प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक डॉ. आत्माराम (1908-1983) का नाम भारत को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने वाले अग्रणी वैज्ञानिकों में सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्हें विशेष रूप से काँच (Glass) और सिरेमिक प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए जाना जाता है। सादगी भरा जीवन जीने के कारण उन्हें अक्सर ‘गांधीवादी वैज्ञानिक’ भी कहा जाता था।
डॉ. आत्माराम: जीवन परिचय
डॉ. आत्माराम का जन्म 12 अक्टूबर 1908 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के पिलाना गाँव में एक साधारण पटवारी लाला भगवानदास के यहाँ हुआ था।
शिक्षा
उन्होंने अपनी शिक्षा में अत्यंत कुशाग्र बुद्धि का परिचय दिया:
बी.एससी. (कानपुर)
एम.एससी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)
पी.एचडी./डी.एससी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय), उन्होंने भौतिक रसायन के जनक डॉ. नीलरत्न धर के मार्गदर्शन में उच्च स्तरीय शोध किया।
वे सादा जीवन, उच्च विचार के आदर्श पर चलने वाले व्यक्ति थे और विज्ञान की शिक्षा को भारतीय भाषाओं में दिए जाने पर ज़ोर देते थे, जिससे विज्ञान आम जनता तक पहुँच सके।
प्रमुख वैज्ञानिक और प्रशासनिक सेवाएं
डॉ. आत्माराम की सेवाएं केवल प्रयोगशाला तक ही सीमित नहीं थीं, बल्कि उन्होंने देश की सर्वोच्च वैज्ञानिक संस्थाओं का नेतृत्व कर वैज्ञानिक अनुसंधान को एक नई दिशा दी।
1. काँच और सिरेमिक अनुसंधान (Optical Glass)
डॉ. आत्माराम का सबसे महत्वपूर्ण योगदान ऑप्टिकल काँच (Optical Glass) के स्वदेशी निर्माण में रहा।
आत्मनिर्भरता: ऑप्टिकल काँच, जो सूक्ष्मदर्शी, दूरबीन और विविध प्रकार के सैन्य उपकरण बनाने में उपयोग होता है, भारत में पहले जर्मनी से आयात किया जाता था। इस पर बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा खर्च होती थी।
वैज्ञानिक उपलब्धि: डॉ. आत्माराम ने अथक शोध और लगन से भारत में ही इस उच्च शुद्धता वाले काँच को बनाने की विधि का सफलतापूर्वक आविष्कार किया।
संस्थापक निदेशक: वे कलकत्ता (अब कोलकाता) स्थित केन्द्रीय काँच एवं सिरामिक अनुसंधान संस्थान (CGCRI) के निदेशक रहे और इस संस्थान को भारत में काँच प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक मजबूत आधार प्रदान किया।
2. वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) में नेतृत्व
उनकी प्रशासनिक और वैज्ञानिक नेतृत्व क्षमता को देखते हुए, उन्हें देश की सबसे बड़ी वैज्ञानिक अनुसंधान संस्था का सर्वोच्च पद सौंपा गया:
महानिदेशक: उन्होंने 21 अगस्त 1966 को वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) के महानिदेशक का पद संभाला। इस पद पर रहते हुए, उन्होंने देश में वैज्ञानिक अनुसंधान और उद्योगों के बीच समन्वय स्थापित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया।
3. हिन्दी में विज्ञान और ‘भारत की संपदा’
डॉ. आत्माराम हिंदी भाषा के प्रबल समर्थक थे और मानते थे कि विज्ञान को मातृभाषा में ही पढ़ाया और समझाया जाना चाहिए।
प्रकाशन: उनकी दूरदर्शिता के कारण ही CSIR के बहुखंडीय अंग्रेजी ग्रंथ ‘वेल्थ ऑफ इंडिया’ का हिंदी अनुवाद ‘भारत की संपदा’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। यह उनके जीवन की एक बड़ी साहित्यिक और वैज्ञानिक उपलब्धि मानी जाती है, जिसने भारतीय भाषाओं में वैज्ञानिक साहित्य को समृद्ध किया।
राष्ट्रीय चेतना: उन्होंने विज्ञान को जन-समुदाय से जोड़ने और वैज्ञानिक जनमत की आवश्यकता पर बल दिया, जिससे आम लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हो सके।
सम्मान और विरासत
डॉ. आत्माराम को उनकी उत्कृष्ट वैज्ञानिक सेवाओं के लिए कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया:
शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार (1959)
पद्म श्री (1959)
उनकी स्मृति और हिन्दी के प्रति उनके प्रेम को श्रद्धांजलि देने के लिए, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा प्रतिवर्ष उत्कृष्ट वैज्ञानिक लेखन के लिए ‘डॉ. आत्माराम पुरस्कार’ प्रदान किया जाता है।
डॉ. आत्माराम का निधन 6 फरवरी 1983 को हुआ। उनका जीवन और कार्य भारतीय वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणास्रोत बना रहा, जिन्होंने सीमित संसाधनों के बावजूद भारत को प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने का स्वप्न देखा और उसे साकार किया। वे एक ऐसे वैज्ञानिक थे जिन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग केवल शोध तक ही सीमित न रखकर उसे देश की औद्योगिक प्रगति और आम आदमी की भाषा से भी जोड़ा।