बाल मुकुन्द ओझा
परिवार के सम्बन्ध में देशभर से मिल रही ख़बरे बेहद चिंताजनक है। परिवार को हमारे समाज में सामाजिक और सार्वभौमिक संस्था के रूप में स्वीकारा गया है। अनुशासन, आपसी स्नेह और भाईचारा तथा मर्यादा, परिवार को एक खुशहाल परिवार बना देता है। बुजुर्गों का कहना है जिस परिवार में एकता की भावना होती है, उसी घर में ही सुख-शांति और सम्पन्नता का निवास होता है। यही सामाजिक संस्था आज खंडित होने की स्थिति में है। परिवार और बिखरते रिश्ते आज समाज की एक जटिल सच्चाई बन गए हैं। परिवार की व्यवस्था आज की नहीं है, बल्कि ऋषि-मुनियों की देन है। लेकिन आज दरकते रिश्तों से परिवार व्यवस्था टूट रही है जो समाज के लिए ठीक नहीं है। आज भी देश और दुनियां, परिवार और संयुक्त परिवार की अहमियत को लेकर विवादों में उलझी है। भारत में संयुक्त परिवार प्रणाली बहुत प्राचीन समय से ही विद्यमान रही है। वह भी एक जमाना था जब भरा पूरा परिवार हँसता खेलता और चहकता था और एक दूसरे से जुड़ा रहता था। बच्चों की किलकारियों से मोहल्ला गूंजता था। पैसे कम होते थे पर उसमे भी बहुत बरकत होती थी। घर में कोई हंसी खुशी की बात होती थी तो बाहर वालों को बुलाने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। आज परिवार छोटे हो गए हैं और टूटते जा रहे हैं। हमारे रिश्ते बिखरते जा रहे हैं। संयुक्त परिवार की आज के समय में महती आवश्यकता है। संयुक्त परिवारों के अभाव में भाईचारा एवं पारिवारिक वातावरण खत्म होने लगा है। परिवार में रिश्तो की नीरसता और संवादहीनता को दूर करने परस्पर भाईचारे व तालमेल को बैठाने के लिए रिश्तो में सकारात्मक सोच को बढ़ाने की जरुरत है। परिवार के सभी छोटे हुए बड़े सदस्यों की भावनाओ का सम्मान करे तथा दिन भर घटित होने वाली छोटी-छोटी बातों और दुख-सुख को आपस में बांटे करे।
भारत में संयुक्त परिवार प्रणाली बहुत प्राचीन समय से ही विद्यमान रही है। साधारणतः संयुक्त परिवार वह है जिसमें पति-पत्नी, सन्तान, परिवार की वधुएँ, दादा-दादी, चाचा-चाची, अनके बच्चे आदि सम्मिलित रूप से रहते है। संयुक्त परिवार में माता-पिता, भाई-बहन के अतिरिक्त चाचा, ताऊ की विवाहित संतान, उनके विवाहित पुत्र, पौत्र आदि भी हो सकते हैं। संयुक्त परिवार से घर में खुशहाली होती है। साधारणत पिता के जीवन में उसका पुत्र परिवार से अलग होकर स्वतंत्र गृहस्थी नहीं बसाता है। यह अभेद्य परंपरा नहीं है, कभी-कभी अपवाद भी पाये जाते हैं। ऐसा भी समय आता है, जब रक्त संबंधों की निकटता के आधार पर एक संयुक्त परिवार दो या अनेक संयुक्त अथवा असंयुक्त परिवारों में विभक्त हो जाता है। असंयुक्त परिवार भी कालक्रम में संयुक्त परिवार का ही रूप ले लेता है और संयुक्त परिवार का क्रम बना रहता है। जिस फैमिली में दादा-दादी, माता-पिता, चाचा-चाची और खूब सारे भाई-बहन होते है उसे जॉइंट फैमिली (संयुक्त परिवार) कहां जाता है। ऐसी फैमिली की बुनियाद उनके बीच का प्यार है, जो सबको एस साथ जोड़ कर रखती है। इस में बूढ़ों से लेकर बच्चे कर अपना सुख-दुख एक साथ बाटते है। सास बहू का परस्पर रिश्ता परिवार का मूल आधार होता है। सच तो यह है आज यही रिश्ता दरक रहा है। बहुत से परिवार इसलिए टूट रहे हैं क्योंकि सास ने बहू को बेटी और बहू ने सास को मां मानने से इंकार कर दिया है। सास को बहू पराये घर से आई लगती है और बहू को ससुराल पराया लगता रहता है। इसी रिश्ते को प्रेम और स्नेह में बदलकर परिवार नामक संस्था को बचाया जा सकता है।
संयुक्त परिवार के सदस्यों के पास आपसी सामंजस्य की समझ होती है। एक बड़े संयुक्त परिवार में, बच्चों को एक अच्छा माहौल और हमेशा के लिये समान आयु वर्ग के मित्र मिलते हैं इस वजह से परिवार की नयी पीढ़ी बिना किसी रुकावट के पढ़ाई, खेल और अन्य दूसरी क्रियाओं में अच्छी सफलता प्राप्त करती हैं। संयुक्त परिवार में विकास कर रहे बच्चों में सोहार्द की भावना होती है अर्थात् मिलनसार तथा किसी भी भेदभाव से मुक्त होते हैं। परिवार के मुखिया की बात मानने के साथ ही संयुक्त परिवार के सदस्य जिम्मेदार और अनुशासित होते हैं। परिवार चाहे संयुक्त हो या एकल, इसकी खुशियां सदस्यों की सोच और व्यवहार पर ही निर्भर करती हैं। हर परिवार के सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष हैं। सुरक्षा की दृष्टि से संयुक्त परिवार की खूबियां है तो सुविधा की दृष्टि से एकल परिवार के भी अपने फायदे हैं। बदलते वक्त और जरूरत के हिसाब से परिवार संयुक्त और एकल परिवार का रूप लेते हैं।सुरक्षा, और सुविधा, दोनों ही दृष्टियों से संयुक्त परिवार के अपने फायदे हैं। संयुक्त परिवार में अगर कभी किसी को कोई दिक्कत होती हैं तो सभी सहायता के लिए पूरा परिवार ही जुट जाता है। बच्चों को छोड़कर ऑफिस या कहीं बाहर जाना है तो भी निश्चिंतता के साथ जा सकते हैं। यहां बच्चों की जिम्मेदारी सिर्फ माता-पिता की नहीं बल्कि पूरे परिवार की होती है। बच्चे परिवार के संस्कार भी सीखते हैं। संयुक्त परिवार का एक मुखिया होता है, जो परिवार के सभी सदस्यों के लिए नीतियाँ और निर्देश देता है। इन परिवारों में पुत्र विवाह के बाद अपने लिए अलग रहने की व्यवस्था नहीं करता ।

बाल मुकुन्द ओझा
वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार