बेटियों को चाहिए शिक्षा, समानता और सुरक्षा

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                                        बाल मुकुन्द ओझा

अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस हर साल 11 अक्टूबर को मनाया जाता है ताकि बालिकाओं के सामने आने वाली चुनौतियों और उनके अधिकारों के संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके। दुनियाभर में महिलाओं के प्रति बढ़ते अत्याचारों और असमानताओं जैसे भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा, बाल विवाह एवं अशिक्षा को देखते हुए और उन्हें इन सभी समस्याओं से उबारने के लिए तथा उनके संरक्षण के उद्देश्य से ही हर साल अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। आजकल बालिका के सशक्तीकरण की चर्चा हमारी जुबान पर हर वक्त रहती है। सरकारी चर्चा शिक्षा, टीकाकरण, समान अधिकार देने, स्वास्थ्य, पोषण और बालिकाओं की घटती संख्या से आगे नहीं बढ़ती है। जबकि माता पिता को बालिका की सुरक्षा हर समय चिंतित रखती है। देश में बालिकाओं के साथ हो रही अनहोनी वारदातें निरंतर बढ़ती जा रही है। बेटियों के सशक्तीकरण की अनेक योजनाओं के संचालन के बावजूद आज समाज में बेटियों को सुरक्षा और संरक्षा का समुचित वातावरण नहीं मिल रहा है। आए दिन बालिकाओं पर होने वाले अपराधों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। इसमें सबसे ज्यादा मामले छेड़छाड़ और दुष्कर्म के हैं। जमीनी सच्चाई बता रही है कि समाज और सरकार बालिकाओं की सुरक्षा और संरक्षण सुनिश्चित कर पाने में नकारा साबित हो रहा है। एक वर्ष की बच्ची से लेकर अधेड़ उम्र की महिला सुरक्षित नहीं है। माता पिता ढाई तीन साल की आयु में अपनी बेटी को स्कूल भेज देते है। जब तक बेटी सुरक्षित घर नहीं आजाती तब तक माँ की आँखे हर समय घर के दरवाजे को घूरती रहती है। राम राज्य की बातें करने वाले हमारे समाज को आखिर हो क्या गया है। हम किस रास्ते पर चल निकले है।

बेटी को जन्म से लेकर मृत्यु तक सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। हमारी संकुचित मानसिकता ही उनके विकास में अवरोधक बनी हुई है। आज बालिका हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के बाद भी अनेक सामाजिक कुरीतियों की शिकार हैं। ये कुरीतियों उनके आगे बढ़ने में बाधाएँ उत्पन्न करती है। पढ़े-लिखे लोग और जागरूक समाज भी इन कुरीतियों के शिकार है। आज भी हजारों लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाता है। समाज में कई घर ऐसे हैं, जहाँ बेटियों को बेटों की तरह अच्छा खाना और अच्छी शिक्षा नहीं दी जा रही है। यह दिवस बालिका शक्ति को लोगों के सामने लाने तथा उनके प्रति समाज में जागरूकता और चेतना पैदा करने के उद्देश्य से मनाया जाता है। इस देश की एक सच्चाई यह है कि भारत में हर घंटे चार बच्चों को यौन शोषण का सामना करना पड़ता है। हमारे देश में कन्या भ्रूण हत्या में इजाफा हो रहा है। सेंटर फॉर रिसर्च के अनुसार पिछले 20 वर्षों में भारत में कन्या भ्रूण हत्या के कारण एक करोड़ बच्चियां जन्म से पहले काल की बलि चढा दी गईं। सभी को मिलकर इस कुरीति को मिटाना है। बाल विवाह, भ्रूण हत्या, शिशु मृत्यु दर रोके जाने, स्तनपान कराने, नियमित टीकाकरण, दहेज प्रथा एवं अन्य सामाजिक ज्वलंत विषयों में सुधार लाना चाहिए।

आजकल रोज प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मिडिया पर कही ना कहीं से लड़कियों पर हो रहे अत्याचार की खबर दिखाई जाती रहती है परंतु इसकी रोकथाम के उपाय पर चर्चा कहीं नहीं होती है। इस तरह के अत्याचार कब रुकेंगें। क्या हम सिर्फ मूक दर्शक बन खुद की बारी का इंतजार करेंगे। लड़कियों पर अत्याचार पहले भी हो रहे थे और आज भी हो रहे हैं अगर इसके रोकने के कोई ठोस उपाय नहीं किये गये । आज भी हमारे समाज में बलात्कारी सीना ताने खुले आम घूमता है और बेकसूर पीड़ित लड़की को बुरी और अपमानित नजरों से देखा जाता है । न तो समाज अपनी जिम्मेदारी का माकूल निर्वहन कर रहा है और न ही सरकार। ऐसे में बालिका कैसे अपने को सुरक्षित महसूस करेगी यह हम सब के लिए बेहद चिंता की बात है। संविधान और कानून बनाकर नारी के स्वाभिमान की रक्षा नहीं होगी। समाज पूरी तरह जागरूक और सचेत होगा तभी हम बालिका को सुरक्षा और संरक्षा की खुली हवां में साँस दिला पाएंगे। 

बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

डी 32 मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर

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