगीत के विरोध ने देश के विभाजन को जन्म दिया। सत्ता पक्ष के सांसदों ने ‘वंदे मातरम’ को सांस्कृतिक पुनर्जागरण और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बताते हुए इसके ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित किया।


​विपक्ष का जोरदार खंडन
​विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इन आरोपों का पुरज़ोर खंडन किया। उन्होंने तर्क दिया कि कांग्रेस ने ही स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इस गीत को नारा बनाया और लाखों स्वतंत्रता सेनानी इसे गाते हुए जेल गए। उन्होंने सरकार पर राष्ट्रगीत जैसे संवेदनशील विषय को राजनीतिक मुद्दा बनाने का आरोप लगाया। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि देश जब बेरोज़गारी और महंगाई जैसी वास्तविक समस्याओं से जूझ रहा है, तब सरकार ध्यान भटकाने के लिए इस चर्चा को क्यों प्राथमिकता दे रही है। द्रमुक सांसद ए. राजा सहित अन्य विपक्षी नेताओं ने भी कहा कि इस गीत पर विभाजन मुसलमानों ने नहीं, बल्कि भारतीय जनता पार्टी की राजनीति ने पैदा किया है।
​विधायी कार्य और कार्यवाही का हाल
​बहस के बीच, सदन में विपक्षी सदस्यों का शोरशराबा जारी रहा, जिसके कारण कार्यवाही को कई बार स्थगित करना पड़ा। हंगामे के बावजूद, राज्यसभा ने सोमवार को निचले सदन द्वारा पारित ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा उपकर विधेयक’ को विचार के बाद लोकसभा को वापस भेज दिया।

​2. लोकसभा: चुनावी सुधारों पर गरमागरम बहस 🗳️

​लोकसभा में आज चुनाव सुधारों और विशेष गहन पुनरीक्षण (पुनरीक्षण अभ्यास) पर बहस हुई, जिसे विपक्ष लंबे समय से उठाने की मांग कर रहा था।
​विपक्ष के गंभीर आरोप
​कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने बहस की शुरुआत की और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए। उन्होंने मांग की कि चुनाव आयोग के सदस्यों के चयन को नियंत्रित करने वाले कानून में संशोधन किया जाए और चयन समिति में लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश को शामिल किया जाए। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकारें चुनावों से पहले लोगों के खातों में पैसा डालकर चुनाव जीतने की रणनीति अपनाती हैं। विपक्ष ने यह भी कहा कि पुनरीक्षण अभ्यास में मतदाता सूची में कई अनियमितताएं हैं, जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
​सत्ता पक्ष का बचाव
​जनता दल यूनाइटेड के नेता ललन सिंह जैसे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सांसदों ने विपक्ष के आरोपों को निराधार बताया और चुनाव आयोग की विश्वसनीयता का बचाव किया। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि चुनाव सुधारों पर चर्चा आवश्यक है ताकि जनता झूठे आख्यानों (बातों) से गुमराह न हो और लोकतंत्र में उनका विश्वास बना रहे।
​कार्यवाही का हाल
​सदन की कार्यवाही विपक्ष द्वारा किए गए हंगामे के कारण बाधित रही। विपक्षी सदस्यों के शोरशराबे के कारण कार्यवाही को दोपहर 12 बजे तक के लिए स्थगित करना पड़ा। कांग्रेस सांसदों ने विमानन कंपनी इंडिगो संकट (उड़ानों के रद्द होने) को लेकर भी स्थगन प्रस्ताव दिए, जिसमें सरकार की निष्क्रियता पर चर्चा की मांग की गई थी।

​3. समीक्षा: संसद की कार्यवाही का गहरा ध्रुवीकरण 💬

​आज की संसदीय कार्यवाही ने एक बार फिर गहरे वैचारिक ध्रुवीकरण को दर्शाया, जहां महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों की तुलना में इतिहास और प्रतीकों पर केंद्रित बहस हावी रही।
​प्रतीकात्मक बनाम वास्तविक मुद्दे
​संसद का अधिकांश समय ‘वंदे मातरम’ की ऐतिहासिक व्याख्याओं और कांग्रेस की पिछली भूमिकाओं पर केंद्रित रहा। यह बहस, राष्ट्रगीत के महत्व को स्वीकार करते हुए भी, अक्सर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप में बदल गई। सत्ता पक्ष ने प्रतीकों के माध्यम से राष्ट्रवाद को मजबूत करने की कोशिश की, जबकि विपक्ष ने इसे “ध्यान भटकाने वाली रणनीति” बताया। यह प्रवृत्ति बताती है कि संसद वर्तमान समस्याओं (जैसे इंडिगो उड़ान संकट, बेरोज़गारी और महंगाई) पर विस्तृत चर्चा करने के बजाय, भावनात्मक और वैचारिक मुद्दों पर अधिक ऊर्जा खर्च कर रही है।
​विधायी कार्य में गतिरोध
​दोनों सदनों में बार-बार हंगामे के कारण कार्यवाही का स्थगन होना भारतीय लोकतंत्र की चुनौतीपूर्ण तस्वीर प्रस्तुत करता है। पीठासीन अधिकारियों ने सदस्यों से बार-बार सदन की मर्यादा बनाए रखने की अपील की, लेकिन व्यवधान जारी रहा। यह गतिरोध संसद की उत्पादकता और जनता के प्रति जवाबदेही को प्रभावित करता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि रचनात्मक संवाद का स्थान नारेबाजी और राजनीतिक विरोध ने ले लिया है।
​लोकतंत्र की विश्वसनीयता पर सवाल
​लोकसभा में चुनाव सुधारों पर हुई चर्चा, विशेषकर चुनाव आयोग की चयन प्रक्रिया को लेकर विपक्ष की मांग, लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता को बनाए रखने के व्यापक सवाल को दर्शाती है। यदि निर्वाचन संस्थाओं की निष्पक्षता पर बार-बार सवाल उठते हैं, तो यह लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के लिए एक गंभीर चुनौती है। विपक्ष द्वारा सुझाये गए सुधार, जैसे समिति में विपक्ष के नेता और मुख्य न्यायाधीश को शामिल करना, जनता के विश्वास को बहाल करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम हो सकता है।
​निष्कर्ष
​9 दिसंबर, 2025 की संसदीय कार्यवाही भारतीय राजनीति की वर्तमान दशा का एक आईना है: तीव्र ध्रुवीकरण, जहां राष्ट्रवादी प्रतीकों पर बहस ने जनता के वास्तविक सरोकारों पर चर्चा को कम महत्वपूर्ण बना दिया। जहां एक ओर ‘वंदे मातरम’ जैसी चर्चा राष्ट्रीय चेतना को जगा सकती है, वहीं रचनात्मक विधायी कार्य की कमी संसद की प्रभावशीलता पर प्रश्नचिह्न लगाती है। लोकतंत्र के सुचारू संचालन के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को समझौते और सहयोग के मार्ग पर चलना होगा, ताकि बहसें केवल राजनीतिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण के लिए हों।

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