अमीश त्रिपाठी, आज जिनका जन्मदिन है

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अमीश त्रिपाठी का जन्म 18 अक्टूबर, 1974 को मुंबई (महाराष्ट्र, भारत) में हुआ था। वे एक भारतीय लेखक हैं जो अपने उपन्यासों, विशेषकर अंग्रेजी भाषा में पौराणिक कथा शैली के उपन्यासों के लिए जाने जाते हैं। अमीश त्रिपाठी वैश्विक साहित्यिक मंच पर एक विपुल और प्रभावशाली लेखक के रूप में उभरे हैं।

उन्होंने पौराणिक कथा शैली को फिर से परिभाषित करने का प्रयास किया है, ऐसी कहानियाँ बुनी हैं जो दुनियाभर के पाठकों को प्रभावित करती हैं। अपनी मनमोहक कहानियों के माध्यम से, अमीश ने भारतीय पौराणिक कथाओं को समकालीन दुनिया में सफलतापूर्वक पहुँचाया है, प्राचीन किंवदंतियों में नई जान फूंकी है। इस लेख में, हम इस साहित्यिक वास्तुकार के जीवन, कार्यों और प्रभाव के बारे में जानेंगे, जिन्होंने भारत के साहित्यिक पटल पर एक अमिट छाप छोड़ी है।

उन्होंने मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से विज्ञान में स्नातक होने के बाद, त्रिपाठी ने बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई की। उन्होंने भारतीय प्रबंधन संस्थान, कलकत्ता (IIM-C) से एमबीए की डिग्री प्राप्त की।

साहित्यिक प्रसिद्धि हासिल करने से पहले, अमीश ने बैंकिंग और बीमा क्षेत्रों में काम करते हुए वित्तीय सेवा उद्योग में एक सफल करियर बनाया। उन्होंने स्टैंडर्ड चार्टर्ड, डीबीएस बैंक और आईडीबीआई फेडरल लाइफ इंश्योरेंस सहित कई कंपनियों में विपणन और उत्पाद प्रबंधक के रूप में वित्त के क्षेत्र में काम किया।

हालाँकि, कहानी कहने के प्रति उनकी रुचि और भारतीय पौराणिक कथाओं के प्रति गहरे आकर्षण ने उन्हें एक लेखक के रूप में एक नया रास्ता अख़्तियार करने के लिए प्रेरित किया।

अमीश को सफलता उनके पहले उपन्यास, “द इम्मोर्टल्स ऑफ मेलुहा” से मिली, जो शिव त्रयी की पहली पुस्तक थी। दरअसल, शिव त्रयी तीन पुस्तकों की एक श्रृंखला है जो भगवान शिव के जीवन को पुनर्कल्पित करते हुए उनकों मानवीकृत करने का प्रयास करती है। त्रयी में शामिल हैं –

“द इम्मोर्टल्स ऑफ़ मेलुहा” (2010)

“द सीक्रेट ऑफ़ द नागाज़” (2011)

“द ओथ ऑफ़ द वायुपुत्राज़” (2013)

शिव त्रयी की शानदार सफलता के बाद, अमीश ने अपने साहित्यिक प्रयासों में भारतीय पौराणिक कथाओं को आधार बनाकर अपना लेखन जारी रखा। उन्होंने राम चंद्र श्रृंखला की शुरुआत की, जो “इक्ष्वाकु के वंशज” (2015) से शुरू हुई।

इसके बाद, उन्होंने अपनी इम्मोर्टल इंडिया सीरीज़ के साथ नॉन-फिक्शन में भी कदम रखा है, जो देश के इतिहास और संस्कृति पर केंद्रित है।

अमीश त्रिपाठी का साहित्यिक कार्य भौगोलिक सीमाओं से परे है। भारतीय पौराणिक कथाओं को समसामयिक परिदृश्य में समाहित करने की उनकी असाधारण क्षमता ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक हलकों में पहचान दिलाई है। उनके उपन्यासों का कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है, जिससे वे दुनिया भर के पाठकों के लिए सुलभ हो गए हैं।

अमीश त्रिपाठी का प्रभाव उनकी किताबों के पृष्ठों से कहीं आगे तक फैला हुआ है। इक्ष्वाकु के वंशज ने क्रॉसवर्ड बुक का “सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय पुरस्कार” जीता। 2019 में, त्रिपाठी को भारत सरकार द्वारा एक राजनयिक भूमिका में नेहरू सेंटर, लंदन के निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था।

अमीश ने परंपरा और आधुनिकता का सफलतापूर्वक विलय कर एक ऐसी साहित्यिक विरासत का निर्माण किया है जो समय की कसौटी पर खरी उतरती प्रतीत होती है। साहित्य की दुनिया में उनका योगदान आज भी निरंतर जारी है।

वर्ष 2022 में 13 अक्टूबर के दिन ‘लेखक से भेंट’ कार्यक्रम में साहित्य अकादेमी के सभागार में अमीश त्रिपाठी से मेरी भेंट हुई थी। कम समय में युवा पाठकों के बीच अपनी जगह बनाने वाले अमीश ने ज्यादातर समय श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर दिए थे।

अपनी पुस्तकों की बिक्री का साठ लाख का जादुई आंकड़ा वे छू चुके थे। उनके प्रशंसकों में जाने माने फिल्मी सितारों से लेकर राजनेता और बुद्धिजीवी सहित युवा वर्ग हैं। शिव व राम पर लिखी गई उनकी श्रृंखलाएं बहुत लोकप्रिय हुई हैं।कांत शुक्ला

−रजनीकांत शुक्ला

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