wahbharat

भारत में सिर्फ़ मणिपुर तक रह गई हिंसा

नेपाल समेत तमाम देशों में जो आग दिखाई दे रही है, वो भारत में सिर्फ़ मणिपुर तक रह गई!

अपनी सरकार का बलिदान देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर मामले को जिस तरीके से हैंडल किया, वो इतिहास में दर्ज होगा। ऐसा साहस आजतक किसी ने नहीं किया। भाजपा जैसी पार्टी जो हमेशा चुनावी मोड में रहती है, उसने अपनी सरकार को हटाते तनिक भी न सोचा।

केंद्र सरकार ने एक यूनिफॉर्म कमांड की स्थापना कर सबसे पहले सेना और विभिन्न बलों में सामंजस्य स्थापित किया। हिंसा-अपराध के मामलों की जाँच के लिए सीबीआई को लगाया, सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में SIT ने जाँच की और जस्टिस गीता मित्तल पैनल के जरिए राहत-बचाव कार्यों की निगरानी की गई। सीमा पार की ताक़तें इसका फ़ायदा न उठा पाएँ, इसके लिए मणिपुर-म्यांमार सीमा की बाड़ेबंदी की गई। अपनी ही सरकार को हटाकर राष्ट्रपति शासन लगाया, ताकि सबकुछ दिल्ली से सलीके से संचालित हो। AFSPA को आगे बढ़ाकर बड़े स्तर पर हथियारों का समर्पण और आत्मसमर्पण कराया गया।

इतना ही नहीं, RSS भी लगातार शांति कायम करने के अभियान में लगा रहा। संघ ने न केवल राहत व बचाव कार्य में हाथ बँटाया, बल्कि युवाओं को उद्यमी बनाने के लिए प्रशिक्षित किया। मोमबत्ती बनाने से लेकर मशरूम की खेती तक के लिए प्रशिक्षण दिए गए। ख़ुद सरसंघचालक मोहन भागवत ने स्थानीय समूहों से बातचीत के लिए अपनी संघ परिवार की यूनिट्स को लगाया। कई शिविर स्थापित किए गए।

मई-जून 2023 में ख़ुद अमित शाह राज्य में पहुँचे थे। धीरे-धीरे करके इंटरनेट भी आंशिक रूप से बहाल कर दिया गया। अभी भी 300 के क़रीब शिविर चल रहे हैं और केंद्र सरकार सबकुछ देख रही है। अब ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर जाने वाले हैं और कुकी-जो काउंसिल उनके दौरे का स्वागत कर रहा है। सब सब कुछ ठीक होने वाला है।

इधर विपक्ष हंगामा करता रहा, उधर सरकार और संघ पर्दे के पीछे से मैराथन कार्य करते रहे। इस तरह विदेशी तत्वों और चर्च द्वारा भड़काई गई इस हिंसा को नासूर बनने से पहले और देशभर में फैलने से पहले ही थाम लिया गया।

दीपक कुमार द्विवेदी की वॉल से

Exit mobile version