आधुनिक भारत के विलक्षण चिंतक श्रीअरविंदो

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श्री अरविंदो आधुनिक भारत के उन विलक्षण चिंतकों, दार्शनिकों, कवियों और आध्यात्मिक गुरुओं में से हैं जिन्होंने भारतीय संस्कृति को एक नई वैचारिक दिशा प्रदान की। उनका व्यक्तित्व जितना बहुआयामी था, उनका दर्शन उतना ही गहरा, व्यापक और आधुनिक चेतना से संवाद करता हुआ था। वे न केवल स्वतंत्रता संग्राम के तेजस्वी नेता रहे बल्कि मानव चेतना के उत्कर्ष और आध्यात्मिक विकास के प्रणेता भी बने। उनका विश्वास था कि मनुष्य केवल भौतिक सत्ता नहीं, वह एक दिव्य संभावना है जिसे आत्मविकास और साधना के माध्यम से उच्चतर चेतना तक पहुँचाया जा सकता है। श्री अरविंदो का पूरा जीवन इसी खोज और प्रयोग का अद्भुत उदाहरण है।

श्री अरविंदो का जन्म 15 अगस्त 1872 को कोलकाता में हुआ। आधुनिक शिक्षा के लिए उन्हें कम उम्र में ही इंग्लैंड भेज दिया गया। यह उनकी प्रतिभा का परिणाम था कि कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ते हुए वे ग्रीक, लैटिन, फ्रेंच और कई अन्य भाषाओं में पारंगत हो गए। पश्चिमी दर्शन, साहित्य, राजनीति और इतिहास पर उनकी पकड़ गहरी हो गई। लेकिन इस बीच उनके भीतर भारत के प्रति प्रेम और भारतीय संस्कृति के प्रति आकांक्षा भी प्रबल होती चली गई। भारत लौटने पर वे बरोडा राज्य में सेवाकाल के दौरान भारतीय ग्रंथों, विशेष रूप से वेद, उपनिषद, गीता और संस्कृत साहित्य का गहन अध्ययन करने लगे। इसी चरण में उनके भीतर दार्शनिक चेतना का बीज अंकुरित हुआ जिसने आगे चलकर एक महान आध्यात्मिक प्रणाली का रूप लिया।

राजनीतिक जीवन में उनका प्रवेश अत्यंत प्रखर और प्रभावशाली था। बंगाल विभाजन के बाद जब देश में उग्र राष्ट्रवाद का भाव उभर रहा था, श्री अरविंदो उसके अग्रदूत बने। उन्होंने स्वदेशी, बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा जैसे विचारों को संगठित ढंग से आगे रखा। “वंदी मातरम्” और “कर्मयोगिन” जैसे पत्रों के माध्यम से उन्होंने युवाओं को स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया। उनका लेखन न केवल राजनीतिक था बल्कि उसमें राष्ट्रीय अस्मिता का दार्शनिक आधार भी मिलता है। अलिप्तता और निर्भीकता से भरे उनके विचार अंग्रेजों को खटकने लगे और 1908 में उन्हें अलीपुर बम केस में गिरफ्तार कर लिया गया।

अलीपुर जेल श्री अरविंदो के जीवन का एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ। जेल में उन्होंने अद्वैत अनुभव, तप और ध्यान के माध्यम से दिव्य चेतना का गहन साक्षात्कार किया। बाद में उन्होंने लिखा कि जेल में भगवान ने उन्हें हर जगह, हर वस्तु और हर व्यक्ति में दिव्य स्वरूप दिखाया। इसी अनुभव ने उनके राजनीतिक पथ को आध्यात्मिक दिशा दे दी। वे समझ चुके थे कि भारत की स्वतंत्रता केवल राजनीतिक लक्ष्य नहीं, बल्कि मानवता के आध्यात्मिक उत्कर्ष का माध्यम बनेगी। इसीलिए जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने राजनीति से स्वयं को अलग कर लिया और पांडिचेरी चले गए।

पांडिचेरी प्रवास में श्री अरविंदो ने महान दार्शनिक और आध्यात्मिक ग्रंथों की रचना की जिनमें द लाइफ डिवाइन, सिंथेसिस ऑफ योगा, सेवेन क्वाट्रेट्स ऑफ योगा, सायव मैटर्स और सेविलाइजेशन एंड कल्चर विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। उनकी रचनाएँ केवल दार्शनिक चिंतन नहीं हैं बल्कि वे मानव जीवन को परिवर्तनकारी शक्ति प्रदान करने का मार्ग दिखाती हैं। उनका योग “पूर्ति का योग” या “इंटीग्रल योग” कहलाता है जिसमें जीवन के किसी भी पक्ष को त्यागे बिना साधना को जीवंत रूप में जीने पर बल दिया गया है।

