महेंद्र सिंह टिकैत के जन्म दिन छह अक्तूबर पर विशेष

किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत का किसानों में जन चेतना जगाने और उनके अधिकारों की लड़ाई लड़ने में असाधारण योगदान रहा है। उन्हें सही मायनों में किसानों का मसीहा कहा जाता था। महेंद्र सिंह टिकैत का जन्म छह अक्टूबर 1935 को सिसौली, मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश में हुआा।भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) की स्थापना में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसके माध्यम से उन्होंने देश भर के किसानों को एक मजबूत गैर-राजनीतिक मंच पर संगठित किया।
उन्होंने किसानों को जाति, धर्म और क्षेत्र के भेदों से ऊपर उठकर एक झंडे के नीचे आने के लिए प्रेरित किया, जिससे किसान आंदोलन को एक नई पहचान और शक्ति मिली।टिकैत ने किसानों की समस्याओं को सरकार और देश के सामने रखने के लिए कई विशाल और सफल आंदोलनों का नेतृत्व किया। 1987 का मुजफ्फरनगर आंदोलन: उन्होंने किसानों के बिजली बिल माफ कराने और उचित मांगों को लेकर एक बड़ा आंदोलन किया। इस आंदोलन ने उन्हें एक प्रमुख किसान नेता के रूप में स्थापित किया।
1988 की दिल्ली बोट क्लब रैली उनके करियर की सबसे बड़ी और ऐतिहासिक रैलियों में से एक थी। लगभग पांच लाख किसानों ने दिल्ली के केंद्र में डेरा डाल दिया था। किसानों की 35-सूत्रीय मांगें थीं। इनमें फसलों के उच्च मूल्य, बिजली और पानी के बिलों में छूट शामिल थी। इस आंदोलन ने राजीव गांधी सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया और उनकी कई मांगें मान ली गईं।
इन आंदोलनों के माध्यम से, उन्होंने यह चेतना जगाई कि किसान संगठित होकर अपनी आवाज़ उठा सकते हैं और सरकारों को अपनी माँगें मानने के लिए बाध्य कर सकते हैं।उन्होंने किसानों के लिए गन्ने का उचित मूल्य, बिजली और सिंचाई की दरों में कमी, फसलों का लाभकारी मूल्य, और किसान ऋण माफ़ी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को राष्ट्रीय बहस का विषय बनाया।उनकी आवाज़ में एक देहाती और सीधापन था, जिसने किसानों के दर्द और उनकी मांगों को सीधे सत्ता के गलियारों तक पहुँचाया।
टिकैत अपनी सादगी और देहाती अंदाज़ के लिए जाने जाते थे। वह हमेशा किसानों के बीच बैठकर खाना खाते थे और आंदोलन के दौरान भी मंच के बजाय किसानों के बीच बैठना पसंद करते थे।उनका यह आचरण किसानों के साथ उनके गहरे व्यक्तिगत जुड़ाव को दर्शाता था, जिससे किसान उनसे और अधिक प्रेरित होते थे।
संक्षेप में, महेंद्र सिंह टिकैत ने किसानों को संगठित होने का महत्व सिखाया। उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ना सिखाया, और यह साबित किया कि किसानों की एकता किसी भी सरकार को चुनौती दे सकती है। उन्होंने ही किसान आंदोलन को एक ऐसी शक्ति के रूप में स्थापित किया, जो आज भी भारत की राजनीति को प्रभावित करती है। 15 मई 2011 को उनका निधन हुआ।