ऊर्जा संरक्षण का महत्व

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 बाल मुकुन्द ओझा

आज देशभर में राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाया जा रहा है।  भारत में हर साल 14 दिसंबर को राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाया जाता है। ऊर्जा संरक्षण दिवस का मुख्य उद्देश्य लोगों के बीच ऊर्जा संसाधनों के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करना है। साथ ही ऊर्जा की खपत को कम करना और लोगों को इसे कुशलता से उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना है। तेजी से बढ़ती हुई जनसँख्या और ऊर्जा की खपत को देखते हुए ऊर्जा संरक्षण एक प्रमुख मुद्दा बन जाता है। किसी भी देश के विकास में विद्युत की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ऊर्जा आज हमारी जिंदगी का अहम् हिस्सा और जरूरत बन गई है। बिजली के बिना कोई भी देश तरक्की और प्रगति के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकता। थोड़े से समय के लिए बिजली चली जाने पर हमारे ज्यादातर जरूरी काम रुक जाते हैं। ऊर्जा के अधिकांश स्रोत यथा, पेट्रोलियम, कोयला और गैस सीमित हैं। अगर इनका अत्यधिक उपयोग किया जाता है, तो ये जल्दी समाप्त हो सकते हैं। इसे दृष्टिगत रखते हुए हम ऊर्जा संरक्षण से इन संसाधनों को अधिक समय तक इस्तेमाल में ला सकते हैं।

देश के आर्थिक विकास के साथ बुनियादी ज़रूरतों की पूर्ति करने में ऊर्जा एक इंजन का कार्य करती है। जनसँख्या विस्फोट के फलस्वरूप ऊर्जा की मांग भी बढ़ती जा रही है। एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2040 तक देश में बिजली की खपत 1280 टेरावाट प्रति घंटा हो जाएगी। ऐसे में सीमित जीवाश्म-ईंधन आधारित ऊर्जा स्रोत हमारी भविष्य की इस मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। देश की बढ़ती ज़रूरतों की पूर्ति हेतु ऊर्जा के नवीकरणीय संसाधनों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। ऐसे में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत से तात्पर्य ऐसे स्रोतों से है जो उपयोग के साथ समाप्त नहीं होते हैं, ये प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त होते हैं और जिनकी खपत की तुलना में पुनःभरण की उच्च दर होती है। आम नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में सौर, पवन, भूतापीय, पनबिजली, महासागर और जैव ऊर्जा शामिल हैं।

आजादी के बाद देश में जनसंख्या विस्फोट और आधुनिक सेवाओं, विद्युतीकरण की दर तेज होने और शहरीकरण से ऊर्जा की मांग के साथ ऊर्जा की आवश्यकताएँ भी लगातार बढ़ी है। देश की बढ़ती आबादी के उपयोग के लिए और विकास को गति देने के लिए ऊर्जा की मांग बहुत तेजी से बढ़ रही है। लेकिन ऊर्जा के उत्पादन में खपत की तुलना में बढ़ोतरी नहीं हो पा रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक यदि समय रहते हम ऊर्जा के श्रोत विकसित नहीं कर पाए तो एक बड़े संकट का सामना करना पड़ सकता है। यह भी कहा जा रहा है  जिस गति से ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ रही है उसे देखते हुए ऊर्जा के संसाधनों के नष्ट होने की आशंका बढ़ने लगी है। देश में पेट्रोलियम, गैस, कोयला जैसे प्राकृतिक संसाधन बहुत सीमित मात्रा में ही उपलब्ध हैं।

ऊर्जा संरक्षण का सही अर्थ ऊर्जा के अपव्यय से बचते हुए कम-से-कम ऊर्जा का उपयोग करना है ताकि भविष्य में उपयोग हेतु ऊर्जा के स्रोतों को बचाया जा सके। इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को ऊर्जा संरक्षण के प्रयास किये जाने चाहिए। ऊर्जा दक्षता ब्यूरो ने कहा है कि कोई भी व्यक्ति, लाईट, पंखे, एसी या किसी अन्य बिजली के उपकरण के अनावश्यक उपयोग को समाप्त करके घर या कार्यालय में छोटे-छोटे कदम उठाकर ऊर्जा की बचत कर सकता है। ऊर्जा दक्षता ब्यूरो के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को एसी या हीटर का उपयोग कम करना चाहिए क्योंकि दोनों उपकरण हर दिन बड़ी मात्रा में ऊर्जा की खपत करते हैं। सीएफएल बल्ब या स्मार्ट प्रकाश विकल्प ऊर्जा की खपत को कम कर सकते हैं। पानी गरम करने में भी बहुत अधिक ऊर्जा की खपत होती है। इसलिए कम गर्म पानी का उपयोग करने से बहुत अधिक ऊर्जा बचाई जा सकती है। ऊर्जा के अधिकतम उपयोग से वायू प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ता है। ऊर्जा संरक्षण से हम पर्यावरण को संरक्षित रखने में मदद कर सकते हैं।
आम आदमी को इस बात के लिए जागरूक करना चाहिए कि कार्यस्थल पर अधिक रोशनी वाले बल्ब से तनाव, सिर दर्द, रक्तचाप, थकान जैसी विभिन्न समस्याएं उत्पन्न होती है और श्रमिकों की कार्य कुशलता में भी कमी आती है। जबकि दिन के प्राकृतिक प्रकाश में श्रमिकों की कार्य कुशलता के स्तर में भी वृद्धि होती है और ऊर्जा की खपत में भी कमी आती है। घरो में पानी की टंकियो में पानी पहुँचाने के लिए टाइमर का उपयोग करके पानी के व्यर्थ व्यय को रोककर विद्युत उर्जा की बचत की जा सकती है। बिजली की बचत किए बिना  विकसित राष्ट्र का सपना साकार नहीं हो सकता।

                                                        बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

डी-32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर

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