श्री अरविंदो के इंटीग्रल योग का केंद्रीय विचार यह है कि जीवन स्वयं दिव्य है और मनुष्य के भीतर एक सुप्त दिव्यता विद्यमान है। ध्यान, साधना और आत्मसंयम के माध्यम से मनुष्य चेतना की विभिन्न सीढ़ियों—मनस, बुद्धि, अंतरात्मा, अतिमानस—से ऊपर उठकर सुपरमाइंड अर्थात् ‘अतिचेतना’ तक पहुँच सकता है। उनका कहना था कि मानव का विकास अभी अधूरा है। जैसे प्रकृति ने पशु से मनुष्य की उत्पत्ति की, उसी प्रकार मनुष्य से आगे दिव्य मनुष्य (डिवाइन ह्यूमन) का विकास संभव है। यह एक आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया है जिससे पृथ्वी पर नई चेतना का अवतरण होगा।

श्री अरविंदो का साहित्य मानव मन की व्यापकता और आध्यात्मिक यात्रा का अद्भुत संगम है। उनका महाकाव्य ‘सावित्री’ इसका श्रेष्ठ उदाहरण है। यह केवल एक काव्य कृति नहीं, बल्कि दार्शनिक, आध्यात्मिक और मानवीय चेतना की एक विराट साधना है जिसमें प्रकाश और अंधकार, जीवन और मृत्यु, प्रकृति और पुरुष—सभी का अद्भुत समन्वय मिलता है। सावित्री में उन्होंने मानव आत्मा के संघर्ष और विजय को अत्यंत सुन्दर रूप में व्यक्त किया है।

उनकी राजनीतिक दृष्टि भी उतनी ही व्यापक थी। श्री अरविंदो मानते थे कि भारत की स्वतंत्रता एक ऐतिहासिक आवश्यकता है, क्योंकि भारत आध्यात्मिक नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता रखता है। वे कहते थे कि भारत का उत्थान मानवता के उत्थान से जुड़ा है। पांडिचेरी में रहते हुए भी वे भारत के राजनीतिक भविष्य पर नजर रखते थे और समय-समय पर अपनी टिप्पणियाँ देते थे। द्वितीय विश्व युद्ध के समय उन्होंने मित्र राष्ट्रों का समर्थन किया, क्योंकि उन्हें लगा कि नाजीवाद का विस्तार मानवता के लिए खतरा है।

श्री अरविंदो का सम्पूर्ण दर्शन यह सिखाता है कि मनुष्य को अपने भीतर की दिव्यता को पहचानना होगा। इससे व्यक्तिगत जीवन में समृद्धि, समाज में सद्भाव और विश्व में शांति स्थापित हो सकती है। उनका विश्वास था कि चेतना का विकास ही मानव की सभी समस्याओं का समाधान है। उनका जीवन तप, मनन, ज्ञान और कर्म का अद्भुत संतुलन था।

5 दिसंबर 1950 को श्री अरविंदो का महापरिनिर्वाण हुआ, लेकिन उनका आध्यात्मिक प्रभाव आज भी जीवंत है। पांडिचेरी का श्री अरविंदो आश्रम और ‘द मदर’ द्वारा विकसित ‘ऑरोविल’ उनके दर्शन का अनूठा प्रतीक है—एक ऐसी वैश्विक नगरी जहाँ मानवता का एकत्व, सहयोग और चेतना का विकास लक्ष्य है।

भारत के आध्यात्मिक इतिहास में श्री अरविंदो का स्थान अत्यंत ऊँचा है। उन्होंने आधुनिक समय में आध्यात्मिकता को केवल पूजा-पाठ या संन्यास का विषय नहीं रहने दिया बल्कि उसे जीवन, समाज, राजनीति और विज्ञान के साथ जोड़ दिया। उनका दर्शन अतीत में नहीं, भविष्य में झांकता है। उन्होंने मानवता को बताया कि जीवन में दिव्यता संभव है और पृथ्वी पर दिव्य जीवन का आविर्भाव मानव का अंतिम लक्ष्य है।

इस प्रकार श्री अरविंदो एक दार्शनिक, योगी, कवि, राष्ट्रवादी और दूरदर्शी महामानव थे जिनका चिंतन विश्व को आज भी नई दिशा देता है।

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