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देश की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी कांग्रेस कईं राज्यों में छोटे भाई की भूमिका निभाने को मजबूर है । जिस पार्टी ने दशकों तक देश पर राज किया हो उसके लिए बाप या बड़े भाई की गद्दी छोड़कर छोटा भाई बनना कोई मजबूरी नहीं । यह उसकी मक्कारियों और गुनाहों का परिणाम है ।
हमारा स्पष्ट मानना है कि स्वाधीनता आंदोलन के दौरान कांग्रेस कोई पार्टी थी ही नहीं । 1947 तक कांग्रेस एक राष्ट्रवादी आंदोलन था । आज बीजेपी सहित जितनी भी पार्टियां देश में हैं उन सभी के पुरखे महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वाधीनता संग्राम में शामिल थे । तब देश में हिन्दू , मुस्लिम मिलकर अंग्रेजों को भगाने के लिए एक साथ लड़ रहे थे ।
तभी महात्मा गांधी चाहते थे कि स्वराज्य मिलने के बाद आजादी दिलाने के लिए बनी कांग्रेस को अब भंग कर दिया जाए । वे जानते थे कि स्वतंत्र लोकतांत्रिक भारत में अन्य राजनयिक दल भी बनेंगे और कांग्रेस भी अब राजनीतिक दल बनकर रह जाएगी । किसी ने बापू की नहीं मानी और कांग्रेस आज अनेक राज्यों में इतनी छोटी बन गई है कि अब कभी बड़ी बनेगी इसकी संभावना फिलहाल नजर नहीं आती ।
चुनाव लड़ने तक के लिए उसे गठबंधन बनाकर लड़ना पड़ रहा है । देख लीजिए । सबसे बड़े राज्य यूपी , बिहार , महाराष्ट्र और बंगाल में वह बहुत छोटे भाई की भूमिका में है । तमिलनाडु , झारखंड , जम्मू कश्मीर और दिल्ली राज्यों में कांग्रेस की भूमिका नाम मात्र की है । गोआ , पुदुचेरी और कईं पूर्वोत्तर राज्यों में भी यही हाल है । कांग्रेस में विघटन से जन्में क्षेत्रीय दल इतने पल्लवित हो गए हैं कि इन राज्यों स्वतंत्ररूप से कांग्रेस की वापसी अब असंभव दिखाई दे रही है ।
कांग्रेस से एक और महापाप हुआ है । वह है आजादी मिलते ही मुसलमानों को अपना वोटबैंक बनाना । कांग्रेस ने मुस्लिमों को राष्ट्र की मुख्यधारा से मिलने ही नहीं दिया ? जिन्ना के इस्लामिक राष्ट्र बनाने के बाद कांग्रेस का पहला पाप था हिंदुओं के मूल देश भारत को हिन्दू राष्ट्र न बनाना । दूसरी गलती थी मुसलमानों को डराकर वोटबैंक बनाना ।
बाद में कांग्रेस बिखरती रही , नए नए दल बनते रहे और गौर से देखिए वे सभी मुसलमानों को वोटबैंक बनाते रहे । आश्चर्य की बात है कि मुस्लिम समाज वोटबैंक बनता भी गया । इन दलों ने मुस्लिम समाज को आरएसएस से जबरन डरा डराकर वोटबैंक बनने के लिए बाध्य किया । नतीजा सामने है । सम्पूर्ण संवैधानिक अधिकार होते हुए भी मुस्लिम समाज अपना कोई स्वतन्त्र राजनैतिक वजूद कायम न कर सका ।
मुस्लिम समाज का एक भी बड़ा राष्ट्रव्यापी नेता 78 वर्षों में नहीं बन सका । वे पीढ़ियों से कांग्रेस , सपा , बसपा , राजद , टीएमसी , डीएमके आदि के पीछे खड़े होकर ताली बजा रहे हैं । अखिलेश , ममता , राहुल , लालू , स्टालिन और यहां तक कि बाल ठाकरे के बेटे उद्धव के पीछे कतारबद्ध होकर वोट डाल रहे हैं । न अपना स्वतन्त्र अस्तित्व स्थापित कर पाए , न नेता बना पाए , पिछलग्गू बनकर रह गए । क्या करें , शायद नियति को यही मंजूर है ?
……कौशल सिखौला
वरिष्ठ पत्रकार